प्रशासन की स्थिति “कुछ नहीं सूझे और खड़े-खड़े धूजे” : पं. प्रदीप मोदी

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इस समय प्रदेश प्रशासन की स्थिति ऐसी है,मानो “”कुछ नहीं सूझे और खड़े-खड़े धूजे”” शासन तो बेशर्म था,है और रहेगा, लेकिन प्रशासन पढ़े-लिखे लोगों का जमावड़ा है, इसमें किंचित शर्म-हया बची है, इसीलिए इसकी स्थिति कुछ नहीं सूझे और खड़े-खड़े धूजे वाली बनी हुई है। प्रशासन से तात्पर्य मुख्य सचिव से लगाकर चपरासी तक तथा शासन से मतलब,प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लगाकर,पंच-सरपंच तक। शासन में अनपढ़ गंवारों की भरमार, इसलिए उन्हें शर्म से कोई लेना-देना नहीं।

प्रदेश और देशभर के लोग अपने-अपने शहर, गली-मोहल्लों में बिखरे नेताओं से दिल्ली-भोपाल के नेताओं का अनुमान लगा सकते हैं, क्योंकि ऐसे ही नेताओं की जमात,बड़े नेताओं के पांव पड़कर, कमंडल उठाकर भोपाल और दिल्ली पहुंची हैं,अब नेताओं की नई पीढ़ी इनके पांव पड़कर दिल्ली भोपाल पहुंचेगी, यह क्रम आजादी के बाद से ही बना हुआ है। ये ही लोग शासन कहलाते हैं और प्रशासन इनके आदेशों का पालन करता है।

इस समय कोरोना से प्रदेश सहित देश में हाहाकार मचा है और शासन (नेता) चुनाव में व्यस्त हैं, रैलियों में भीड़ एकत्रित कर देश के भोले-भाले नागरिकों को कोविड के हवाले कर रहे हैं। अनपढ़ गंवार नेताओं को बिल्कुल शर्म नहीं आ रही है, हमारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हमें नाटक-नौटंकी करते हुए कोविड गाइड लाइन का पालन करने का निवेदन करते हैं और खुद बंगाल में जाकर बिना मास्क लोगों से हाथ मिलाते हुए दिखाई देते हैं। हमारे प्रधानमंत्री,जिन्हें चुनाव प्रचार अभियान में आनंद की अनुभूति होती है और भाषण देने में रस आता है, उन्होंने अपने कार्यकाल में यही दो काम बड़ी तन्मयता से किए है।

अभी बंगाल एवं अन्य राज्यों के चुनाव में कोविड गाइड लाइन का बिल्कुल भी पालन नहीं किया गया,सत्ता स्वार्थ में डूबे नेताओं ने आम नागरिकों को उपयोग करके फेंक देने की वस्तु समझ लिया है, लगता है,इनकी आत्मा मर चुकी है,ये आम जनता का मांस खाने वाले राक्षस बन चुके हैं। मैं साहित्यकार हूं, लेकिन मैंने घर में बैठकर साहित्य लेखन करने की बजाय, निरीह जनता की भावनाओं को अभिव्यक्त करने का संकल्प लिया और अपनी युवावस्था से आज तक जनभावनाओं को अभिव्यक्त कर रहा हूं, यही कारण है कि लोग मुझे आ-आकर बताते हैं और निवेदन करते हैं कि आप हमारी इस समस्या को लेकर लिखो।

इस समय कोरोना से दिन-प्रतिदिन भयावह होती स्थिति से अवगत करा रहे हैं, सुन-सुनकर मेरी रूह कांप रही है, मैं प्रशासन के हाथ-पांव फूले हुए महसूस कर रहा हूं, मैं कल्पना में देख रहा हूं असहाय प्रशासन को और स्वास्थ्य माफिया एवं दवाई माफिया को लूट-पाट करते हुए।नेता अधिकारियों के माध्यम से ही अपने स्वार्थ सिद्ध किया करते हैं और अधिकारी धन एवं प्रमोशन की चाह में इन नेताओं के पांव में लोट लगाते हैं और अपना मान घटा लिया करते हैं। चूंकि जनता का सामना तो प्रशासन को ही करना होता है, इसलिए प्रशासन अपनी मोटी खाल बचाने के लिए आंकड़ों की बाजीगरी दिखा रहा है,आम नागरिकों को वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं करा रहा है.

प्रशासन द्वारा मृतक संख्या को छुपाया जा रहा है, प्रशासन के वरिष्ठाधिकारियों ने अपनी सुरक्षा चाक-चौबंद कर ली है और आम जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया है। मीडिया जगत के पत्रकारगण सरकारी भोंपू होकर दम तोड़ चुके हैं, पत्रकार प्रशासन की झूठी-सच्ची बातों को जनता को तो बता देते हैं, लेकिन जनता की पीड़ा-परेशानियों को रेखांकित नहीं करते,स्वार्थी दलाल होकर रह गए हैं पत्रकार।कोविड गाइड लाइन का पालन करवाने वाले खुद हताश होते नजर आने लगे हैं।

अच्युताय नमः अनंताय नम: गोविंदाय नमः।

पं. प्रदीप मोदी