अर्जुन राठौर
यह इंदौर शहर (Indore) का दुर्भाग्य है कि यहां पर एक भी शॉपिंग मॉल नियम कानून कायदे से नहीं बना है मॉल जहां पर भी बने हुए हैं उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि इनका निर्माण चाहे जहां कर लिया गया है। उदाहरण के लिए सेंट्रल मॉल को ही ले तो पता चल चलेगा कि इस मॉल ने फिल्म कॉलोनी को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है फिल्म कॉलोनी के जितने भी रहवासी है उनकी आबोहवा से लेकर वेंटिलेशन तक सेंट्रल मॉल की हाइट के कारण पूरी तरह से रुक गया है मॉल के ठीक पीछे रहने वाले लोग तो शुद्ध हवा के लिए ही तरस गए हैं वहां रहने वाले लोगों को ऐसा लगता है कि वह एक विशाल दीवार के पीछे रह रहे हैं जहां पर दीवार के अलावा और कोई व्यू देखने के लिए बचा ही नहीं है।
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मॉल का निर्माण निहायत ही गलत तरीके से किया गया है अगर यही मॉल महाराष्ट्र में बनता तो या तो इसे बनाने की अनुमति नहीं मिलती या फिर से तोड़ दिया जाता मॉल्स बनने के बाद फिल्म कॉलोनी में अवैध पार्किंग की भी शुरुआत हो गई है जगह-जगह बंगलों के सामने लोग अपनी गाड़ियां लगाकर मॉल में चले जाते हैं और इसका खामियाजा बेचारे यहां रहने वाले उठाते हैं इसके अलावा मॉल से निकलकर रात होते ही कॉलोनी में लड़के और लड़कियों की आवारागर्दी शुरू हो जाती है रहवासी इस न्यूसेंस के कारण भी बहुत परेशान हैं किसी समय यहां पर झाबुआ महाराज का बंगला हुआ करता था तब इस कालोनी के लोगों ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब झाबुआ महाराज कॉलोनी वालों को पूरी तरह से बर्बाद करके अपनी जगह शॉपिंग माल के लिए बेच देंगे।
माल बनने के बाद से ही फिल्म कॉलोनी अपनी बर्बादी की कहानी लिख रही है यहां के रहवासी शुद्ध हवा से लेकर शुद्ध वातावरण तक के लिए तरस रहे हैं और दूसरी तरफ सेंट्रल मॉल सारे नियमों की धज्जियां उड़ाकर पूरी तरह से या रहवासी क्षेत्र में बना दिया गया है ।