तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन ने शुरू किया दुनिया के सबसे बड़े बांध का निर्माण, क्या भारत के लिए बनेगा मुसीबत?

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By Dileep MishraPublished On: July 20, 2025
ब्रह्मपुत्र नदी पर डैम

दक्षिण-पूर्व तिब्बत के निंगची क्षेत्र में चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी (यारलुंग त्सांगपो) पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की दिशा में पहला कदम उठा लिया है। चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने इस हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी, जिसे चीन “पर्यावरणीय विकास और कार्बन न्यूट्रल भविष्य” के रूप में प्रचारित कर रहा है।लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे इलाके में ने भारत समेत दक्षिण एशिया के कई देशों में चिंता की लहर दौड़ा दी है।

भारत की चिंता रणनीतिक और पर्यावरणीय

भारत ने इस प्रोजेक्ट को लेकर पहले ही कूटनीतिक आपत्ति दर्ज कराई थी। भारतीय विदेश मंत्रालय ने चेताया था कि किसी भी जल-प्रबंध गतिविधि से नीचे के इलाकों खासकर अरुणाचल और असम पर गंभीर असर पड़ सकता है। मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस डैम को “वॉटर बम” बताया है और कहा कि यह भारत की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए सीधा खतरा है। उन्होंने चेताया कि चीन को कोई अंतरराष्ट्रीय जल संधि बाध्य नहीं करती, जिससे उसका कदम अविश्वसनीय और अस्थिर माना जाना चाहिए।

भारत और बांग्लादेश पर असर?

अगर चीन पानी रोकता है, तो ब्रह्मपुत्र के बहाव में कमी आएगी। इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों विशेषकर असम और अरुणाचल प्रदेश में सूखे की स्थिति बन सकती है। इसके अलावा डैम से अगर अचानक पानी छोड़ा गया तो भारी बाढ़ आ सकती है, जैसा कि पिछले दशकों में कई बार झेलम, सिंधु और सतलुज जैसी नदियों के मामलों में देखा गया है। इसका असर कृषि और मछली पालन पर दिख सकता है। असम और बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र से कृषि, सिंचाई और मछली पालन पर निर्भर लाखों लोगों की आजीविका पर संकट आ सकता है। भारत और बांग्लादेश दोनों को ही इस परियोजना से जल-राजनीति का सामना करना पड़ सकता है, जिससे दोनों देशों की आंतरिक नीति और सीमा सुरक्षा भी प्रभावित हो सकती है।

चीन की मंशा हाइड्रोपावर या भू-राजनीतिक दबाव?

इस डैम परियोजना पर 167 अरब डॉलर खर्च किए जा रहे हैं, और इसके तहत 5 बड़े हाइड्रोपावर स्टेशन बनाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इससे बिजली उत्पादन क्षमता थ्री गॉर्जेस डैम से भी अधिक होगी जो पहले से दुनिया का सबसे बड़ा डैम है। सरकारी मीडिया का दावा है कि यह परियोजना तिब्बत में स्थानीय ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगी। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ ऊर्जा परियोजना नहीं, बल्कि “डैम डिप्लोमेसी” का हिस्सा है । जहां जल संसाधनों के जरिए नीचे बहने वाले देशों पर रणनीतिक दबाव बनाया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय जल-संधि का अभाव

चीन ने अभी तक कोई बाइंडिंग इंटरनेशनल रिवर वाटर ट्रीटी साइन नहीं की है, जबकि भारत और बांग्लादेश जैसी निचली धारा के देशों के लिए ऐसी संधियां जल-संरक्षण और आपदा रोकथाम के लिए अहम होती हैं। विश्व बैंक, UN और इंटरनेशनल रिवर बेसिन ऑर्गनाइजेशन बार-बार चीन से ट्रांसबाउंड्री जल सहयोग बढ़ाने की अपील करते आए हैं, लेकिन बीजिंग ने अक्सर इन्हें “आंतरिक मामला” करार देते हुए नजरअंदाज किया है। भारत के लिए यह चुनौती सिर्फ जल सुरक्षा की नहीं, रणनीतिक नियंत्रण और पर्यावरणीय संरक्षण की भी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को अब तीन मोर्चों पर काम करना होगा। जरूरी है कि सैटेलाइट और ड्रोन के ज़रिए निगरानी बढ़ाई जाए, स्ट्रैटेजिक जल भंडारण और वैकल्पिक जल स्रोतों पर काम हो और बांग्लादेश जैसे सहयोगी देशों के साथ मिलकर जल नीति पर संयुक्त पहल की जाए।