कहां तक जाएगी टीआरपी की झूठी लड़ाई

Suruchi
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जयप्रकाश पाल

पिछले दिनो टीआरपी(TRP) स्कैम में गिरफ्तार हुई रिपब्लिक टीवी की पूर्व चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर प्रिया मुखर्जी (Priya Mukherjee) ने इसी हफ्ते इंडिया टीवी ग्रुप प्रेजिडेंट नेटवर्क डेवलमेंट के पद पर ज्वाइन किया है। ऐसा कहा जाता हैं कि प्रिया मुखर्जी को टीवी चैनल की टीआरपी बढ़ाने का खासा अनुभव है। इसी अनुभव के चलते उन्हें फेक टीआरपी घोटाले में गिरफ्तार कर जेल भी भेजा गया था। दरअसल ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) व्दारा टीवी चैनलों के लिए रेटिंग जारी की जाती है जिसके आधार पर उन्हें विज्ञापन हासिल होते है।

इसी रेटिंग के आधार पर टीवी चैनल अपने आप को इंडस्ट्री में सबसे आगे बताने लगते हैं। अभी तक टीवी -9 न्यूज चैनल बार्क व्दारा जारी रेटिंग के आधार पर अपने को सबसे ऊपर बता रहा है। जबकि हिंदी न्यूज समाचार चैनल्स के बाजार में इंडिया टीवी भी अपने को आगे बताने का दावा करता है। बार्क की यह रेटिंग किस आधार पर हासिल की जाती है विशेषज्ञों व्दारा इस मुद्दे पर अलग-अलग राय है मगर चर्चा का विषय वह नहीं है।

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टीआरपी की होड़ में शामिल टीवी चैनल्स बाजार में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाचढ़ा कर पेश करते है। इस हिस्सेदारी को कैसे मैनेज किया जाता है प्रिया मुखर्जी जैसे लोग इस बात से खासे वाकिफ हैं। प्रिया मुखर्जी रजत शर्मा व्दारा संचालित इंडिया टीवी में गईं हैं। रजत शर्मा न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए) के भी अध्यक्ष है। पिछले दिनों ही एनबीडीए ने बार्क व्दारा टीवी चैनल्स की रेटिंग में होने वाली गड़बड़ियों और अनियमितताओं को लेकर खासी चिंता दिखाई थी। एनबीडीए ने कहा था कि कुछ चैनल्स की अचानक ग्रोथ के पीछे छिपा हुआ एजेंडा है।

दिलचस्प है कि जिस एनबीडीए ने बार्क की रेटिंग पर सवालिया निशान लगाया उसी के अध्यक्ष रजत शर्मा है जिन्होंने रेटिंग स्कैम के आरोपों का सामना करने वाली प्रिया मुखर्जी को अपने चैनल में महत्वपूर्ण ओहदे पर तैनात किया है। इंडिया टीवी में अपनी आमद दर्ज कराते ही प्रिया मुखर्जी ने भी अपना हुनर दिखाना शुरू कर दिया। बॉर्क की रेटिंग में इंडिया टीवी ने शहरी क्षेत्रों में अपनी बढ़त बना ली। अचानक इंडिया टीवी के कुछ स्लॉट में उछाल आने की वजह प्रिया मुखर्जी को ही माना जा रहा है।

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दिलचस्प बात यह हैं कि इंडिया टीवी ने इस बीच कोई धमाका नहीं किया और ना ही कोई न्यूज ब्रेक की और ना ही कोई स्टिंग ऑपरेशन दिखाया फिर बॉर्क की रेटिंग में उछाल की वजह क्या है दूसरे चैनल सूक्ष्मदर्शी लगा कर इस खोजबीन में जुटे हैं। इससे पहले प्रिया मुखर्जी अपनी यही काबिलियत रिपब्लिक टीवी में भी इसी तरह दिखा चुकीं हैं। हालांकि मुंबई पुलिस ने उन्हें फर्जी टीआरपी स्कैम में गिरफ्तार कर जेल भेजा था और 3600 पेजों की भारीभरकम चार्जशिट में उनके जबरदस्त हुनर का उल्लेख किया गया था। बावजूद इसके प्रिया मुखर्जी पूरी धमक के साथ इंडिया टीवी में आ कर डट गईं हैं।

टीवी चैनल्स की रेटिंग को लेकर ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए) ने भी सवाल खड़े किए है। बीईए का कहना हैं कि टीआरपी के आंकड़ो में ईमानदारी, पारदर्शिता और तथ्यों की भारी कमी है। टीवी इंडस्ट्री से जुड़े कई पुरोधाओं व्दारा टीआरपी के खेल को खींचतान और दबावों से भरा बना दिया गया है। पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा का दावा करने वाले कई टीवी चैनल्स निहित स्वार्थ और अपने हितों के लिए अंधे होते जा रहे हैं। टीवी चैनल्स की इस लड़ाई में अभी कई सोपान आने वाले है जिसकी पहली कड़ी प्रिया मुखर्जी का इंडिया टीवी में पदार्पण है।

देश में टीआरपी की जो लड़ाई रिपब्लिक टीवी ने शुरू की थी उसे टीवी-9 ने चरण पर पहुंचा दिया। इस प्रतिस्पर्ध्दा में अभी चैनल एक दूसरे पर तीखे और अमर्यादित हमले करेंगे। जो चैनल्स बाहर बैठ कर इस लड़ाई को देख रहे है उन्हें अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए एकपक्षीय खबरों को दिखाने के बारे में सोचना होगा। टीवी-9 और रिपब्लिक टीवी व्दारा जिस मूर्खतापूर्ण तरीके से प्रायोजित खबरों को दिखाकर रेटिंग हासिल की जा रही है उसे बाजार अच्छी तरह से देख और समझ रहा है। अब इस लड़ाई में इंडियाटीवी की प्रिया मुखर्जी भी हाथ आजमाने का काम करेंगी।

दूसरी तरफ न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (एनबीएफ) का कहना हैं कि बार्क व्दारा रेटिंग सही तरीके से दी जा रही है। यह तहरीर ठीक उसी तरह की है जैसे अपराध करने वाला स्वयं को निर्दोष साबित कर दोषमुक्त होने का प्रपंच करता है। टीआरपी के इस खेल में टीवी चैनल सभी अनुचित तौर-तरीकों को अपना रहे हैं और झूठे डेटा को पेश कर अपना महिमा मंड़न कर रहे हैं। देश में टीवी विज्ञापन का सालाना कारोबार 32 हजार करोड़ रुपयों से ज्यादा का है।

इस धंधे में अपनी ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी समेटने के लिए टीवी चैनल्स खुली लड़ाई, गाली-गलौच, झूठ, तथ्यहिनता और अनैतिकता पर ऊतर आए है। भारत में यह सब अपराधिक कृत्य है मगर मीडिया के ऊपर शिकंजा कौन कसे इसे लेकर सरकार और सूचना प्रसारण मंत्रालय भी असमंजस में है। मगर जल्दी ही झूठी टीआरपी हासिल करने वाले चैनलों का खेल उजागर हो जाएगा क्योंकि दूसरे चैनल भी इस धंधे की सच्चाई हासिल करने के लिए स्पाई कंपनियों की सेवाएं ले रहे हैं।