जम्मू-कश्मीर के दौरे पर डॉ.शेखर मांडे, डीजी-सीएसआईआर, इन गतिविधियों का लिया जायजा

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दिल्ली : डॉ. शेखर सी. मांडे, महानिदेशक, सीएसआईआर और सचिव, डीएसआईआर ने श्रीनगर में सीएसआईआर-भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (सीएसआईआर-आईआईआईएम) की ब्रांच लैब और पुलवामा में संस्थान के फील्ड स्टेशन का दौरा किया और यहां पर चल रही गतिविधियों का जायजा लिया। लैवेंडर की खेती से जुड़े महिला स्वयं सहायता समूहों और उद्यमियों के साथ बातचीत करते हुए, डॉ. शेखर मांडे ने इस बात पर संतोष जताया कि लैवेंडर की खेती अपनाने से उनकी आय और रोजगार में पर्याप्त बढ़ोतरी हुई है।

किसानों और उद्यमियों को डॉ. मांडे ने भरोसा दिलाया कि आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए फसल को बढ़ाने, इसके प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और मार्केटिंग में वैज्ञानिक और तकनीकी सलाह व सहायता दी जाएगी। उन्होंने कृषि उत्पादकता और उससे होने वाले लाभ को अधिकतम स्तर तक ले जाने के लिए सुगंधित फसल उत्पादन के साथ मधुमक्खी पालन को जोड़ने की जरूरत पर जोर दिया।

पुलवामा स्थित फील्ड स्टेशन के महत्व को रेखांकित करते हुए डॉ. डी श्रीनिवास रेड्डी, निदेशक सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू ने बताया कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में किसानों की आय और महिला सशक्तिकरण बढ़ाने के लिए यह स्टेशन औद्योगिक खेती, विशेष रूप से लैवेंडर, के लिए मुख्य केंद्र के रूप में काम कर रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि सीएसआईआर-आईआईआईएम, मूल्य वर्धित उत्पादों और अन्य कच्चे माल के उत्पादन के लिए विभिन्न उद्योग-उन्मुख फसलों की खेती बड़े पैमाने पर बढ़ाना चाहता है।

डॉ. शाहिद रसूल, पुलवामा में बोनेरा फॉर्म के प्रभारी वैज्ञानिक, ने बताया कि विभिन्न परियोजनाओं, मिशन कार्यक्रमों, विभिन्न फसलों के उत्पादन और प्रसंस्करण के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण और कौशल के माध्यम से एक टिकाऊ दृष्टिकोण दिया गया है। किसानों को विभिन्न फसलों के व्यावसायिक उत्पादन के लिए निःशुल्क गुणवत्तापूर्ण पौधे की आपूर्ति, तैयार फसलों के डिस्टिलेशन (आसवन) की सुविधाएं, बाजार से संपर्क और तकनीकी सलाह के माध्यम से सहायता दी जाती है।

डीजी, सीएसआईआर और निदेशक सीएसआईआर-आईआईआईएम ने जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाकात की और उन्हें जम्मू-कश्मीर में सीएसआईआर की ओर से लैवेंडर और अन्य उच्च मूल्य वाली नकदी फसलों की खेती की शुरुआत के बारे में जानकारी दी। उप-राज्यपाल को डीजी-सीएसआईआर ने जम्मू-कश्मीर में सीएसआईआर की विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी दूसरी पहलों के बारे में भी बताया और जम्मू-कश्मीर के लिए उपयोगी सीएसआईआर प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से सामाजिक विकास और ग्रामीण सशक्तिकरण के लिए, को लागू करने का भी प्रस्ताव रखा।

उप-राज्यपाल ने सीएसआईआर के प्रयासों की सराहना की और जम्मू-कश्मीर के प्रतिभाशाली युवाओं के वैज्ञानिक व औद्योगिक प्रशिक्षण पर भी जोर दिया। उपराज्यपाल ने इच्छा जताई कि सीएसआईआर की सहजता से उपलब्ध सभी प्रौद्योगिकियों से जुड़ी जानकारियों को जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश सरकार के साथ साझा की जा सकती है, जिससे कि उसके कार्यान्वय की संभावनाओं का पता लगाने के लिए और अधिक मंथन किया जा सके। सीएसआईआर-आईआईआईएम, उच्च उत्पादकता और गुणवत्ता सूची प्राप्त करने के लिए लैवेंडर की खेती और प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों पर पिछले 35 से ज्यादा वर्षों से शोध एवं विकास (आरएनडी) कार्य कर रहा है।

सीएसआईआर-आईआईआईएम की ओर से अधिक तेल उत्पादन करने वाली एक किस्म, जिसे आरआरएल-12 के रूप में जाना जाता है, विकसित की गई थी। फसल की बड़े पैमाने पर खेती के लिए संस्थान बहुत सी राज्य और केंद्र प्रायोजित मिशन आधारित परियोजनाएं जैसे सीएसआईआर-अरोमा मिशन को संचालित कर रहा है। यह भी बताया गया कि लैवेंडर की खेती करने वाले किसान पारंपरिक फसलों की तुलना में 5-6 गुना ज्यादा आय (4.00-5.00 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर) प्राप्त करते हैं।

पिछले 10 वर्षों में सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू के विभिन्न पहल और उनके कार्यान्वयन के कारण केंद्र शासित प्रदेश में लैवेंडर की खेती के रकबे में उछाल देखा गया है। जम्मू और कश्मीर में 3000 किलोग्राम लैवेंडर ऑयल के वार्षिक उत्पादन के साथ 900 एकड़ के अनुमानित रकबे में लैवेंडर उगाया जा रहा है। संस्थान फसल के रकबे को बढ़ा रहा है। यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लैवेंडर ऑयल की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए लैवेंडर की खेती के रकबे को अगले 2-3 वर्षों में 1500 हेक्टेयर तक बढ़ाना चाहता है, ताकि उत्पादन की एक स्थायी व्यवस्था स्थापित की जा सके।