साहित्य
पिता के लिए देवेंद्र बंसल की स्वरचित मौलिक रचना
देवेन्द्र बंसल, इन्दौर पिता ,ज़िन्दगी को ,मुस्कुरा कर जीता है , अपने लिए नही ,परिवार में ख़ुशियाँ ढूँढता है , तमस् में भी उजास की ,ख़ुशबू बिखेरता है, रात के
विश्वासघात
लिपटे पड़े है बड़े बड़े भुजंग चंदन लड़ रहा जीवन की जंग महकना महकाना गलत हो गया विषधर नही चुके दिखाने से रंग नेकी का सिला यहाँ बदी मिलता आस्तीनों
मशाल
धैर्यशील येवले कलम को चिराग बना कर अज्ञान का तमस फ़ना कर सोया है सदियों से वो जगा उसे शोला बना कर अहिंसक है या नपुंसक पूछ उससे मर्द बना
श्वान
धैर्यशील येवले आते जाते अपरिचितों पर भौक उठते थे गली के श्वान मैं डपट देता उन्हें चुप रहा करो बेवज़ह भौकते हो , श्वानों ने भौकना बंद कर दिया है
देख सुन कभी
धैर्यशील येवले इंदौर बहती हवा को कभी सुना है नही सुना न अब सुनो वो गीत जीवन के गाती है । खिले हुए फूलों को कभी गौर से देखा है
पर्यावरण संरक्षण ही संजीवनी: डॉ. पुनीत द्विवेदी
विश्व पर्यावरण दिवस विशेष- – वृक्षों का संरक्षण जीवन के रक्षण हेतु नितांत आवश्यक। – नदियॉ जीवन-दायिनी हैं। नदियों को पुनर्जीवित करना प्रमुख कर्तव्य। – वायु प्रदूषण से प्राणवायु की
आओ एक पौधा हम भी लगाए
देवेन्द्र बंसल आओ एक पौधा हम लगाए धरा के आँचल में सुखों की हरियाली बसाए मानव सोच जो हो गई कलुषित कट गए पेड़ थम गई साँसे उससे इस धरा
अलग अलग ऑफिस
आलेख : धैर्यशील येवले आज मैं और मेरे भगवान सुबह की सैर को निकले , सड़के सुनसान थी इक्कादुक्का राहगीर दिखाई दे जाता। हम दोनों सुबह की ताजी हवा का
बताओ मुझे गौतम
धैर्यशील येवले इंदौर हे गौतम बताओ मुझे आत्मबोध पाना कितना सरल है । बताओ मुझे वे गूढ़ रहस्य जो तुमने जाने बोधी की शीतल छाया में अनेक दैहिक प्रयोग से
सच्चाई: आपको हरहाल में कामयाब होना है
आलेख: धैर्यशील येवले अक्सर देखा गया है कामयाब इंसान जो भी बोलता है ,उसे कामयाबी की कुंजी मान लिया जाता है। मोटिवेशनल स्पीच देने वाले अक्सर अपने व्याख्यान में कामयाब
भोर
धैर्यशील येवले इंदौर हो रहा दुआओं का असर धीरे धीरे खिल रही होंठो पर हँसी धीरे धीरे टूटे रिश्तों की डोर जुड़ रही धीरे धीरे झुकी झुकी नज़रे उठ रही
रक्षक
धैर्यशील येवले, इंदौर मत मार ,यार मेरे मत मार कोई निकला होगा राशन लेने कोई दवाई ,दूध, ईंधन लेने कुदरत तो मार ही रही है , हालात भी रहे है
अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस
रश्मि भट्ट मौलिक -इन्टरनेशनल चाय दिवस वो चाय और साथ तुम्हारा जैसे कोई, चमकता सितारा सुबह-सुबह चाय को पीना जैसे कोई जिन्दगी ही जीना आंखो की सुस्ती खुलती हमारी नजरों
प्रवाह
धैर्यशील येवले इंदौर वो भी न रहा है ये भी न रहेगा समय के प्रवाह में ये भी तो बहेगा बदलती है रुते बदलती है राते रुकता नही जीवन झुकता
गुनगुना
जीवन ये गीत है जीवन संगीत है बिसार सारे गम ,कर कड़वी बाते अनसुना गुनगुना गुनगुना जीवनगीत गुनगुना ।। देख बहारे फूलों की सावन के झूलो की खुशियों से भरे
ग़ज़ल
ग़ज़ल धैर्यशील येवले इंदौर – कभी तेरी जवानी में ,सभी के ढंग थे यारा । कभी तेरी कहानी में ,सभी के रंग थे यारा । वहा मेरी जमी तो है,
रब जाने
धैर्यशील येवले इंदौर दोस्ती में इतना तो कर लेता हूँ ये जानते हुए भी की तेरी जेब में खंजर है , तुझे गले लगा लेता हूँ कुछ फैसले रब पे
आज विश्व परिवार दिवस है
धैर्यशील येवले – थोड़ा थोड़ा जोड़ा परिवार के लिए थोड़ा थोड़ा खोया परिवार के लिए थोड़ी थोड़ी खुशी परिवार के लिए थोड़े थोड़े गम परिवार के लिए पैसा पैसा जोड़ा
रमजान ईद – यादें कैद नहीं रहतीं
विजय सिंह – आज सुबह मैने माहोल देखते डरते डरते , जाकीर को फोन लगाया, मैंने बोल : जाकीर , विजय मामा बोल रहा हूँ, सब ठीक हैं, ना सब!
हां मैं परिचारिका (नर्स) हूं।।
बबीता चौबे शक्ति – हां मैं परिचारिका (नर्स) हूं ।। हर सकती हूँ कष्ट ,दर्द,पीड़ा को हां मैं गंगा हूं …जो तार सकती हूं अस्वस्थता से जन जीवन को हां