प्रदेश संगठन में पिछड़ी जाति के नए ‘चौधरी’ को नेतृत्व सौंपकर भाजपा ने विपक्ष के पीडीए समीकरण को साधने का संकेत दिया है। अब इसी रणनीति के तहत प्रदेश सरकार में भी बदलाव की तैयारी शुरू होने के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि मंत्रिमंडल विस्तार की समय-सीमा और उसका स्वरूप फिलहाल स्पष्ट नहीं है और इस मुद्दे पर आधिकारिक तौर पर चुप्पी बनी हुई है। सूत्रों के मुताबिक लखनऊ से लेकर दिल्ली तक, मंत्रिमंडल में फेरबदल के जरिए पीडीए समीकरण को संतुलित करने की रणनीति पर मंथन शुरू हो चुका है।
मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चर्चाएं पिछले वर्ष अक्टूबर में संगठन पर्व की शुरुआत के साथ ही शुरू हो गई थीं, लेकिन अब तक इसकी स्पष्ट रूपरेखा सामने नहीं आ सकी है। संगठन पर्व के समापन और पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलने के बाद एक बार फिर योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल की टीम में फेरबदल की अटकलें तेज हो गई हैं। बदले हुए राजनीतिक हालात में संभावित मंत्रिमंडल बदलाव के केंद्र में जातीय संतुलन सबसे अहम मुद्दा बनकर उभरा है।
सूत्रों के मुताबिक, वर्ष 2027 के चुनावी मुकाबले में विपक्ष के पीडीए गठजोड़ को प्रभावी चुनौती देने के उद्देश्य से यह रणनीति तैयार की जा रही है। माना जा रहा है कि वर्तमान मंत्रिमंडल में कुर्मी सहित अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित समाज से जुड़े मंत्रियों की भागीदारी और राजनीतिक प्रभाव बढ़ाया जा सकता है। इसके साथ ही कुछ मौजूदा चेहरों की जगह ऊर्जा और संगठनात्मक क्षमता वाले युवा विधायकों को अवसर मिलने की संभावना है।
विशेष रूप से पार्टी से दूरी बनाते दिख रहे कुर्मी समाज को साधने के लिए इस वर्ग के नेताओं को आगे बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है। हालांकि, अंतिम तस्वीर मंत्रिमंडल विस्तार के बाद ही स्पष्ट होगी, लेकिन संकेत यही हैं कि आगामी फेरबदल में सामाजिक संतुलन साधते हुए सरकार में भी पीडीए की छाप उभारने का प्रयास किया जाएगा।
क्षेत्रीय संतुलन बनाने पर भी मंथन
सूत्रों के अनुसार, प्रस्तावित मंत्रिमंडल विस्तार में पीडीए समीकरण के साथ-साथ क्षेत्रीय संतुलन साधने पर भी जोर दिया जाएगा। इस क्रम में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और मध्य यूपी को विशेष प्रतिनिधित्व मिलने की संभावना जताई जा रही है।









