राजेश ज्वेल
हमने दो लम्बे लॉकडाउन झेले हैं… पहला लॉकडाउन गत वर्ष देशव्यापी था तो ये दूसरा राज्यव्यापी मगर उतना ही लम्बा… दोनों ही लॉकडाउन 1 जून से अनलॉक किए गए… गत वर्ष के लॉकडाउन को अधिकांश लोगों ने इन्जॉय किया… पहली बार परिवार के लगभग सारे सदस्य लंबे समय तक 24 ही घंटे साथ रहे… सोशल मीडिया पर रोजाना बनने वाले पकवानों की जानकारी आती थी तो किसी ने पेंटिंग, सिंगिंग से लेकर अन्य अधूरे शौक पूरे किए…
उस पहले लॉकडाउन ने परिवार के महत्व को भी समझाया और कई परिवारों ने इस बात की खुशी भी मनाई कि जो बच्चे देश या विदेश में पढऩे या नौकरी के लिए गए हुए थे वे फिर घर लौटे… यानी उस लॉकडाउन को सकारात्मक तरीके से अधिक लिया गया… नौकरी-कारोबार के नुकसान के बावजूद… लेकिन अभी जो लॉकडाउन लगा वह अत्यंत डरावना, दहशत से भरा रहा… कोरोना की पहली लहर उतनी घातक नहीं थी जितनी ये दूसरी लहर रही… अधिकांश लोगों ने अपने किसी ने किसी परिजन को इस दौरान खोया है…
शायद ही ऐसा कोई घर बचा हो, जहां कोरोना ने अपनी डरावनी परछाई ना छोड़ी हो…हर किसी ने अपने परिजन, मित्र, पड़ोसी या किसी ना किसी को खोया ही है… इसलिए ये वाला लॉकडाउन बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन की जुगाड़ के साथ जिंदा रहने की कशमकश और मौत के भय में बीता… हर कोई जान बचाने का संघर्ष कर रहा था… कई परिवार तो पूरी तरह तबाह भी हो गए और अनेकों परिवारों ने अपने जीवन के सबसे बुरे , दुर्भाग्यपूर्ण दिन देखे हैं…
लिहाजा अब अनलॉक के साथ लॉकडाउन के वे दहशत भरे दिन कतई न भूले और मास्क, डिस्टेंसिंग, सैनेटाइजेशन सहित कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करें और वैक्सीन तो अवश्य लगवाएं ही..हम सभी को उन दिनों का बेताबी से इंतजार है जब हमारी दुनिया इस मनहूस वायरस से मुक्त होगी और फिर वही मेले-ठेले लगेंगे , बेतकल्लुफी मस्तियां , शोर-शराबा होगा…फिलहाल वायरस से जंग जारी है..तीसरी लहर का हल्ला मच ही रहा है ..स्वस्थ रहे..सुरक्षित रहे..