सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर मुफ्त चीजों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। इसमें चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा घोषित मुफ्त सुविधाओं की आलोचना की गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोग काम करने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उन्हें मुफ्त राशन और नकदी मिल रही है। ऐसा कहा जाता है कि वे बिना काम किए मुफ्त में भोजन और पैसा कमा रहे हैं। चुनाव के दौरान मुफ्त योजनाओं की घोषणा करने की नीति ठीक नहीं है।
जस्टिस बी.आर. गवई ने इस बात पर अफसोस जताया कि मुफ्त योजनाओं से लाभार्थियों को परजीवी बना दिया जा रहा है। शहरी क्षेत्रों में बेघर लोगों के लिए आश्रय की मांग वाली एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह बात कही। इस मामले की सुनवाई छह सप्ताह के लिए स्थगित कर दी गई है।
![फ्री की रेवड़ी पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, कहा- 'मुफ्त की चीजों से लोगों को आलसी बनाया जा रहा'](https://ghamasan.com/wp-content/uploads/2025/02/WhatsApp-Image-2025-02-12-at-2.57.06-PM.jpeg)
सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में भी इसी प्रकार की टिप्पणी की थी। आरोप लगाया था कि अलग-अलग पार्टी चुनाव आने पर लाड़ली बहन जैसी विभिन्न योजनाओं की घोषणा करेंगी और धनराशि वितरित करेंगी। दिल्ली में अब यह कहा जाने लगा है कि यदि एक पार्टी 2,500 रुपये देती है, तो दूसरी पार्टी उससे दोगुनी राशि देने का वादा करती है।
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हालाँकि, मुफ्त चीजों के प्रति अपनी असहिष्णुता व्यक्त करने वाले सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में सुब्रमण्यम बालाजी मामले में अलग टिप्पणी की थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि ‘पात्र व्यक्तियों को टीवी, लैपटॉप आदि के रूप में बड़ी मात्रा में सामान का वितरण सीधे राज्य सरकार की नीतियों से जुड़ा हुआ है। हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते।’