अजय बोकिल
देश में आयकर पोर्टल में जारी गड़बडि़यों को लेकर इसे बनाने व संचालित करने वाली इन्फोसिस जैसी प्रतिष्ठित भारतीय बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी पर आरएसएस से जुड़े पत्र ‘पाञ्चजन्य’ में तीखा हमला और दूसरे ही दिन संघ द्वारा इस लेख से पल्ला झाड़ने तथा इन्फोसिस को राष्ट्रवादी बताने का पूरा खेल कई सवाल खड़े करता है। पहला सवाल तो यह है कि कंपनी के िजस आईटी पोर्टल में गड़बडि़यों को लेकर केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन सार्वजनिक रूप से चिंता जता चुकी हों और जिस कंपनी के सीईअो को बुलाकर अल्टीमेटम दे चुकी हों, देश भर के चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और टैक्स कंसलटेंट ई-टैक्स फाइलिंग को लेकर लगातार परेशान हो रहे हों,
उसका बचाव ‘राष्ट्रहित रक्षक’ में कैसे और क्यों किया जाना चाहिए? क्योंकि यह कोई छोटा-मोटा मामला नहीं है, देश भर के करोड़ो आयकरदाताअों और इससे सरकार को मिलने वाले अरबों रूपए के राजस्व से जुड़ा है। पूरा प्रकरण शुद्ध रूप से प्रोफेनशनल नैतिकता, ग्राहक को त्वरित और पूरी तरह संतोषप्रद सेवा देने के दायित्व से जुड़ा है। अगर कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी भारतीय भी है तो वह उत्कृष्ट सेवा देने और ग्राहक संतुष्टि के अपने मूल और प्रथम दायित्व से कैसे बच सकती है? क्योंकि उसे सेवा के बदले जो पैसा दिया जा रहा है, वह भी तो हमारा यानी जनता का ही है।
करीब एक दशक पहले आयकर टैक्स फाइलिंग का काम आॅन लाइन करने के पीछे उद्देश्य यही था कि काम तेजी से और सुविधाजनक ढंग से हो। सरकार की मंशा भी यही थी कि आयकर के रूप में उसे कंपनियों, व्यवसायियों और व्यक्तिगत करदाताअों से भी जल्दी और ज्यादा राजस्व मिले। आयकर के डिजीटलाइजेशन का सभी ने स्वागत किया। इससे काम सुविधाजनक हुआ। करीब एक दशक से ज्यादा समय तक यह काम टाटा समूह की आईटी कंपनी टीसीएस के पास रहा।
इनकम टैक्स के जुड़े प्रोफेशनल्स के अनुसार टीसीएस का साॅफ्टवेयर इतना सक्षम था कि कभी कोई बड़ी शिकायत सामने नहीं आई। दो साल पहले वित्त मंत्रालय ने यह काम न्यूनतम निविदा दर पर इन्फोसिस को दिया। तभी से आईटी साॅफ्टवेयर में गड़बडि़यों जैसे सही डाउनलोडिंग न हो, त्वरित टैक्स जमा न करना, पूरा सिस्टम ठीक से काम न करना, शिकायतों का त्वरित निराकरण न होना, जैसी कई दिक्कतें सामने आने लगीं। हालत यह है कि अब एक-एक टैक्स रिटर्न फाइल करने में कई बार घंटो लग जाते हैं।
जबकि कंपनी का दावा है कि उसका नया साॅफ्टवेयर पहले की तुलना में ज्यादा सक्षम है। सरकार ने टीसीएस से काम लेकर इन्फोसिस को क्यों दिया, यह वही जानें और किसी कंपनी की वकालत करना इस लेख का मकसद है भी नहीं। हालांकि ‘इन्फोसिस’ भी देश की दूसरी सबसे बड़ी और नामी आईटी कंपनी है। उसकी अपनी प्रतिष्ठा है। ‘इन्फोसिस’ के नारायण मूर्ति और नंदन नीलकेणी बेहद सम्मानित व्यक्ति हैं। लेकिन आईटी साॅफ्टवेयर के मामले में कंपनी का परफार्मेंस वैसा नहीं दिखता, जैसा कि अपेक्षित है। शायद इसीलिए ‘पा़ञ्जजन्य’ में छपे लेख में इसे ‘ऊंची दुकान,फीके पकवान’ की संज्ञा दी गई। जबकि कंपनी के मुताबिक उसने आईटी का नया साॅफ्टवेयर 2.0 इस साल लांच किया था ताकि लोगों को सीधे आयकर जमा करने में ज्यादा आसानी हो।
कुछ लोगों ने इसकी तारीफ भी की। लेकिन ज्यादातर मामलों में दिक्कतें ही सामने आई हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का 8 जून को किया गया वह ट्वीट है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुझे उम्मीद है कि इन्फोसिस हमारे आयकर दाताअोंको निराश नहीं करेगी और बेहतर सेवा देगी। इसका सीधा मतलब था कि पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा है। वरना एक मंत्री तकनीकी िदक्कतों पर ऐसी टिप्पणी क्यों करेगी? उधर इन्फोसिस के नंदन नीलकेणी ने अपने जवाबी ट्वीट में माना कि नए साॅफ्ट वेयर में कुछ तकनीकी दिक्कतें हैं। हमारे विशेषज्ञ उन्हें ठीक कर रहे हैं। जल्द ही साॅफ्ट वेयर ठीक से काम करने लगेगा।
लेकिन लगता है कि यह आश्वासन ही रहा। क्योंकि समस्याएं बरकरार हैं। लिहाजा केन्द्रीय वित्त मंत्री को इन्फोसिस के सीईअो को बुलाकर 15 सितंबर तक साॅफ्टवेयर हर हाल में ठीक करने की चेतावनी देनी पड़ी। जहां तक कार्य के प्रति निष्ठा की बात है तो निर्मला सीतारमन की सभी तारीफ करते हैं। उनकी चिंता इसलिए भी जायज है कि तय तारीख तक सरकार को कंपनियों से एडवांस टैक्स नहीं मिला तो सरकारी खजाने में पैसा नहीं आएगा। आईटी रिटर्न की अंतिम तिथि 30 सितंबर है। सरकार अगर तारीख बढ़ाती है तो उसे ही पैसा समय पर नहीं मिलेगा। जबकि जानकारों के अनुसार हकीकत यह है कि अभी भी साॅफ्टवेयर ठीक से काम नहीं कर रहा है। कस्टमर कंपनी के बंगलुरू आॅफिस फोन करते हैं तो जवाब मिलता है कि गड़बड़ी दुरूस्त कर रहे हैं। उधर इनकम टैक्स रिटर्न की अंतिम तिथि करीब आती जा रही है।
‘पा़ञ्जजन्य’ के ताजा अंक में जो कुछ छपा, उसमें काफी कुछ सचाई है। क्योंकि साॅफ्टवेयर की गड़बड़ी से लाखों टैक्सपेयर और टैक्स प्रोफेशनल्स परेशान हैं। हालांकि ‘साख और आघात’ शीर्षक से छपी इस कवर स्टोरी में यह कहना कि इस तकनीकी गड़बड़ी के पीछे ‘राष्ट्रविरोधी ताकतों की साजिश’ है, को सही नहीं माना जा सकता। और न ही इस बात से सहमत हुआ जा सकता है कि साॅफ्टवेयर गड़बड़ी के पीछे ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ है।
यकीनन यह कवर स्टोरी राजनीतिक आरोप से हटकर बुनियादी समस्याअों पर केन्द्रित होती तो ज्यादा राष्ट्रहित में होती। लेकिन लेख में उठाया गया यह सवाल जायज है कि ‘क्या इंफोसिस ‘अपने विदेशी ग्राहकों को भी इसी तरह की घटिया सेवा प्रदान’ करेगी?’ क्योंकि इन्फोसिस का कारोबार विदेशों में ज्यादा है। इस बारे में पत्र के संपादक हितेश शंकर का कहना है कि ‘इन कर पोर्टलों में गड़बड़ियां राष्ट्रीय चिंता का विषय हैं और जो इसके लिए जिम्मेदार हैं उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।’
साथ ही उन्होंने इन्फोसिस की तारीफ भी की। हैरानी की बात यह है कि इस लेख के छपने के दूसरे ही िदन संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने सोशल मीडिया पर लिखा कि भारतीय कंपनी के नाते इन्फोसिस का भारत की तरक्की में महत्वपूर्ण योगदान है। इन्फोसिस के बनाए पोर्टल को लेकर कुछ मुद्दे हो सकते हैं, लेकिन पांचजन्य में इस संदर्भ में प्रकाशित लेख, लेखक के अपने विचार हैं और पांचजन्य संघ का मुखपत्र नहीं है।
फिर सवाल यह उठता है कि अगर लेख असत्य तथ्यों पर आधारित था तो छापा कैसे गया और सही है तो उससे पल्ला झाड़ने के पीछे असली वजह क्या है? कुलमिलाकर यह रवैया ‘सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे’ वाला लगता है। क्योंकि लेख को पूरी तरह रद्द भी नहीं किया गया। उल्टे कई और लोग भी इन्फोसिस के पक्ष में उतर आए। मंत्रियों और उद्योगपतियों ने भी इस पर कोई टिप्पणी करने के बजाए चुप्पी साध ली। अब सवाल यह है कि यदि इन्फोसिस की जगह कोई और कंपनी होती तो क्या उसके प्रति भी यही रवैया होता?
यहां प्रश्न ‘स्वदेशी’ अथवा ‘विदेशी’ कंपनी का है ही नहीं। मुद्दा सक्षम, त्वरित और प्रामाणिक ग्राहक सेवा का है। अगर इन्फोसिस अपेक्षित सेवा नहीं दे पा रही है तो उसकी जवाबदेही बनती ही है। उसकी जगह कोई और कंपनी होती तो उसकी भी बनती और दुर्योग से वह ‘विदेशी’ होती तो उसका कचूमर बनाने में देरी नहीं की गई होती। आखिर इन्फोसिस भी पैसा लेकर ही तो सेवा दे रही है। गौरतलब है कि इंफोसिस को अगली पीढ़ी की आयकर दाखिल करने वाली प्रणाली विकसित करने का अनुबंध 2019 में मिला था।
जून, 2021 तक सरकार ने इंफोसिस को पोर्टल के विकास के लिए 164.5 करोड़ रुपए का भुगतान किया है। यह सरकार का संसद में दिया गया अधिकृत जवाब है। ऐसे में आम आयकरदाता की परेशानी यह है कि जब इन्फोसिस जैसी नामी आईटी कंपनी अपने ही साॅफ्टवेयर को ठीक से हैंडल नहीं कर पा रही है तो वह क्या करे, वो तमाम टैक्स रिटर्न करने वाले प्रोफेशनल्स क्या करें? किससे गुहार करें और कब तक इंतजार करें? आखिर राष्ट्रहित में धैर्य की भी एक सीमा और जवाबदेही है। इसलिए सवाल तो किए ही जाएंगे। इन्फोसिस की महानता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है, लेकिन ग्राहक सेवा के सुगम संचालन की सहज और न्यूनतम अपेक्षा तो हर भारतीय को है। यही राष्ट्र के संदर्भ में ग्राहक सेवा का ‘राष्ट्रवाद’ भी है।