भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश द्वारा प्रदेश सरकार के मंत्रियों की ली गई क्लास चर्चा में है। बैठक को क्लास इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि उन्होंने मंत्रियों को खरी-खरी सुनाई और नसीहत भी दी। कई बार मंत्री बगलें झांकते नजर आए। शिव प्रकाश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’, सिर्फ अपने लिए नहीं कहा, यह देश-प्रदेश के हर नेता और मंत्री के लिए है। शिव प्रकाश ने पहले मंत्रियों को बोलने का अवसर दिया था। इसके बाद कहा कि आप लोग क्या कर रहे हैं, इसकी जानकारी संगठन और सरकार को है। इसलिए काम करते समय प्रधानमंत्री मोदी के उक्त स्लोगन को ध्यान में रखे।
शिव प्रकाश का कहना था कि काम की जो जानकारी आप लोगों ने दी, मैदान से रिपोर्ट इससे उलट है, जबकि जो आप बता रहे हैं, इसका असर मैदान में लोगों के बीच दिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि संगठन कितनी भी मेहनत क्यों न करे लेकिन लोग सरकार के काम पर वोट करते हैं। सरकार की इमेज आप सबके भरोसे है। तबादलों के सीजन के बीच शिव प्रकाश की इस नसीहत से साफ है कि संगठन मंत्रियों के कामकाज से खुश नहीं है और उस तक भ्रष्टाचार की शिकायतें पहुंच रही हैं।
एक ताली के हकदार तो हैं शिवराज –
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सफल अभियानों में एक है, कोरोना पर अंकुश के लिए चल रहा वैक्सीनेशन अभियान। शिवराज की अगुवाई में पहले विशेष अभियान में प्रदेश ने रिकार्ड बनाया था और दूसरे विशेष अभियान में अपना ही रिकार्ड तोड़ डाला। पहले प्रदेश ने एक दिन में वैक्सीनेशन का 17 लाख का आंकड़ा पार किया था, दूसरी बार एक दिन में 23 लाख वैक्सीन लगाकर अपना ही रिकार्ड तोड़ दिया। यह बिना अथक परिश्रम के संभव नहीं है। वैक्सीनेशन के मामले में मप्र पहले देश में गुजरात के बाद दूसरे नंबर पर था, अब अव्वल है। यह सीधी लोगों की जिंदगी से जुड़ा मामला है।
कोरोना की भयावहता हर किसी ने देखी, भोगी है। इसे रोकने के लिए चलाया जा रहा वैक्सीनेशन अभियान यदि सफल है तो सत्तापक्ष एवं आम लोगों के साथ विपक्ष को भी बना किसी किंतु-परंतु लगाए शिवराज को दाद देनी चाहिए। विरोध के लिए महंगाई, बेरोजगारी, सड़क, बिजली सहित तमाम मुद्दे हैं लेकिन वैक्सीनेशन को लेकर राजनीति नहीं की जाना चाहिए। उम्मीद की जाना चाहिए कि शिवराज सितंबर तक सभी को एक डोज और दिसंबर तक दोनों डोज लगाने का वादा पूरा कर प्रदेश को कोरोना महामारी से सुरक्षित कर लेंगे।
लामबंद होने लगे वीरेंद्र के बिखरे समर्थक –
टीकमगढ़ से भाजपा सांसद वीरेंद्र कुमार और उनके समर्थकों के अच्छे दिन वापस आने लगे हैं। वीरेंद्र नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पिछली केंद्र सरकार में मंत्रिमंडल में शामिल थे लेकिन इस बार उनका पत्ता कट गया था। हालात ये थे कि वे टीकमगढ़ से सांसद हैं और वहां भाजपा के ही विधायक से उनकी बहस हो रही थी। कलेक्टर तवज्जो नहीं दे रहे थे। इसकी शिकायत उन्हें पीएमओ तक करना पड़ी थी। संगठन में उन्हें कोई जगह नहीं मिली थी। अचानक वीरेंद्र केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए। पिछली बार वे राज्य मंत्री थे, इस बार केबिनेट मंत्री बनाया गया। प्रधानमंत्री के निर्देश पर वे जन-आशीर्वाद यात्रा पर हैं। यह यात्रा ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी निकाली लेकिन सिर्फ तीन दिन की मालवा-निमाड़ अंचल में, जबकि वीरेंद्र लगभग आधा प्रदेश कवर कर रहे हैं। उनकी यात्रा ग्वालियर से प्रारंभ हुई। इसके बाद भोपाल, बुंदेलखंड अंचल होते हुए महाकौशल अंचल पहुंच गई। साफ है कि केंद्रीय नेतृत्व वीरेंद्र को ज्यादा महत्व दे रहा है। उन्हें भाजपा के दलित नेता के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है। असर यह है कि उनके बिखरे समर्थक लामबंद होने लगे हैं। सागर का उनका पुराना अड्डा दीपक होटल समर्थकों से फिर गुलजार हो गया है।
‘नाक में दम’ करने की कमलनाथ शैली-
कमलनाथ की आलोचना इस बात को लेकर होती है कि वे कारपोरेट शैली के नेता हैं। एसी कमरे में बैठकर राजनीति करते हैं। मैदानी मोर्चे में कम जाते हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान वे कुछ घूमे भी थे लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार उन्होंने कारपोरेट स्टाइल में ही चलाई थी। अब जब सत्ता से बाहर हैं तब भी वे मैदान में कम, दिल्ली और भोपाल की कमरों बैठकों में सक्रिय ज्यादा दिखाई पड़ते हैं। बावजूद इसके कई मुद्दों को लेकर उन्होंने सरकार की ‘नाक में दम’ कर रखा है। वजह, उनका अच्छा रणनीतिकार होना माना जाता है। पिछले कुछ समय से वे कांग्रेस के साथ सरकार का एजेंडा तय करते दिख रहे हैं।
ऐसा उन्होंने आदिवासियों के मुद्दों पर किया और पिछड़ों को आरक्षण के मामले में भी। विधानसभा का मानसून सत्र महज तीन दिन का था लेकिन कमलनाथ ने ऐसी रणनीति बनाई कि सरकार बैकफुट पर आ गई। तीन दिन का सत्र डेढ़ दिन में खत्म हो गया लेकिन सरकार को अपना पूरा फोकस आदिवासियों और पिछड़ों पर करना पड़ा। यह स्थिति तब है जब भाजपा लगातार पिछड़ा मुख्यमंत्री बनाए हुए है। कमलनाथ के कारण सरकार को इन्हीं पर फिर फोकस करना पड़ रहा है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि यही है ‘कमलनाथ शैली’।
फिर हंसी का पात्र बनीं सांसद साध्वी प्रज्ञा-
बेतुके बयान देने वाले नेताओं की सूची में इस हफ्ते भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर शामिल हो गर्इं। नाथूराम गोडसे को देश भक्त कहने सहित कुछ अन्य बयानों के कारण पहले भी वे चर्चा में रही हैं। इस बार उन्होंने दो हास्यास्पद बातें कहीं। पहला महंगाई को लेकर। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के साथ दालों सहित अन्य जरूरी सामान की मूल्य वृद्धि से हर व्यक्ति त्रस्त है। महंगाई सत्तापक्ष और विपक्ष में भेद नहीं करती, लेकिन एक कार्यक्रम में साध्वी प्रज्ञा ने बोल दिया कि देश में महंगाई-वहगाई कुछ नहीं है, यह सिर्फ कांग्रेस का प्रोपेगंडा है। इस बयान पर कांग्रेस ने तो उन्हें घेरा ही, आम लोगों के बीच भी वे हंसी का पात्र बनी।
इसी कार्यक्रम में वे हंसी का पात्र तब बन गर्इं जब उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश का गृह मंत्री बोल दिया। खास यह है कि किसी ने उनका ध्यान इस गलती को ओर आकृष्ट नहीं कराया। इसकी वजह से इसमें उन्होंने सुधार भी नहीं किया। आमतौर पर नेता कुछ गलत बोल दें तो कोई हस्तक्षेप कर देता है और गलती सुधर जाती है। हालांकि अच्छी बात यह है कि पहले की तुलना में साध्वी पिछले कुछ समय से काफी सक्रिय हैं। केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार की जन-आशीर्वाद यात्रा में वे अगुवाई करती दिखाई पड़ीं।