MP Medical College Fraud: फर्जी थम्ब इम्प्रेशन का खुलासा, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज में बायोमैट्रिक व्यवस्था पर सवाल, AI का हुआ गलत इस्तेमाल

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By Abhishek SinghPublished On: July 6, 2025

MP Medical College Fraud: मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में चल रहे फर्जीवाड़े के मामले में लगातार नए-नए खुलासे हो रहे हैं। सीबीआई की जांच में पता चला है कि मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दिलाने और नवीनीकरण प्रक्रिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का गलत उपयोग किया गया। जांच में यह भी सामने आया कि फर्जी फैकल्टी सदस्यों का आंकड़ा दिखाकर कॉलेजों की आवश्यकताएं पूरी की गईं, जिसमें बायोमैट्रिक अटेंडेंस सिस्टम में नकली थम्ब इम्प्रेशन का सहारा लिया गया।

शक के घेरे में शीर्ष अधिकारी

जांच के दौरान यह उजागर हुआ है कि सुरेश भदौरिया के भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी से घनिष्ठ संबंध हैं। इसी संपर्क के जरिए उन्हें पहले से ही इंस्पेक्शन की तारीख और जानकारी मिल जाती थी। ऐसे में समय से पहले फर्जीवाड़े की पूरी योजना तैयार कर ली जाती थी। कॉलेजों में फर्जी फैकल्टी और मरीजों को रिकॉर्ड में दर्शाने जैसी गंभीर अनियमितताएं भी सामने आई हैं।

AI बना फर्जीवाड़े का हथियार

मेडिकल कॉलेजों को रिश्वत के जरिए मान्यता दिलाने के मामले में सीबीआई ने इंदौर स्थित इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन सुरेश भदौरिया और यूजीसी के पूर्व चेयरमैन व देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डीपी सिंह को आरोपित किया है। चल रही जांच के दौरान कई गंभीर अनियमितताओं का लगातार खुलासा हो रहा है।

जानकारी सामने आई है कि कॉलेजों को अवैध रूप से मान्यता दिलाने और उसका नवीनीकरण कराने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया। बताया गया है कि मान्यता की शर्तों को पूरा करने के लिए फैकल्टी की नियमित उपस्थिति अनिवार्य होती है। इसी के चलते निरीक्षण से पहले रिकॉर्ड में फर्जी फैकल्टी दिखाकर मानकों को पूरा करने का प्रयास किया गया।

इस उद्देश्य के लिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम में हेरफेर करते हुए एआई की मदद से नकली थंब इम्प्रेशन तैयार किए गए। इसके माध्यम से फैकल्टी की नियमित उपस्थिति दर्शाई गई। सीबीआई की जांच में यह एक अहम पहलू के रूप में सामने आया है, जिसमें सुरेश भदौरिया की संलिप्तता के संकेत भी मिले हैं।

डीपी सिंह के कार्यकाल में UGC की साख पर सवाल

भदौरिया पर आरोप हैं कि वे कॉलेजों के चेयरमैन और डायरेक्टर्स से भारी रकम लेकर उनकी मान्यता करवा देते थे, चाहे मान्यता के लिए आवश्यक मानक पूरे न हों। इस मामले में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डीपी सिंह पर भी सीबीआई ने कड़ी कार्रवाई की है। डीपी सिंह पहले सागर और बनारस विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रह चुके हैं, साथ ही नेशनल असेसमेंट एंड एक्रिडिटेशन काउंसिल के निदेशक भी थे।

डीपी सिंह 2018 से 2021 तक यूजीसी के चेयरमैन के पद पर कार्यरत रहे। इसके अलावा, वे उत्तर प्रदेश सरकार में शिक्षा सलाहकार के रूप में भी सेवा दे चुके हैं। सूत्रों की मानें तो उनके डायरेक्टर रहते यूजीसी में भ्रष्टाचार की घटनाएं हुईं, जिससे सीधे तौर पर कुछ कॉलेजों को फायदा पहुंचा।