दिनेश निगम ‘त्यागी’
मुरलीधर जी, जनता नालायकों को नहीं चुनती….
– जिन सांसदों, विधायकों को जनता बार-बार चुनकर अपने सिर आंखों पर बैठाती है। अपनी समस्याओं के समाधान एवं क्षेत्र के विकास के लायक समझती है। उन्हें भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने नालायक ठहरा दिया। सवाल है कि क्या जनप्रतिनिधियों के लिए ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए? सांसद और विधायक बनने के बाद ही नेता प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री बनता है। यदि कोई बार-बार सांसद और विधायक चुना जा रहा है और मुख्यमंत्री या मंत्री बनने की ख्वाहिश रखता है। पात्र होने के बावजूद उसे मौका नहीं दिया जाता।
उसकी तुलना में अपपेक्षाकृत नए या अन्य दलों से आए नेताओं को मौका दे दिया जाता है। इससे यदि वह असंतुष्ट होता है और मौका न दिए जाने की बात करता है तो क्या उसे नालायक कहा जाना चाहिए? पार्टी नेताओं की राय है कि मुरलीधर को जनप्रतिनिधियों के लिए ऐसी टिप्पणी नहीं करना चाहिए। नेता की आगे बढ़ने की ललक के लिए उसे नालायक नहीं ठहराया जा सकता। मुरलीधर को इतनी समझ होना चाहिए कि नालायकों को जनता कभी नहीं चुनती। ऐसी टिप्पणी कर वे जनता की योग्यता पर सवाल उठा रहे है। यह जनता के निर्णय का अपमान भी है।
समानांतर संगठन चलाने वालों को घर बैठाया….
– भाजपा नेतृत्व ने संभागीय संगठन मंत्रियों की व्यवस्था समाप्त कर दी। इन पदों पर काम करने वालों को घर बैठा दिया गया। अब ये भाजपा की कार्यकारिणी में महज सदस्य होंगे। भाजपा ने यह फैसला अचानक नहीं लिया। इसके संकेत काफी पहले से मिल रहे थे। दरअसल, संघ से आए ये संगठन मंत्री संभागों और जिलों में समानांतर संगठन और सरकार जैसी चला रहे थे। छोटे-मोटे नेता छोड़िए, मंत्री और विधायक तक इनके आगे-पीछे घूमते थे। ये जो कह देते पत्थर की लकीर होती थी। इनकी बात न मंत्री, विधायक टाल सकते थे, न ही आला अफसर। डर था कि ये संघ और भाजपा नेतृत्व में शिकायत कर देंगे।
टिकट वितरण में भी इनकी राय को अहमियत मिलती थी। कई संगठन मंत्रियों की वजह से संघ की साख पर बट्टा लग रहा था। इनके खिलाफ लगातार शिकायतें मिल रही थीं। लिहाजा, यह व्यवस्था समाप्त करने का निर्णय लिया गया। खास बात यह है कि इन्हें संघ ने वापस नहीं लिया बल्कि भाजपा में ही रहने दिया गया। माना गया कि ये अब भाजपा में रच-बस चुके हैं। खबर है कि अब प्रदेश को संघ की तरह तीन अंचलों में बांटकर सह संगठन मंत्री तैनात किए जाएंगे। इसके लिए संघ से दो और नेता भाजपा में लाए जा सकते हैं।
हिस्से में इंतजार, इंतजार और सिर्फ इंतजार….
– निगम-मंडलों में पहले प्रद्युम्न सिंह लोधी की नियुक्ति हुई थी, इसके बाद राहुल लोधी की। ये दोनों कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे। अखिलेश्वरानंद को गौ संबर्धन बोर्ड का अध्यक्ष बनाया जा चुका है। अभी गौरीशंकर बिसेन को पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग एवं शिव चौबे को सामान्य वर्ग निर्धन आयोग का अध्यक्ष बनाकर मंत्री पद का दर्जा दिया गया। इस तरह निगम-मंडलों में नियुक्तियों का सिलसिला जारी है, लेकिन इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया और एंदल सिंह कंसाना जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक सिर्फ इंतजार कर रहे हैं। ये तीनों कमलनाथ सरकार में मंत्री थे और सिंधिया के साथ कांगे्रस छोड़कर भाजपा में आए थे।
तीनों उप चुनाव लड़े और हार गए। अब ये न विधायक हैं, न ही मंत्री। इन्हें निगम-मंडलों में लेने के लिए सिंधिया लगातार दबाव बनाए हुए हैं। कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। इन तीनों के नाम पर सहमति बन गई बताई जाती है, लेकिन अब तक मौका नहीं मिला। इनकी पीड़ा यह है कि मंत्री पद छोड़कर भाजपा में आए, सरकार बनवाई और अब राजनीतिक नियुक्ति के लिए इंतजार कराया जा रहा है। जैसे ही किसी की नियुक्ति होती है, इनके सब्र का बांध टूटता दिखता है। पर कुछ कर नहीं सकते। हिस्से में है तो इंतजार, इंतजार और सिर्फ इंतजार।
दलित नेता की भी खुल सकती है लॉटरी!….
– नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के राज में भाजपा के अंदर कब किसे घर बैठा दिया जाए और कब किसकी लॉटरी खुल जाए, कोई नहीं जानता। यही वजह है कि प्रदेश की एक राज्यसभा सीट के लिए प्रदेश भाजपा के दलित नेता भी अपनी लॉटरी खुलने का इंतजार करने लगे हैं। यह सीट दलित नेता थावरचंद गहलोत को अचानक कर्नाटक का राज्यपाल बना देने से खाली हुई है। गहलोत के स्थान पर प्रदेश के एक अन्य दलित सांसद वीरेंद्र कुमार केंद्रीय मंत्री बन चुके हैं। दलित नेताओं को उम्मीद है कि जब दलित मंत्री की जगह दूसरे दलित को जगह मिल सकती है तो राज्यसभा की सीट के लिए भी किसी दलित को मौका क्यों नहीं?
लिहाजा, प्रदेश के प्रमुख दलित नेता कतार में लग कर प्रयास करने लगे हैं। इनमें लाल सिंह आर्य, पूर्व मंत्री डा. गौरीशंकर शेजवार, पूर्व मंत्री नारायण कबीरपंथी एवं कैलाश जाटव आदि शामिल हैं। लाल सिंह भाजपा अजा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। सिंधिया के आने से शेजवार और उनके बेटे का पत्ता कट चुका है। कबीरपंथी को पिछले विधानसभा चुनाव में मौका नहीं मिला था और जाटव भाजपा प्रदेश अजा मोर्चा के अध्यक्ष हैं। इन्हें उम्मीद है कि एक दलित नेता के इस्तीफे से खाली सीट पर इनमें से किसी को मौका मिल सकता है।
सट्टा और लॉटरी का समर्थन कितना जायज….
– इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि सट्टा और लाटरी के कारण हजारों परिवार बरबाद हुए हैं। जिस तरह शराब के व्यवसाय से हजारों, लाखों लोग जुड़े है, उसी तरह सट्टा एवं लॉटरी के व्यवसाय से भी। शराब के कारण भी परिवार के परिवार उजड़े और बरबाद हुए हैं। ऐसे में सिर्फ व्यवसाय से जुड़े होने के कारण सट्टा एवं लॉटरी जैसे व्यवसाय को समाज के लिए लाभकारी ठहरा दिया जाए, जैसा भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने किया तो इसे कैसे उचित ठहराया जा सकता है? उन्होंने कहा कि लॉटरी समाज हित में लगती है और सट्टा लोगों के जीवन यापन का जरिया है।
यह भला काम है, बस इसे दूषित नहीं करना चाहिए। मजेदार बात यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार लाटरी और सट्टे को वैध ठहराकर नोटिफिकेशन जारी कर चुकी है। इस लिहाज से यदि भाजपा की सांसद होने के नाते वे इसका समर्थन करती हैं तो इसे गलत कैसे ठहराया जा सकता है? खास बात यह है कि भाजपा के ही तमाम नेता सट्टा और लॉटरी को समाज हित में नहीं मानते। इसे परिवारों के बरबाद होने का कारण मानते हैं। ऐसे में भाजपा की केंद्र सरकार कैसे इसे अनुमति दे रही है और एक साध्वी इसका कैसे समर्थन कर रही हैं, यह बड़ा सवाल है।