पिता के लिए देवेंद्र बंसल की स्वरचित मौलिक रचना

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By Shivani RathorePublished On: June 20, 2021
Father's Day

देवेन्द्र बंसल, इन्दौर

पिता ,ज़िन्दगी को ,मुस्कुरा कर जीता है ,
अपने लिए नही ,परिवार में ख़ुशियाँ ढूँढता है ,
तमस् में भी उजास की ,ख़ुशबू बिखेरता है,
रात के अंधेरो में भी ,कल के सपने बुनता है,
पिता से बच्चों की ,हर शाम जुड़ी होती है ,
उनके घर आने पर ,फ़रमाइश पूरी होती है,
गोली चाकलेट से जेबें ,उनकी भरी होती है ,
पिता है तो हर दिन पारिवारिक त्यौहार है
घर आँगन की ख़ुशबू ,पिता भी महकाते है,
में आनंदित हूँ मुझमें ,मेरे पिता की छबी देखता हूँ,
दबंगता और निडरता से ,ज़िंदगी को जीता हूँ,
सुख की बरात में ,शहनाई बजाता चलता हूँ,
सुख दुख की दुनिया ,निभाता चलता हूँ,
मान सम्मान की मर्यादा से ,दिल जीतता हूँ,
आओ ,संस्कार संस्कृति के मेरे प्यारे देश में ,
पारिवारिक नेह के ,समर्पित भाव से ,पिता को सम्मान दे,
अनुरंजीत धवल मन के ,अंतस भाव से जगमग रोशनी कर दे ,
हृदय मनभाव से देवेंद्र , पिता को वंदन हम करते है।
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मध्यप्रदेश
स्वरचित मौलिक रचना