एमपी सरकार ने निरस्त किया Land Pooling Act, आदेश हुआ जारी

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By Raj RathorePublished On: December 16, 2025
Land Pooling Act MP

मध्य प्रदेश सरकार ने उज्जैन सिंहस्थ क्षेत्र के किसानों को बड़ी राहत दी है। सरकार ने सिंहस्थ क्षेत्र में जमीनों के स्थाई अधिग्रहण के लिए लागू किए गए ‘लैंड पूलिंग एक्ट’ (Land Pooling Act) को वापस लेने का फैसला किया है। इस संबंध में नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने आधिकारिक आदेश भी जारी कर दिए हैं।

यह निर्णय लंबे समय से चल रहे विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक दबाव का परिणाम है। स्थानीय किसान और जनप्रतिनिधि लगातार इस एक्ट का विरोध कर रहे थे, जिसका असर अब सरकारी फैसले के रूप में सामने आया है।

क्यों हो रहा था विरोध?

उज्जैन में आगामी सिंहस्थ कुंभ को देखते हुए विकास कार्यों और बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए जमीनों की आवश्यकता थी। इसके लिए सरकार ने लैंड पूलिंग एक्ट का सहारा लिया था, जिसके तहत किसानों की जमीनों का स्थाई अधिग्रहण किया जाना था। हालांकि, किसान अपनी पुश्तैनी जमीनें देने के पक्ष में नहीं थे।

एमपी सरकार ने निरस्त किया Land Pooling Act, आदेश हुआ जारी

किसानों का तर्क था कि स्थाई अधिग्रहण से उनकी आजीविका प्रभावित होगी। भारतीय किसान संघ ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था और लगातार आंदोलन कर रहा था। उनका कहना था कि सिंहस्थ एक अस्थायी आयोजन है, जिसके लिए जमीनों का स्थाई अधिग्रहण करना न्यायसंगत नहीं है।

विधायकों का भी था दबाव

इस मामले में सिर्फ किसान संगठन ही नहीं, बल्कि सत्ता पक्ष के विधायक भी सरकार के फैसले से सहमत नहीं थे। स्थानीय विधायकों ने मुख्यमंत्री और संबंधित विभाग के मंत्रियों के सामने कई बार यह मुद्दा उठाया था। उनका कहना था कि क्षेत्र में जनता के बीच इस एक्ट को लेकर भारी नाराजगी है।

विधायकों और भारतीय किसान संघ के संयुक्त दबाव के चलते सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। नगरीय विकास एवं आवास विभाग द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट किया गया है कि अब इस क्षेत्र में लैंड पूलिंग की प्रक्रिया को रोक दिया गया है।

क्या है लैंड पूलिंग एक्ट?

लैंड पूलिंग पॉलिसी के तहत सरकार विकास कार्यों के लिए भू-स्वामियों से जमीन लेती है और विकास के बाद विकसित जमीन का एक हिस्सा उन्हें वापस कर देती है। लेकिन सिंहस्थ क्षेत्र के मामले में किसान इस फॉर्मूले पर सहमत नहीं थे। वे चाहते थे कि उनकी जमीनों का मालिकाना हक उन्हीं के पास रहे और मेले के दौरान वे अपनी जमीनें अस्थायी तौर पर प्रशासन को देने के लिए तैयार थे, जैसा कि पूर्व में होता आया है।

सरकार के इस यू-टर्न से उज्जैन के हजारों किसान परिवारों ने राहत की सांस ली है। अब यह देखना होगा कि आगामी सिंहस्थ के लिए प्रशासन जमीन की व्यवस्था के लिए कौन सा वैकल्पिक रास्ता अपनाता है।