एनके त्रिपाठी
कमलनाथ ने बिलकुल ठीक कहा है कि राजीव गांधी के कंप्यूटरीकरण एवं इन्फ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के कार्यक्रम का उस समय की विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया था।बैंकों तथा इसी प्रकार के कुछ अन्य संगठनों के कर्मचारियों की यूनियनों ने अपनी नौकरी जाने के भय से इसके विरोध में आंदोलन प्रारंभ किया था। सड़कों पर इनकी भीड़ देखकर सभी विपक्षी पार्टियां,विशेष रूप से वामपंथी पार्टियां, इस विरोध में सम्मिलित हो गईं।
स्वतंत्रता के बाद शनैः शनैः सभी पार्टियों के आदर्श और विचारधाराएँ केवल दिखावे के लिये रह गई और वे सुविधा की राजनीति करने लगीं। वोटों के लिए तात्कालिक एवं भावनात्मक मुद्दों को जोर शोर से उठाने का सबने प्रयास किया। लंबी अवधि के बारे में इन पार्टियों ने तथा साथ ही देश ने सोचना भी बंद कर दिया। फिर भी सभी पार्टियों की सरकारों में अनेक प्रकार की विकृतियाँ आ जाने के उपरांत भी कभी कभी अंतरात्मा के दबाव में कुछ अच्छे निर्णय और कार्य होते रहे हैं। लेकिन किसी सरकार ने जब भी कोई अच्छे क़दम उठाने का साहस किया तो बिना झिझक तत्काल विपक्ष उसके विरुद्ध लामबंद होता रहा है। पुराने इतिहास में न जाते हुए आपको याद दिलाना चाहूंगा कि UPA सरकार के समय लाए गए अनेक सुधारों का, जिनमें प्रमुख आधार कार्ड था, BJP ने घोर विरोध किया था। वर्तमान में मोदी सरकार ने न केवल आधार कार्ड को जोरशोर से अपनाया है बल्कि उनकी सारी जनोन्मुखी योजनाएँ आधार कार्ड पर ही आधारित है।मोदी ने आते ही उत्साहपूर्वक आर्थिक विकास के लिए लेबर और भूमि सुधार करने के प्रयास किये जिसे कांग्रेस और विपक्ष ने बदला लेने के लिए राज्यसभा में धराशायी कर दिया।अब तो हमारे प्रजातंत्र का अघोषित सिद्धांत हो गया है कि विपक्ष में रहो तो सरकार को अच्छे काम ही न करने दो जिससे विपक्ष के सत्ता में आने की संभावना अधिक हो जाए। देश को इस राजनीति से बहुत आघात पहुँचा है।
यहाँ मैं विशेष रूप से तिरुवनंतपुरम के एयरपोर्ट के आधुनिकीकरण के लिये निजी सेक्टर के सहयोग की बात करना चाहता हूँ।केरल की वामपंथी सरकार ने केंद्र शासन के इस क़दम का सख़्त विरोध किया है। केंद्र सरकार के विरोध के नाम पर कांग्रेस सहित केरल के अन्य विपक्षी दल भी केरल की वामपंथी सरकार के साथ खड़े हो गए हैं। यह प्रशंसनीय है कि पार्टी लाइन तोड़ते हुए शशि थरूर ने तिरुवनंतपुरम के एयरपोर्ट के आधुनिकीकरण के लिये निजी सहयोग के प्रस्ताव का पुरज़ोर स्वागत किया है और कहा है कि एक उच्च गुणवत्ता वाले एयरपोर्ट की आवश्यकता है । यहाँ उल्लेखनीय है कि इस एयरपोर्ट के उन्नयन के लिए अडाणी एंटरप्राइज़स को लीज़ पर दिया जाना है। यह कार्रवाई खुली निविदा के द्वारा की गई है जिसमें शासन को अधिकतम धन राशि देने वाली कंपनी को लीज़ दी जाना थी। यह भी उल्लेखनीय है कि इस निविदा में स्वयं केरल सरकार के कॉरपोरेशन ने भाग लिया था तथा केन्द्र सरकार ने उदारता दिखाते हुए यह भी कहा था कि केरल सरकार की निविदा उच्चतम निविदा से 10प्रतिशत कम होने पर भी केरल सरकार को ही लीज़ दी जाएगी।अडाणी एंटरप्राइजेस की निविदा केरल सरकार की निविदा से 20 प्रतिशत अधिक थी।केरल सरकार इस बात के लिए तैयार है कि इस एयरपोर्ट को यथावत रखा जाए परंतु इस योजना को कार्यान्वित न किया जाए ।
पश्चिम बंगाल की मार्क्सवादी सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस कलकत्ता एयरपोर्ट की भी ऐसी ही दुर्दशा की थी। जब दिल्ली, मुम्बई,बैंगलोर हैदराबाद और चेन्नई के एयरपोर्टों का निजी सहयोग से आधुनिकीकरण हो रहा था तब मार्क्सवादी सरकार ने कोलकाता में ऐसा नहीं होने दिया। मैं 2011 में अंडमान जाते समय कोलकाता एयरपोर्ट के VIP लाउंज में कुछ घंटे रूका था।बाहर मूसलाधार पानी गिरने के कारण VIP लाउंज में भी बुरी तरह से पानी टपक रहा था। ममता की तृणमूल सरकार आने के पश्चात ही एयरपोर्ट के आधुनिकीकरण का कार्यक्रम प्रारंभ हो सका। यद्यपि अपनी नीतियों में ममता बैनर्जी मार्क्सवादियों से भी अधिक वामपंथी है परन्तु एयरपोर्ट के मामले में उन्होंने कोई अड़ंगा नहीं लगाया जिसके लिए मैं उनकी प्रशंसा करता हूँ।
अंततोगत्वा, मैं यह स्वीकार करूँगा कि यह एक छोटे एयरपोर्ट का ही मामला है। लेकिन विचारणीय है कि इक्कीसवीं सदी का समय तेज़ी से आगे बढ़ता जा रहा है और हमारा इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं आर्थिक विकास तेज गति नहीं पकड़ पा रहा है। पिछले 10 साल से भारतीय अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है।हमने चीन से तो अब अपनी तुलना करनी ही बंद कर दी है, परन्तु अब तो बांग्लादेश, श्रीलंका समेत दक्षिण पूर्वी एशिया के देश भी हमसे आगे निकले जा रहें हैं।आर्थिक विकास के लिये आवश्यक नीतियों का विस्तृत वर्णन यहाँ न करते हुए केवल इतना कहना चाहूंगा कि अब समय आ गया है कि सभी राजनैतिक दल देश हित में विकास के लिए एक न्यूनतम कार्यक्रम पर आपसी सहमति बना लें।