भीष्म पितामह ने देह त्यागने के लिए क्यों चुना मकर संक्रांति का दिन, जानिए पौराणिक कथा

Simran Vaidya
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मकर संक्रांति हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है। इस वर्ष ये त्यौहार 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। इस पर्व को देश के हर भागों में अलग-अलग तरीके से मनाने की परंपरा है। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान और दान को बहुत ही ज्यादा शुभ माना गया है। इस दिन किए गए गंगा स्नान को महा स्नान माना जाता है।भीष्म का प्राण त्याग। The death of Bhishm.।Mahabharat। - YouTube

साथ ही इस दिन से एक महीने का खरमास समाप्त हो जाता है और मांगलिक कार्य पर लगा प्रतिबंध फिर से शुरू हो जाता हैं। इसके अतिरिक्त मकर संक्रांति का खास महत्त्व महाभारत से भी है। कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने इस दिन अपने प्राण त्यागे थे। 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर रहने के बावजूद भी उन्होंने अपने शरीर को त्यागने के लिए सूर्य देव के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की।

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चलिए जानते हैं इसके पीछे का कारण क्या है

साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसलिए महाभारत के युद्ध में अर्जुन द्वारा बाणों से बुरी तरह घायल किए जाने पर भी वे जीवित रहे। अठारह दिनों के युद्ध में भीष्म पितामह दसवें दिन जख्मी हुए थे। उनके मृत्यु शैय्या पर लेटने के बाद युद्ध आठ दिन और चला। लेकिन भीष्म पितामह ने अपना देह नहीं त्यागा था, क्योंकि वे चाहते थे कि जब सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे शरीर का त्याग करेंगे। भीष्म पितामह मृत्यु शैय्या पर 58 दिन तक जीवित रहे। उसके बाद उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने पर देह त्याग दिया। ऐसी मान्यता है कि इस दिन प्राण त्यागने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भगवान श्री कृष्ण ने भी बताया था उत्तरायण का मूल्य

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने भी उत्तरायण के अहमियत को बताया था। कृष्ण के अनुसार उत्तरायण में देह त्यागने से जीवन मरण के बंधन से छुटकारा मिल जाता है। व्यक्ति सीधा मोक्ष प्राप्त करता है। यही कारण है कि भीष्म पितामह अपने शरीर का त्याग करने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इसी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने भी बताया था उत्तरायण का महत्व जिसके चलते उत्तरायण में भीष्म पितामह ने त्यागी थी अपनी देह. साथ ही ये कथा महाभारत से जुड़ी है.क्योंकि मकर संक्रांति पर सूर्य देव होते हैं उत्तरायण।