विदेश मंत्री एस. जयशंकर की चीन यात्रा को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तीखा हमला बोला है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर विदेश मंत्री की चीन यात्रा को लेकर तंज कसते हुए कहा- “मुझे लगता है कि चीनी विदेश मंत्री आएंगे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चीन-भारत संबंधों में हालिया घटनाक्रमों से अवगत कराएंगे। विदेश मंत्री अब भारत की विदेश नीति को बर्बाद करने के उद्देश्य से एक बड़ा सर्कस चला रहे हैं।” राहुल गांधी की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है, जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बीजिंग में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। यह मुलाकात गलवान घाटी में जून 2020 की सैन्य झड़पों के बाद भारत और चीन के शीर्ष स्तर की पहली द्विपक्षीय मुलाकातों में से एक मानी जा रही है।
जब चीन ने पाकिस्तान को दिया समर्थन, तो कैसे हो रही मित्रता?
कांग्रेस ने विदेश मंत्री की इस यात्रा पर सुरक्षा और कूटनीतिक दृष्टि से भी सवाल उठाए हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि जयशंकर की यह यात्रा उस पृष्ठभूमि में हो रही है जब चीन ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को खुलकर समर्थन दिया था। जयराम रमेश ने भारतीय सेना के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल सिंह के बयान का हवाला देते हुए कहा- “चीन ने पाकिस्तान को एक लाइव लैब की तरह इस्तेमाल किया। चीन ने भारत के सैन्य अभियानों की वास्तविक समय की खुफिया जानकारी पाकिस्तान के साथ साझा की।” उन्होंने यह भी कहा कि जयशंकर को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत-चीन संबंध आज जिस मोड़ पर हैं, वहां चीन की नीतियों ने भारत के हितों को बार-बार नुकसान पहुंचाया है।

SCO बैठक में भारत-चीन संवाद का मंच बना बीजिंग
विदेश मंत्री एस. जयशंकर चीन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए गए थे। इस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शुभकामनाएं भी दीं। जयशंकर ने कहा कि उन्होंने शी जिनपिंग को द्विपक्षीय संबंधों में हाल के घटनाक्रमों की जानकारी दी और यह बैठक दोनों देशों के लिए “सकारात्मक संवाद का अवसर” है। विशेष रूप से इस दौरे को भारत-चीन संबंधों में तनाव के बाद एक डिप्लोमैटिक बर्फ पिघलाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन विपक्ष इस पर “चुपचाप कूटनीति” की बजाय “मजबूत राष्ट्रहित” की मांग कर रहा है।
सुरक्षा तंत्र को मजबूत करें
एससीओ बैठक में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी सभी सदस्य देशों को संबोधित किया। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि “हमें सुरक्षा खतरों और चुनौतियों का जवाब देने के लिए संगठन की संरचना को और मजबूत बनाना चाहिए और एक ठोस सुरक्षा कवच तैयार करना चाहिए।” शी जिनपिंग के इस बयान को चीन की उस नीति से जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें वह एससीओ को एक सुरक्षा-साझेदारी मंच बनाकर अपने भू-राजनीतिक हितों को साधना चाहता है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब चीन ने हाल में पाकिस्तान के साथ नौसैनिक सहयोग, ड्रोन सप्लाई और जासूसी गतिविधियों में खुलकर भागीदारी की है।
क्या भारत की विदेश नीति सही दिशा में है या भ्रमित?
विदेश मंत्री जयशंकर की चीन यात्रा और शी जिनपिंग से मुलाकात एक संवेदनशील समय पर हो रही है, जब भारत के पूर्वी लद्दाख सीमा क्षेत्र में अब भी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हुई है। कांग्रेस ने इस मुलाकात पर “बिना स्पष्ट रणनीति के संवाद” का आरोप लगाया है। वहीं सरकार इसे सामरिक संतुलन और बातचीत के माध्यम से समाधान की नीति करार दे रही है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का मानना है कि जब तक चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यथास्थिति बहाल नहीं करता, तब तक इस तरह की “सौहार्दपूर्ण मुलाकातों” का कोई स्थायी परिणाम नहीं होगा।
उधर सरकार का मानना है कि वैश्विक भू-राजनीतिक अस्थिरता के दौर में, चीन जैसे पड़ोसी से बातचीत बनाए रखना अनिवार्य है ताकि तनावपूर्ण सीमा विवादों को सैन्य टकराव की ओर जाने से रोका जा सके।
चीन नीति पर सियासी मतभेद जारी
जयशंकर की चीन यात्रा एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि भारत की चीन नीति कितनी सख्त और कितनी लचीली होनी चाहिए। जहां एक ओर भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद और क्षेत्रीय अखंडता की बात करता है, वहीं दूसरी ओर चीन जैसे देश के साथ कूटनीतिक संवाद को बनाए भी रखता है। राहुल गांधी और कांग्रेस के हमलों से यह स्पष्ट है कि विपक्ष सरकार की डिप्लोमैटिक स्टैंडिंग से संतुष्ट नहीं है और हर कदम पर उसे चुनौती दे रहा है। आने वाले समय में चीन के साथ रिश्तों में होने वाली कोई भी प्रगति या गिरावट इस सियासी बहस को और गहरा बना सकती है।