साहित्य
सौम्य अजय राठौर नहीं रहे…
सहसा विश्वास ही नहीं हो रहा है कि एक मनोहारी मुस्कान,तनाव रहित रहकर सबको खुश रखने वाला, सिद्धान्तों को समर्पित और आज के युग में वास्तविक ईमानदार अनुज अजय राठौर
माँ पर विशेष
देवेन्द्र बंसल माँ के बगेर ज़िंदगी नीरस है वह माँ है जो अपना सब भूलकर ,तुम्हें जन्नत दिखा दे ,खुद भूखी रह ले तुम्हें खिला दे ,हर मुश्किलों में सहारा
विश्व मातृ दिवस पर स्वर्गीय माँ के लिए मेरी कविता
धैर्यशील येवले इंदौर जब मैं निराशा से भर जाता हूँ माँ को खोजता हूँ माँ ,माँ तुम कहा हो ,माँ मैं माँ को चहु और खोजते, माँ कहि नही पा
दमोह उपचुनाव के परिणाम और राम प्रसाद
इस चित्र मैं और वर्दी में प्रधान आरक्षक राम प्रसाद है। राम प्रसाद मेरी दमोह में पुलिस अधीक्षक की पदस्थापना के समय मेरे ड्राइवर थे। वो मेरी जीप को बहुत
ममता का खेला और मोदी-शाह की चूक ..!
@ राजेश ज्वेल मैं प्रशांत किशोर तो नहीं हूं , लेकिन अपने लंबे पत्रकारिता के अनुभव और थोड़ी मैदानी समझ से यह बात दावे से कह सकता हूं कि अगर
“हो तिमिर कितना भी गहरा” की कुछ पंक्तियां भारतीय थल सेना ने की ट्विटर पर शेयर
हर्षवर्धन प्रकाश हो तिमिर कितना भी गहरा; हो रोशनी पर लाख पहरा; सूर्य को उगना पड़ेगा, फूल को खिलना पड़ेगा। हो समय कितना भी भारी; हमने ना उम्मीद हारी; दर्द
इसलिए जीती जंग
सतीश जोशी है विषम कोरोना महामारी तो क्या हौसलों को पंख दो। अपनों ने जिन्दगी हारी है, उससे हम विचलित भी हैं। इससे हम जंग छोडकर, पीछे हटने वाले नहीं
मास्क
धैर्यशील येवले जिंदगी मास्क जिंदगी मास्क सुन प्यारे सुन जिंदगीआस्क जीते है सभी मुखोटे लगा के एक और सही जिंदगी मास्क चेहरे चेहरे पर जब हो मास्क तभी देना उसे
खरी खरी
धैर्यशील येवले कमी नही सफिनो की कमी नही कमीनो की लाशो पे कर रहे सौदे ऐसे शफाखानो की उखड़ती साँसे है नफा कमालो खूब इस दफा जिस्मो में पड़ेंगे कीड़े
डरो ना
कोई कहि पर जाओ मत किसे भी घर बुलाओ मत समय अभी महामारी का उतावलापन दिखाओ मत हो मास्क हमेशा चेहरे पर रहो खड़े दो गज दूरी पर यहाँ वहाँ
कैसी बात करता है रे राजेश, क्या उल्टा पुल्टा लिखता है समझता नहीं है बच्चा है तू
राजेश राठौर बात उन दिनों की है जब.. पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में मोती तबेला के कलेक्ट्रेट की पुरानी बिल्डिंग में मेरा रोजाना जाना हुआ करता था। यही कोई शाम
निर्मल उपाध्याय और महेंद्र गगन पीछे छोड़ गए अपना रचना कर्म
अर्जुन राठौर कोरोना महामारी ने देशभर के अनेक पत्रकारों और लेखकों को छीन लिया अभी-अभी खबर आई कि महेंद्र गगन और निर्मल उपाध्याय हमारे बीच नहीं रहे इन दोनों से
आज सपने में आए स्वर्गीय शंभू काकू (सुप्रसिद्ध लोककवि)
स्वर्गीय शंभू काकू (सुप्रसिद्ध लोककवि) आज सपने में आए। पान-सुपारी, पैलगी- प्रणाम के बाद मैंने पूछा, काकू आज का लिख के लाए( देशबंधु में प्रतिदिन उनका सुप्रसिद्ध कालम ‘शंभू काकू
गज़ल
धैर्यशील येवले कहा है बताओ उसे क्या गिला है जहाँ में अकेला मुझे वो मिला है मुझे देख गाते उसे भी बुलाया खुले में गवाओ उसे जो मिला है जवानी
दाता मेरे
धैर्यशील येवले दया करो हे दाता मेरे दया करो हे दाता मेरे तुम्ही दयाला दाता मेरे तुम्ही कृपाला दाता मेरे हमें दिखा दो न राहे सभी हमें सिखा दो न
देखते देखते
धैर्यशील येवले इंदौर आंखे है दहकी दहकी बातें है बहकी बहकी मैं बस देखता ही रहा वो गया देखते देखते हालात बिगड़े बिगड़े रहनुमा तगड़े तगड़े रोक सकते थे उसे
अश्क़
धैर्यशील येवले, इंदौर दिल खोल कर रोना चाहता हूँ पर रो नही पा रहा हूँ आँसू बार बार बाहर आने को है पर रोक नही पा रहा हूँ । मेरे
यकीन रख
धैर्यशील येवले, इंदौर शहर कुछ मेरे दिल सा हो गया सुना सुना बियाबान सा हो गया दरक रहे है रिश्ते यहाँ पर हर शख्स परेशान सा हो गया दर्द दिल
आज विश्व पृथ्वी दिवस है
धैर्यशील येवले जो है, मेरे घर की छत वही है ,दीवारें मेरे घर की इसे कहते है , आकाश , यही तो मेरा घर है । ये वृक्ष , पशु
बस तुम बोलना, कड़वा बोलते रहना
कीर्ति राणा आदि पुरुष की मिश्री जैसी मीठी बातों में मशगूल लोग तुम्हारी नहीं सुन पाएंगे पर तुम बोलना कड़वा बोलते रहना। झकझोर कर याद भी दिलाना हिंदू नव वर्ष