अवनीश जैन का असमय चले जाना बहुत दुखदायी है – अरविंद तिवारी

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Indore: तिलक नगर मुक्तिधाम पर आज सुबह अवनीश जैन को अंतिम विदाई दी गई। परिजनों के साथ ही मित्र, शुभचिंतक और पत्रकार साथी भी मौजूद थे। वहां डॉ. भरत अग्रवाल थे, लक्ष्मीप्रसाद पंत थे, अन्ना दुरई थे, राहुल पाराशर थे, अनिल भंडारी थे और बातचीत के बीच ही डॉ. अजय पारिख भी आ गए थे। चर्चा शुरू हुई कि एकदम ऐसा क्या हुआ कि अवनीश जी हमें असमय छोड़कर चले गए। उनका इस तरह चले जाना सबके लिए बहुत चौंकाने वाला था।
मेडिकल मामलों में हमेशा सबकी, यहां तक कि किसी अपरिचित की भी मदद के लिए तत्पर रहने वाले डॉ. अग्रवाल को दुख इस बात का था कि अवनीश ने फरवरी की शुरुआत में उन्हें पहली बार अपनी बीमारी के बारे में बताया। तब तक बात बहुत बिगड़ चुकी थी। फिर भी बहुत कोशिश की गई, पर दिन ब दिन स्थिति बिगड़ती गई, हम उन्हें बचा नहीं पाए। डॉ. अग्रवाल और अवनीश इंदौर हो, भोपाल हो या फिर दिल्ली हमेशा संपर्क में रहते थे। उन्हें अफसोस इस बात का था कि दिल्ली में एक ही बिल्डिंग में ऊपर-नीचे दफ्तर होने के बावजूद अपनी बीमारी से संबंधित कई बातें अवनीश उनसे छुपा जाते थे। वे बोले संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह में बीमार होने के बावजूद अवनीश के पहुंचने की जानकारी मिलने पर जब मैंने उनसे कहा कि तबियत ठीक नहीं होने के बाद भी वहां क्यों गए, तो वे बोले थे कि हिस्टोरिक मोमेंट था और मैं इसका साक्षी बनना चाहता था। इसी रात से उनकी तबियत बिगडऩे लगी और फिर 10 दिन वे अस्पताल में ही रहे। वे कब इंदौर आकर बाम्बे हास्पिटल में भर्ती हो जाते थे, इसकी किसी को जानकारी ही नहीं रहती थी।
अनिल भंडारी बोले महीनेभर पहले ही वे मुझसे मिलने आए थे। घर पर आधा घंटा मेरे साथ रहे, पर अहसास ही नहीं होने दिया कि उन्हें इतनी गंभीर बीमारी है। डॉ. अजय पारिख भी चौंके हुए थे। बोले अक्सर बात होती रहती थी, पर इस बारे में कभी बात ही नहीं करते थे। बातचीत के बीच ही डॉ. अग्रवाल ने अन्ना दुरई से पूछा कि अन्ना तुम्हें पहली बार कब अवनीश की बीमारी का पता चला। अन्ना बोले दो महीने पहले ही। डॉ. अग्रवाल बोले दो साल से उसे दिक्कत थी और अन्ना जैसे मित्र को उसने दो महीने पहले बताया। अब बारी राहुल पाराशर की थी। वे बोले अवनीश जी का जोर इस बात पर रहता था कि मेरी बीमारी के बारे में किसी को बताना मत। फरवरी में जब मैंने उनसे पूछा कि आपने डॉ. भरत अग्रवाल को बताया है या नहीं, तो उनका जवाब था नहीं। मैंने कहा सबसे पहले उन्हें बताइए। इसी के बाद उन्होंने डॉ. अग्रवाल से अपनी बीमारी के बारे में बात की। चर्चा के इसी दौर में यह खुलासा हुआ कि कुछ दिनों पहले अवनीश ने एंजियोग्राफी करवाई थी और सभी मेन आर्टिरीज में ब्लॉकेज निकले थे।
अवनीश जैन और मैंने 1989-90 के आसपास ही पत्रकारिता की शुरुआत की थी। बहुत ज्यादा संपर्क नहीं रहा, पर अन्ना दुरई और प्रवीण खारीवाल जैसे कॉमन फ्रेंड्स के कारण अवनीश हमेशा चर्चा में रहते थे। बाद में वे दिल्ली चले गए और आईआईएमसी में पढ़ाई पूरी करने के बाद अलग-अलग समाचार पत्रों में अलग-अलग भूमिकाओं में रहे। दिल्ली में उनसे मुलाकात होती रहती थी। उनके दैनिक भास्कर इंदौर का संपादक बनने के बाद हमारे बीच जबरदस्त मतभेद हुए। बात जब कल्पेश याग्यनिक के माध्यम से सुधीर जी तक पहुंची तो फिर विवाद टालने के लिए उन्होंने मुझे भास्कर टीवी का संपादक बना दिया। इसके बाद अवनीश से मेरा संपर्क कभी नहीं रहा। सालभर पहले श्रवण गर्ग जी के परिवार द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में जब मैंने उन्हें देखा तो चौंक पड़ा। बिलकुल बदले हुए अवनीश थे। वजन बहुत कम हो गया था। चेहरे पर कालापन था। बाल सफेद हो गए थे। बबलू पाठक मेरे साथ थे। मैंने उनसे पूछा कि अवनीश को आखिर क्या हो गया तो, वे भी कुछ बता नहीं पाए।
उनके भोपाल से दिल्ली जाने के बाद दिल्ली के साथियों से यह सूचना मिलती रहती थी कि अवनीश कुछ छिपा रहे हैं। उनकी तबियत ठीक नहीं है, दिन ब दिन वे दुबले होते जा रहे हैं। चेहरे पर कालापन बढ़ता जा रहा है। पूछो तो कहते हैं, सब ठीक है। बस शुगर कंट्रोल नहीं हो रही है। यहां सवाल यह उठता है कि अपनी बीमारी को लेकर आखिर वे इतना सब छुपा क्यों रहे थे। अपने साथियों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले अवनीश ने आखिर ऐसा क्यों किया। अपनी बीमारी का दर्द आखिर उन्होंने डॉ. अग्रवाल जैसे अपने सबसे बड़े शुभचिंतक से क्यों समय पर शेयर नहीं किया। क्यों वे राहुल पाराशर से बार-बार यह कहते थे कि मेरी बीमारी के बारे में किसी को मत बताना। जब वे बाम्बे हास्पिटल में इलाज के लिए भर्ती होते थे तो उनका जोर इस बात पर रहता था कि यह बात उनके सर्कल के लोगों को पता न चले। कितनी सीक्रेसी मेंटेन करने का आखिर कारण क्या था। ‌ इसे सिक्रेसी के बजाय खुद को लेकर लापरवाही भी कहा जा सकता है। जितना अखबार को लेकर वे सतर्क रहते थे, उतना यदि अपनी बीमारी को लेकर वे सतर्क रहते तो वे कई साल और हमारे बीच ही रहते। अवनीश का इस तरह चला जाना बहुत दुखदायी है।
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।