जीवन में चार आसक्तियाँ होती हैं वस्तु की आसक्ति : मुनिराज ऋषभरत्नविजयजी 

RitikRajput
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Indore : मुनिराज ऋषभरत्नविजयजी ने बताया जीवन में चार आसक्तियाँ होती हैं (वस्तु की आसक्ति, व्यक्ति के प्रति राग, विचार की आसक्ति एवं अहंकार की आसक्ति) वस्तु की आसक्ति के संबंध पूर्व के प्रवचन में बता चुके हैं। आज शेष तीन का वर्णन है।

1. व्यक्ति के प्रति आसक्ति – ऐसी आसक्ति मनुष्य को नरक में जाने की स्थिति उत्पन्न कर देती है। जो सोचेंगे वह नहीं मिलेगा किन्तु अगले भावों में उसमें पैदा जरूर हो जायेंगे। परंतु आध्यात्म में राग करने से इच्छित फल (मोक्ष एवं जिन शासन) की प्राप्ति होती है। जैसा की पूर्व प्रवचन में बताया गया है मनुष्य को इच्छा ही नहीं करना चाहिये क्योंकि इच्छा शरीर में होगी, शरीर है तो मन है और मन है तो राग है परंतु मोक्ष में यह सब नहीं है। इस संसार में स्वार्थ है इसलिये व्यक्ति के प्रति मोह हमारे पाप का कारण बन जाता है।

2. विचार की आसक्ति – विचारों की आसक्ति जीवन की लिये बहुत दु:खकारी एवं नरक गति का मार्ग प्रशस्त करती है। विचार की आसक्ति तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति की सोच बन जाति है कि, मेंने जो सोचा है वह ही सही है। जापान में हीरोशिमा एवं नागाशाकी का भयावह हादसा भी विचारों की आसक्ति का परिणाम था। साधु जीवन में विचारों का समर्पण है जबकि सांसारिक जीवन में इच्छाएं नहीं छूटती हैं। श्री हनुमान के समर्पण भाव भी विचारों की आसक्ति से परे थे जिनसे सबको प्रेरणा लेना चाहिये। तर्क जहाँ समाप्त होते हैं वहाँ पर श्रद्धा प्रारंभ होती है।

3. अहंकार की आसक्ति – यह आसक्ति हमको कही भी प्रवेश नहीं करने देती है। अहं व्यक्ति को तेड़ा बना देता है एवं अहं के कारण उसकी सोच स्थिर हो जाती है। अरिहंत की प्राप्ति के लिये हमेशा ‘नमों’ तभी अहं समाप्त होगा। अहं के तीन कारण हैं पहला – आदर की भूख, दूसरा-कदर की भूख एवं तीसरा – उपस्थिति की भूख। शरीर कडक और हृदय नरम तभी मिटेगा अहं।

मुनिवर का नीति वाक्य

“अहं जायेगा अर्हम आयेगा, अहं आध्यात्म की अड़चन है

युवा राजेश जैन ने बताया की इस अवसर पर  कमलजी फुलेचा, जयजी सुराना,  विकासजी जैन, श्रीमती संगीताजी चतर, विनीता मेहता व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं।  मुकेशजी पोरवाल, समिति सचिव ने जानकारी दी दिनांक 27/8 रविवार को पार्श्वनाथ भगवान की विशेष पूजा रखी गयी है।