जानिए विष्णु पुराण (Vishnu Purana) के उस अध्याय के बारे में, जिसमे कलयुग को लेकर है कई खुलासे

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भगवान विष्णु को श्रिष्टि का पालनहार कहा जाता है, कहते है की पूरी दुनिया प्रभु के द्वारा ही चलाई जा रही है भगवान विष्णु की कथा व् गाथा तो हम सबने भौत बार सुनी है लेकिन विष्णु पुराण इन सबमे अपनी अलग पेचान रखता है विष्णु पुराण में कलियुग में होने वाली घटनाओं के बारे में बहुत ही विस्तार से बताया गया है. इस पुराण में कलयुग में होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं और स्थितियों को भी बताया गया है. इसके छठे अंश के पहले अध्याय में कलिधर्मनिरुपण को बताया गया है, जिसका उल्लेख महर्षि वेदव्यास के पिता महर्षि पराशर ने मैत्रेय ऋषि को किया था. विष्णु पुराण में कलयुग में होने वाली कमाई और उसके बारे में महर्षि पराशर ने क्या कहा?

महर्षि पराशर ने मैत्रेय ऋषि को बताया था कि कलयुग बड़ा ही विचित्र युग होगा. इसमें धार्मिक व्यवस्थाएं जो सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में बनी है. उनका लोप हो जाएगा और मनुष्य का धर्म और कर्म बस एक ही रह जाएगा, किसी भी प्रकार से धन कमाना. इस कलयुग काल में धन ही शक्ति का और प्रभाव को बताने वाला होगा. इसलिए लोग अपने प्रभाव और सत्ता को जताने के लिए अच्छा-बुरा, धर्म-अधर्म का विचार किए बिना जैसे भी होगा धन कमाने के लिए बेचैन रहेंगे, लेकिन खूब धन कमाने पर भी मनुष्यों को संतुष्टि नहीं होगी और वह कर्जदार ही बना रहेगा.

कितना भी धन कमा ले इंसान हमेशा कर्जदार रहेगा

कलियुग के गुण धर्म को बताते हुए महर्षि पराशर ने मैत्रेय ऋषि से कहा था कि कलयुग में मनुष्य कितना भी कमा लेगा, लेकिन उसे बरकत की अनुभूति नहीं होगी. इसकी वजह यह है कि लोग लाखों में कमाएंगे या करोड़ों में अपने सामर्थ्य और धन के अनुसार अपने लिए घर बनाने के लिए जीवनभर कमाएंगे. वह धन घर बनाने में लगा देंगे. इसका अर्थ महर्षि पराशर का आज के होम लोन से होगा. पहले तो लोन लेकर इंसान घर बनाएगा, फिर सारी जिंदगी उसे चुकाने में लगा देगा.

खुद को श्रेष्ठ बताने के लिए करेगा होड़

वहीं कलियुग के बारे में महर्षि पराशर ने विष्णु पुराण में यह भी कहा है कि कलयुग में मनुष्य को जरा सा पद और धन प्राप्त हो जाएगा तो वह उसमें ही अहंकार दिखाने लगेगा. लोगों में अल्प धन से ही अहंकार भर जाएगा और दूसरों को दबाने की कोशिश करेगा. लोगों में खुद को श्रेष्ठ बताने की होड़ रहेगी. सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर में मनुष्य के पास जितना भी धन होगा उससे वह संतुष्ट होगा और खुद भूखा रहकर भी अतिथि का सत्कार करेगा, लेकिन कलयुग में लोग अपने धन को अतिथियों और दान में खर्च करने की बजाय खुद के सुख-आनंद पर व्यय करेंगे.

कलयुग में जिसमें धन ही प्रधान होगा. शादी के लिए मनुष्य का गुण, कर्म और उनका ज्ञान नहीं बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति देखी जाएगी. लोग विवाह उन्हीं के साथ करना चाहेंगे जिनके पास धन हो. लोग धन के लालच में जीवनसाथी का भी त्याग करेंगे और जिनके पास धन होगा उनसे संबंध बनाएंगे.

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