बस तुम बोलना, कड़वा बोलते रहना

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By Mohit DevkarPublished On: April 22, 2021

कीर्ति राणा

आदि पुरुष की मिश्री जैसी
मीठी बातों में मशगूल लोग
तुम्हारी नहीं सुन पाएंगे
पर तुम बोलना
कड़वा बोलते रहना।

बस तुम बोलना, कड़वा बोलते रहना

झकझोर कर
याद भी दिलाना
हिंदू नव वर्ष की शुरुआत
काली मिर्च-मिश्री और
नीम की पत्तियों से
करते हैं।

इस कड़वाहट के
बाद भी जब देशभक्तों को
मन की बात
लगती रहे मीठी मीठी
तो समझ लेना
जुबान हो गई है बेस्वाद,
श्मशान में अखंड ज्योति बनी
चिताओं से उठती लपटों से
हवाओं को दूषित करती
चरबी की गंध
जिनकी सांसों में
महक रही हो इत्र सी
अश्वमेध की लगाम
पकड़ रखी है मजबूती से
तो समझ लेना लोक सेवक के
घर तक फैल गया है संक्रमण

उन्हें लगे रहने देना
अपने अभियान में
छेड़ना मत
रथ के पहियों की गति
रोकने में मत उलझ जाना।

बस तुम बोलते रहना
ताकि नस्लें याद रखें
कोई तो लोग थे
जो अंधे, बहरे, गूंगों की
जमात से अलग थे।

जो बजा रहे हैं झांझ -मंजीरे
गा रहे हैं समवेत गान
उनके पेट पर लात मत मारना
यह शामिल है उनके काम में।
चेहरों से नकाब उतारने की
कोशिश भी मत करना।

बस तुम बोलना,
बोलते रहना
ऐसे ही
कड़वा बोलते रहना।