साहित्य
कहो तो कह दूँ = तुम्हारी सहेली तो बहुत हसीन है
चैतन्य भट्ट एक तो लोग बाग़ कोरोना से हलाकान हैं, न कोई किसी के घर जा रहा है न कोई किसी के घर आ रहा है, अगर भूले भटके कोई
राज-काज
@दिनेश निगम ‘त्यागी’भाजपा जीत को लेकर आश्वस्त नहीं, आशंकित…. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित भाजपा के नेताओं का दावा है कि उप चुनावों में वह सभी 28 सीटें
मुस्लिम जगत की कश्मकश पर ताजा किताब-‘उफ ये मौलाना’
दिल्ली। पत्रकार-लेखक विजय मनोहर तिवारी की ताजा किताब ‘उफ ये मौलाना’ छपकर आ रही है। गरुड़ प्रकाशन की ओर से इसकी घोषणा की गई है। चार सौ बीस पेज की
मनाचे स्मृति पुस्तक के अनावरण समारोह संपन्न
समाज को दिशा देने तथा दैनंदनी की समस्याओं का व्यावहारिक समाधान देने के लिए मराठी गुरु रामदास स्वामी के द्वारा प्रतिपादित ‘मनाचे श्लोक’ आज भी प्रासंगिक माने जाते हैंl मिनल
मुहावरे कुछ कह रहे
कुछ भी कितना भी करलोस्वयं को नही कर सकते सिद्धघर का जोगी जोगड़ा होता हैऔर अन्य गांव का होता है सिद्ध दूर के ढोल सुहाने लगते हैये मेरी नही हम
अपने बच्चों को एक बेहतर नागरिक बनाइये और समृद्ध भारत के निर्माण में दें अपना योगदान
अपने बेटे को एक अच्छा नागरिक, अच्छा पति, अच्छा दामाद बनने की शिक्षा दे और एक अच्छे समाज के निर्माण में अपना योगदान दें । अपनी बेटी को वैसी ही
रंगनाथन की पुण्यतिथि पर स्थापित हो रहा “सदाशिव कौतुक भाषा उन्नयन सम्मान”
साहित्य जगत के समस्त साथियों को सूचित किया जाता है कि इंदौर संभाग पुस्तकालय संघ द्वारा साहित्य जगत में भाषा के प्रति लगाव, लेखन एवं पठन-पाठन में नियमित रूचि बनी
संजीव ! तुम इस तरह नहीं जा सकते
राजेश बादल कभी तड़के चार बजे मैं फ़ोन नहीं देखता। आज नींद टूट गई। बहुत कोशिश की। फिर नहीं आई। हारकर फ़ोन उठा ही लिया। देखा तो शशि केसवानी का
भूखा बच्चा लिए गोद में लिए कोलकाता में हुई “प्रवासी मां” की प्रतिमा स्थापित
महामारी ने छीनी रोटीपैदल अपने गांव चली।भूखा बच्चा लिए गोद मेंमैया नंगे पांव चली। छोड़-छाड़ कर शहर-ए-बेदिल,दूर बहुत है उसकी मंज़िल।तन बेदम है, मन है व्याकुल,सहकर कितने घाव चली।…मैया नंगे
सतत 5 घंटे चला कवि सम्मेलन, कविताओं की प्रस्तुति ने मन को कर दिया सैनेटाइज़
सतत पांच घंटे तक चला कवि सम्मेलन। काव्य रस में डूब गये श्रोता। प्रेस क्लब के सभाकक्ष में अ. भा. कवि सम्मेलन संपन्न हुआ, जिसमें देश भर से आए नामचीन
”जाने वाले”…
जाना था कि एक दिन जाना होगापर कहाँ, कैसे- कब नहीं जाना था…ऐसे जाओगे इतनी दूर माना नहीं थासोचते ही मन घबराता था …एक अजीब सा शून्य भर जाता…सब विचार
अहम ब्रम्हास्मि
जोड़ नाता मानवता सेईश्वर मिलेगा सरलता से ।। जो ढूंढ रहा है तू बाहरवो बैठा है तेरे ही भीतरखोल कपाट अंतस केकर दर्शन परमात्मा केजीवन के खेल निरालेकुछ उजले कुछ
मेरा गांव
दूर मेरा गांव हैमन करता हैउड़ के चला जाऊंमाँ तेरे पास आऊमन करता हैमन करता है ।। शहर के कोलाहल सेयहाँ के हलाहल सेकही खो न जाऊडर सा लगता हैअपनी
विहान
बंद कमरे कीखिड़कियां खोल दे ,कब तक बैठा रहेगाकुछ गमलों में पौधेउगा कर ।खोल देकपाट अंतस केकर स्वागतप्राची से उदित होतेआदित्य का ,भर जाएगातेरा ह्दयप्रकाश से ।
पुण्यतिथि विशेष : “काल के कपाल” पर अंकित “विचार प्रवाह” स्व गौड़ साहब
14 अक्टूबर प्रथम पुण्यतिथि“काल के कपाल” पर अंकित “विचार प्रवाह” स्व गौड़ साहबअपनी सनातन विचारधारा के लिए शासकीय नौकरी से त्यागपत्र देकर. स्वदेश में पत्रकार के रूप में काम करने
जिंदगी
चलते चलते राह मेंठहर गई है जिंदगीकांटा बन के पाव मेंचुभ गई है जिंदगी । क्या गुप्तगु करेतुझसे ये मेरे दोस्तजुंबा पत्थर कीबन गई है जिंदगी । बड़ा आसान है
जीवनसंगिनी
कौन हो तुमनीले आसमान मेंगुलाबी शफ़क़ सीगुलाब की पंखुरी परठहरे बारिश की बूंद सीसरगोशी करतीचंचल हवाओं सीअभी अभी जोचलना सीखा हैंउस मासूम बच्चे कीमुस्कान सीतुलसी वृन्दावनपर जल रहे दीये सीझगड़ने
कोविड काल
वीरान हर सड़क हैआरक्षी यहा कड़क है कोरोना का रोना हैघर पर ही रहना है जीवन से कर प्रेम हैवरना खाली फ्रेम है जो देश पे छाया हैवो मौत का
नेति नेति
मैं आसमान कोघूर रहा था ,आसमान मुझे । दो चार पक्षीइधर से उधरउड़ते चले गए । बदलो के टुकड़ेन जाने क्योंसूरज को छुपा देनाचाहते है । सत्य कही छुपता हैइस
मत्स्य न्याय
कमसिन भेड़ो का गोश्तचाव से खा रहे है भेड़िए आजकल रोज बेख़ौफ़दावतें उड़ा रहे है भेड़िए डर लगे भी उन्हें तो किसकारखवाला दोस्त बना रहे है भेड़िए भेड़ें किस पर