शकील अख्तर
क्या फार्मूलों से राजनीति चलती है? फिलहाल तो ममता, अखिलेश, केसीआर यही समझ रहे हैं। और भरोसा है कि केन्द्र में मोदी और राज्यों में वह राजनीति चलाते रहेंगे। मगर केजरीवाल की समझ में शायद थोड़ा आ गया होगा कि केन्द्र में भाजपा के रहते सरकार ताबेदार की हैसियत से ही चलाई जा सकती है। बराबरी के दोस्ती के स्तर पर नहीं। उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया और वित्त मंत्री रहे सत्येन्द्र जैन गिरफ्तार होकर जेल में हैं और उनकी सरकार को विधानसभा में बजट पेश करने की इजाजत तक नहीं दी जा रही है। दिल्ली जब से राज्य बना है। केन्द्र में अलग और राज्य में अलग पार्टी की सरकार रही है। मगर कभी इस तरह राज्य सरकार के चलाने में रोज अड़ंगे नहीं डाले गए।
केजरीवाल ने कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारें केन्द्र में देख ली हैं। और वे दावा भी सबसे ज्यादा करते हैं कि मैं पढ़ा लिखा मुख्यमंत्री हूं। मगर शिक्षा जो सबसे विशेष योग्यता लाती है अंतर करने की विश्लेषण करने की कार्य कारण संबंध बताने की वह शायद उनमें नहीं है या वे उसका इस्तेमाल नहीं करते हैं। नहीं तो वे समझ जाते और बोलते कि मोदी सरकार एक राज्य को स्वतंत्र रूप से काम क्यों नहीं करने दे रही। वह प्रगतिशील और उदार विचारधारा और दक्षिणपंथी एवं प्रतिक्रियावादी विचारधारा का फर्क समझते। देश की राजधानी दिल्ली में जहां सारे देशों का राजनयिक और मीडिया बैठा है वहां लोकतांत्रिक तरीकों का हनन क्या मैसेज देता है? अगर पढ़ाई लिखाई का कोई मतलब होता है तो वह केजरीवाल को बताना चाहिए। और साथ ही यह भी सोचना चाहिए की बड़ी और स्थाई राजनीतिक समस्या क्या है?
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केजरीवाल के उदाहरण से ममता, अखिलेश और केसीआर एवं अन्य जो भी तीसरे मोर्चे के समर्थक हैं उन्हें समझना चाहिए कि मोदी जी चक्रवर्ती सम्राट हैं। या होना चाहते हैं। उनकी सल्तनत में किसी स्वतंत्र राज्य का कोई अस्तित्व नहीं रह सकता। केन्द्र में मोदी और राज्यों में यह के फार्मूले पर सोच रहे इन क्षेत्रिय नेताओं को यह भी देखना चाहिए कि भाजपा राज्यों में भी यह सुनिश्चित किया जाता है कि मुख्यमंत्रियों का कद एक निश्चित साइज में मोदी जी से कम रहे। इसका एक मजेदार उदाहरण मोदी से अंडरस्टेंडिंग करने वाले नेताओं को देखना चाहिए। राज्य के विज्ञापनों में जो केजरीवाल से कम नहीं होते हैं और जिन पर आपत्ति है उनमें प्रधानमंत्री के फोटो से मुख्यमंत्री के फोटो काफी छोटे होते हैं।
इसे समझने के लिए लिए 9 साल पहले के विज्ञापन देखे जा सकते हैं जिनमें राज्यों के विज्ञापन में या तो प्रधानमंत्री के फोटो होते ही नहीं थे। या मुख्यमंत्री के बराबर के साइज के। पहले राज्यों के जनसम्पर्क विभाग की चिन्ता होती थी कि सीएम साहब नाराज न हो जाएं। आज दबाव यह रहता है कि पीएम साहब नाराज न हो जाएं। ममता अखिलेश केसीआर, मोदी के साथ जाने की तैयारी करें मगर यह याद रहे कि क्या वे उसकी कीमत चुका पाएंगे? अपना स्वतंत्र अस्तित्व छोड़कर मातहती कर पाएंगे? विपक्ष की राजनीति इस समय बहुत दिलचस्प मोड़ पर है। एक तरफ राहुल अपनी धुन में मोदी को चैलेंज करते हुए चले जा रहे हैं। वह एक अलग ही दृश्य है। ऐसी निडरता पिछले कई सालों में राजनीति में देखी नहीं गई। इसके लिए फैज की वही पंक्तियां याद आती हैं कि- ‘जिस धज से कोई मकतल में गया वह शान सलामत रहती है यह जान तो आनी जानी है इस जां की तो कोई बात नहीं!”
सोमवार को जिसने राहुल को अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड में बोलते देखा हो वह इसे अच्छी तरह समझ सकता है। राहुल की बेहतरीन स्पीचों में से एक। हिम्मत भरी। खुला चैलेंज देती हुई। जो करना है करो। मैं नहीं डरता। क्यों? क्योंकि मैं सत्य के साथ हूं। एक बार नहीं जितनी बार पुलिस भेजना है भेजो। जितने मुकदमे चलाना है चलाओ। मुझे डरा नहीं पाओगे। यही आपकी ( मोदी जी) समस्या है। मगर मैं कुछ नहीं कर सकता। क्योंकि मैं ऐसा ही हूं। राहुल ने अपना दिल खोलकर रख दिया। राहुल का घोषणापत्र! कहते हैं भाषण हर जगह अच्छा नहीं होता है। यह राहुल का संसदीय क्षेत्र था। इसलिए आत्मा की आवाज। राहुल लोकतांत्रिक हैं। पार्टी में लोकतंत्र की सबसे बड़ी स्थापना कर दी। हर आदमी कहता था नहीं नहीं ऐसा नहीं होगा। परिवार का ही कोई बनेगा। मगर राहुल ने सबको गलत साबित करते हुए परिवार के बाहर के खड़गे को अध्यक्ष बना दिया।
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ऐसे राहुल कुछ क्षेत्रीय नेताओं को पसंद नहीं आ रहे। वे मोदी जी के साथ अंडरस्टेंडिंग कर रहे हैं। राज्यों में वे और केन्द्र में मोदी।
देखना दिलचस्प होगा कि यह फार्मूला कितना चलता है। फिलहाल तो केजरीवाल को बहुत भारी पड़ रहा है। उन्हें कुछ भी करने नहीं दिया जा रहा। शायद इसीलिए जहां दूसरे संसद में विपक्ष के सामूहिक प्रदर्शन में साथ नहीं आ रहे आम आदमी पार्टी रोज आ रही है। और उसके सांसद संजय सिंह पूरे जोश में नारे लगा रहे हैं। बाकी तृणमूल अपना अलग प्रदर्शन करके साफ मैसेज दे रही है कि विपक्ष से डरने की जरूरत नहीं। विपक्ष पूरी तरह विभाजित है। तृणमूल की हालत इस समय उस डरे हुए व्यक्ति की तरह हो रही है जो डराने वाले की गोद में ही जाकर बैठना चाहता है मगर संकोच यह है कि बाकी लोग क्या कहेंगे।
बंगाल में तृणमूल आज वह नहीं है जो दो साल पहले मोदी से लड़ते हुए जीत कर आई थी। अभी उपचुनाव में कांग्रेस ने उसे धो कर रख दिया। भ्रष्टाचार और झूठ ममता के खिलाफ बड़े आरोप हैं। उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी जो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं को ईडी ने समन भेजा है। बंगाल में सब जानते हैं कि अब अभिषेक ही तृणमूल हैं। खादी की सूती साड़ी और हवाई चप्पल की छवि ईडी के सामने काम नहीं करेगी। उसकी असलियत जनता की समझ में भी आ रही है। अभिषेक के खिलाफ बहुत मामले हैं। और बंगाल में कहा जा रहा है कि इनको सामने लाने के पीछे ममता के वही नजदीकी लोग हैं जो अभिषेक के सर्वोसर्वा बनने से खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। ईडी का ही डर केसीआर और अखिलेश को भी है।
केसीआर की बेटी को भी तलब किया गया है। अखिलेश शुरू से ही स्मार्ट खेल रहे हैं इसलिए आराम से बचे हुए हैं। मायवती की तरह वे भी अब सारे इंस्ट्रक्शन मानने को तैयार हो गए हैं। ऐसे में वायनाड में राहुल का यह कहना बहुत मायने रखता है कि जितनी पुलिस भेजो, मुकदमे लगाओ मैं डरने वाला नहीं हूं। आज की तारीख में इतनी हिम्मत से ऐसी बात कौन कह सकता है! ऐसे में बीजेपी के रोज संसद में राहुल माफी मांगों नारे लगाने का कोई मतलब नहीं है। माफी मांगने का तो सवाल ही नहीं है राहुल उससे आगे बढ़कर चुनौति दे रहे हैं कि-
“जुल्म में तेरे जोर है कितना देख लिया और देखेंगे!
परिणाम जो हो भारतीय राजनीति एक बहुत ही हिम्मत भरा एपिसोड देख रही है। राहुल को चारों तरफ से घेरा जा रहा है। सत्ता पक्ष तो है ही। मीडिया, विपक्ष का एक हिस्सा और डरे हुए कांग्रेसी भी राहुल के खिलाफ हैं। राहुल जितना ज्यादा साहस का प्रदर्शन करते हैं कांग्रेस के सुविधा और सुरक्षा पसंद नेताओं का उतना ही डर बढ़ता जाता है। वे पिछले गेट से सरकार और भाजपा को मैसेज पहुंचाते रहते हैं कि हम राहुल के साथ नहीं हैं। हम अंध मोदी विरोध की राजनीति नहीं करते। इस वाक्य का सीधा मतलब होता है कि राहुल अंध मोदी विरोध करते हैं।
इतिहास में इसे देखकर एक ही पात्र याद आता है। शल्य। कर्ण का सारथी। जो पूरे युद्ध में कर्ण को हतोत्साहित करता रहा। और अर्जुन की वीरता के गुणगान करता रहा। कर्ण भी थोड़ी शंका में पड़े थे मगर राहुल फिलहाल अभी तक दुविधा में नहीं दिखे।