सतीश जोशी
है विषम कोरोना महामारी
तो क्या हौसलों को पंख दो।
अपनों ने जिन्दगी हारी है,
उससे हम विचलित भी हैं।
इससे हम जंग छोडकर,
पीछे हटने वाले नहीं हैं।
बन कर हौसलों से लडेंगे,
जीत जाएंगे यह जंग भी।
परिस्थिति रही जैसी मगर,
मैं अटल अडिग डटा रहा।
उभरता रहा तूफ़ानों से,
समय की मौजों में ना बहा।
कई थे यहां मुझसे मगर,
मुझमें अलग कुछ बात थी।
चंदन की खुशबू की तरह,
विष को थी मैंने मात दी।
मिला जो जीवन था मुझे,
ईश्वर का वह उपकार था।
मृत्यु को भी पराजित कर सका,
चूंकि साथ परोपकार था।