योगिनी एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह व्रत न केवल शरीर को शुद्ध करता है, बल्कि आत्मा को भी दिव्यता प्रदान करता है। किंतु यदि यह व्रत किसी कारणवश टूट जाए, चाहे अनजाने में या किसी मजबूरीवश, तो व्यक्ति के मन में ग्लानि और संशय उत्पन्न होना स्वाभाविक है।
ऐसे में यह जानना आवश्यक है कि धर्मशास्त्रों में ऐसी परिस्थिति के लिए प्रायश्चित के उपाय बताए गए हैं, जिससे व्रत का पुण्य बना रहे और उसका अशुभ प्रभाव कम किया जा सके।

व्रत टूटने पर सबसे पहला कदम
जैसे ही आपको यह ज्ञात हो कि आपका व्रत खंडित हो गया है, तुरंत भगवान विष्णु या अपने आराध्य देव के समक्ष श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़कर क्षमा याचना करें। अपने मन की सच्चाई को व्यक्त करें और प्रार्थना करें कि वे आपकी भूल को क्षमा करें। यह आत्मस्वीकृति आपके हृदय की शुद्धता को दर्शाती है, जो भगवान को अत्यंत प्रिय होती है।
शुद्धिकरण और पूजा का महत्व
व्रत खंडित होने के पश्चात, स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें और उन्हें तुलसी दल अर्पित करें। स्वयं भी तुलसी के एक या दो पत्तों का सेवन करें। ध्यान रहे कि एकादशी पर तुलसी पत्ते तोड़ना वर्जित होता है, इसलिए पहले से रखे हुए पत्तों का ही प्रयोग करें। तुलसी विष्णुजी को अत्यंत प्रिय है और यह आत्मशुद्धि में सहायक होती है।
आध्यात्मिक उपाय
भगवान विष्णु के द्वादशाक्षर मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का यथासंभव जाप करें। रुद्राक्ष की माला से कम से कम 11 माला जाप करने का प्रयास करें। यह मंत्र अत्यंत प्रभावशाली है और श्रीहरि को शीघ्र प्रसन्न करता है। इसके साथ ही, आप विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं, जो आपके मन को शांति और शक्ति प्रदान करेगा।
दान और सेवा से मिलती है शांति
धर्मशास्त्रों के अनुसार, व्रत के खंडन के बाद दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। गाय को हरा चारा या रोटी खिलाना, किसी ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को भोजन, फल, पीले वस्त्र, चने की दाल या हल्दी का दान करना विशेष फलदायी होता है। यह न केवल आपके पापों का क्षय करता है, बल्कि भगवान की कृपा भी प्राप्त होती है।
यदि व्रत टूट गया है, तो आप अगली योगिनी एकादशी का व्रत अत्यधिक श्रद्धा से करने का संकल्प ले सकते हैं। कुछ परंपराओं में यह भी माना गया है कि अगर कोई एकादशी का व्रत खंडित हो जाए, तो निर्जला एकादशी (जो सभी एकादशियों का फल देती है) का व्रत करना प्रायश्चित स्वरूप उत्तम होता है।
सात्विक आचरण से मिलेगी आंतरिक शुद्धता
भले ही आपने व्रत तोड़ दिया हो, दिनभर सात्विक आहार लें। जैसे फलाहार, दूध, या बिना प्याज-लहसुन के भोजन। मन में शांति बनाए रखें, क्रोध, निंदा और नकारात्मकता से दूर रहें। संयमित आचरण और पवित्र विचार ही भगवान के सच्चे भक्ति मार्ग हैं।
व्रत का समापन सही ढंग से करें
अगर आप दिन में कुछ खा चुके हैं और अब व्रत जारी नहीं रख सकते, तब भी द्वादशी तिथि पर उचित समय पर पारण करें। इससे पहले भगवान विष्णु की पूजा करके उन्हें भोग अर्पित करें और फिर स्वयं प्रसाद के रूप में सात्विक भोजन ग्रहण करें। यह प्रक्रिया व्रत को सही ढंग से पूर्ण करने में सहायक होती है।
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