शशिकान्त गुप्ते
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना है।पत्रकार समाज का सजग प्रहरी होता है।स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारों की अहम भूमिका रही। पत्रकारिता के माध्यम विदेशी हुक्मरानों से लोहा लेने वाले पत्रकारों में प्रमुख भूमिका रही है,लाल लाजपत राय, महामना मदनमोहन मानवीय,विपिनचन्द्र पाल, बाल गंगाधर तिलक,गणेश शंकर विद्यार्थी आदि ऐसे अनेक क्रांतिकारी पत्रकार रहे हैं।यह लोग देश की आजादी की के साथ समता मूलक समाज की स्थापना के लिए सतत संघर्षशील रहे हैं।
स्वतन्त्रता संग्राम के समय पत्रकारिता के इतिहास की एक हकीकत है।इस हक़ीक़त को पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर कहा है।वाक़िया इस प्रकार है,स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान एक उर्दू अखबार में इश्तिहार छपा था। “सम्पादक चाहिए,मेहनताना यदि आधी रोटी मिल जाए तो,नसीब समझना,लेकिन पारितोषिक के रूप में जेल जरूर जाना पड़ सकता है
इस इश्तिहार के पढ़ने बाद भी साठ लोगों ने आवेदन किया था,और सभी जैल गए थे। यह इतिहास पढ़कर वर्तमान पत्रकारिता पर शर्म आती है।उस समय पत्रकारों में देश को स्वतंत्र करने का जुनून था।आज स्वतंत्र देश कुछ मीडिया संचालक और इन समाचार माध्यमों में कार्यरत पत्रकार, सत्तापक्ष की चाटूकारिता के साथ कॉरपोरेट क्षेत्र की कठपुतलियां बनकर रह गए हैं।
प्रख्यात समाजवादी विचारक,चिंतक स्व.रामनोहर लोहियाजी ने कहा है कि,वाणी की स्वतंत्रता के साथ कर्म पर नियंत्रण भी होना चाहिए कर्म पर नियंत्रण से लोहियाजी का तात्पर्य रहा है।भाषा संयमित होना चाहिए।लोहियाजी ने इस बात को समझाते हुए कहा है कि,आपको अपने वरिष्ठ का भी विरोध करने का हक़ है,लेकिन विरोध करते समय आपकी भाषा मर्यादित होना चाहिए।
असहमति तो लोकतंत्र की बुनियाद है।यदि विरोध के स्वरों को दबाया,कुचला जाएगा तो लोकतंत्र कमजोर होगा। पिछले छः वर्षों में एक नई परिपाटी की शुरुआत हुई है।देश के कुछ न्यूज चैनल पर देश की मूलभूत समस्याओं पर कोई बहस नहीं होती है। देश की बुनियादी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए ही साम्प्रदायिकता पर बहस करवाई जाती है।
देश में बद से बदतर होती आर्थिक स्थिति,शिक्षा पद्धति में अमूलचूल परिवर्तन होना चाहिए?बेरोजगारों के सवालों पर प्रश्न?महंगाई पर बहस? बिगड़ती कानून व्यवस्था?
आदि मुद्दों पर कोई भी बहस नहीं होती है।आश्चर्य होता है कि कुछ बिकाऊ न्यूज चैनलों के एंकर, सत्ता पक्ष के प्रवक्ताओं से कोई प्रश्न ही नहीं करते हैं।सवाल विपक्ष किए जाते हैं।कुछ न्यूज चैनलों के एंकरों की भाषा और उनके सवाल सुनकर तो ऐसे लगता है,यह एंकर स्वयं सत्ता पक्ष प्रवक्ता बनकर बैठे हैं। लोकतंत्र को कमजोर करने का एक सुनियोजित षड़यंत्र चल रहा है।
वर्तमान में सबसे अहम प्रश्न तो यह है कि, वसुदेवकुटुम्बकम की धारणा को मूर्त रूप देने के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए,ऐसे समय धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने की साजिश की जा रही है। इनलोगों ने यह बात अपने जहन में अच्छे से उतार लेनी चाहिए। भारत की माटी में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र मजबूती से रचा बसा है,इस कोई भी ताकत मिटा नही सकती इतिहास साक्षी है। पत्रकार समाज का सजग प्रहरी होता है।पहरेदार ही चोरों,और लुटेरों से सांठ गांठ करले तो कैसे चलेगा?
यह भी प्रकृति का नियम है,समय परिवतरनशील है। अति का अंत सुनिश्चित है। अखबारों के लिए,प्रख्यात शायर स्व.अकबर इलाहाबादी ने कहा है।
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो,
जब तोप मुक़ाबिल होतो अखबार निकालो