‘ओवरवेट’ फिरोजिया ने खुद का, तो भाजपा ने किया उनका “वज़न” कम

Suruchi
Published on:

निरुक्त भार्गव

उज्जैन नगर निगम के चुनाव परवान चढ़ रहे हैं और लोगों में भी इन चुनावों की खुमारी अब साफ़ तौर पर दिखाई दे रही है. नेता नगरी 4.50 लाख से भी ज्यादा मतदाताओं से रूबरू होने के लिए हरचंद कोशिशों में लगी है. जीत का सेहरा किस दल के किन-किन उम्मीदवारों के सिर पर बंधेगा ये तो 17 जुलाई को पता चलेगा. बहरहाल, लोगों में इस बात की खासी चर्चा है तीन इंजनों वाली “भाजपा” में आखिर किसकी और क्यों चली, महापौर और वार्ड प्रतिनिधियों के उम्मीदवारों का चयन करने में? ध्वनियां बता रही हैं कि उज्जैन के जो सांसद महोदय (अनिल फिरोजिया) पिछले कुछ महीनों से अपने ‘वज़न’ के मामले में खासे चर्चित हो रहे हैं, असल में उनकी तगड़ी घेराबंदी कर दी गई है!

पार्टी में भी सुगबुगाहट है कि अपने ‘ओवरवेट’ को कम करने में जुटे “वज़नदार” सांसद जी का राजनीतिक वज़न कम कर दिया गया है.राजनीति के क्षेत्र में कब किसका वज़न कम हो जाए या अचानक बढ़ जाए, कहा नहीं जा सकता! राजनीतिक वज़न के बढ़ने के जो प्रकट कारण हैं उनमें संबंधित व्यक्ति की कई खूबियां शामिल होती हैं! जैसे उनकी लोकप्रियता का ग्राफ कैसा है? बाहुबल और धनबल के लिहाज से उसकी रैंकिंग क्या है? गिराने और चढ़ाने में उसकी कितनी पारंगतता है? लगे हाथ, शारीरिक वज़न बढ़ने के मुख्य कारणों पर भी एक सरसरी निगाह डाल लेते हैं: वंशानुगतता/अनियमित दिनचर्या/ आलसीपन.

यहां जिक्र चूंकि अनिल फिरोजिया का हो रहा है, तो सबको मालूम है कि बलिष्ठ शरीर उन्हें वंशानुक्रम में प्राप्त हुआ है! उनके स्वर्गीय पिताश्री भूरेलाल फिरोजिया तीन बार के विधायक थे, मध्यप्रदेश के अलग-अलग जिलों से, तब जबकि भाजपा का जन्म नहीं हुआ था! उनकी बड़ी बहन रेखा रत्नाकर शाजापुर जिले के आगर क्षेत्र से भाजपा की विधायक रह चुकी हैं! अनिल स्वयं उज्जैन जिले के तराना क्षेत्र से एक बार विधायक रह चुके हैं (2013-2018). 2018 में भाजपा ने उन्हें दोबारा तराना से ही मौका दिया, पर वे कांग्रेस के महेश परमार के हाथों परास्त हो गए. परमार उस समय जिला पंचायत के अध्यक्ष थे और अब कांग्रेस के महापौर पद के प्रत्याशी हैं, उज्जैन नगर निगम के चुनाव में.

Read More : 27 जून 2022 : देशभर के भगवान लाइव दर्शन

अपनी राजनीतिक पकड़, उज्जवल छवि और जनसामान्य से 24×7/365 (घंटे/दिन/साल) सहज संवाद के बूते और तथाकथित रूप से अपना राजनीतिक वज़न खो चुके अनिल फिरोजिया को भाजपा ने उज्जैन संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाकर सबको चौंका दिया था! 2019 लोक सभा चुनाव के जब नतीजे आए तो लोगों ने दांतों तले अंगुलियां दबा लीं, क्योंकि जीत का मार्जिन 2014 के चुनाव से भी ज्यादा था! पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवोदित 300 से भी ज्यादा भाजपा सांसदों को एक साथ संबोधित किया, तो एक क्षण उनकी निगाह अनिल फिरोजिया पर ठहर गईं! बताते हैं कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से सलाह दे डाली कि वज़न कम करो, नहीं तो कैसे चलेगा?

समय के पंख बहुत तेजी से फड़फड़ाते हैं, ख़ासकर उस दौर में जब “अच्छे दिनों” का सारी दिशाओं में जबरदस्त प्रचार छाया रहता है…कब तीन साल निकल गए, सूझ-संपट ही नहीं पड़ी! अब उल्टी गिनती शुरू हुई तो जमीन भी नज़र आने लगी है! सारे के सारे जतन करने पड़ रहे हैं! प्रत्येक जाना-पहचाना व्यक्ति पहली ही फुर्सत में पूछ बैठता है: इतने थुलथुल क्यों हो रहे हो! तुम तो हमारे सामने इकहरी और बहुत पकड़ो तो दोहरी काया वाले थे! लेकिन, वो अलमस्त थे, मेरी तरह! काम का/ जिम्मेदारियों का/ निजी व्यस्तताओं का बोझ था उन पर भी! एक निर्मल हृदय के होने के चलते, जब कहीं भी और कभी-भी मिलते, तो कह उठते, “भैय्या, मैं कल सुबह आपको घर से ले लूंगा, अपन दोनों पहले की तरह कोठी रोड पर पैदल घूमने चलेंगे!”…दुर्भाग्य से ऐसा कुछ भी हो नहीं पाया.

Read More : एकनाथ शिंदे का राज ठाकरे से कनेक्शन, 4 बार फोन पर हुई बात

मैं समझता हूं कि अनिल फिरोजिया के निजी और सार्वजनिक जीवन में 24 फरवरी 2022 का दिन एक ऐतिहासिक करवट लेकर आया! राजनीति के प्रकांड पंडित और सबसे बेहतरीन केन्द्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने उज्जैन के अत्यधिक व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद अपना अनुज मानते हुए अनिल को सलाह दे डाली कि अपनी देह की चर्बी को छांटो! उन्होंने कहा कि उनका वज़न 123 किलोग्राम था, मगर समय रहते उन्होंने उसे 100 के नीचे तक गिरा दिया! उन्होंने ये घोषणा भी की थी कि अनिल यदि सांसद रहते अपने शरीर का वज़न एक किलोग्राम भी कम कर लेते हैं, तो केंद्र सरकार उनके हर एक किलोग्राम वज़न कम करने पर सड़क परिवहन का ढांचा मजबूत करने और ताज़ातरीन सुविधाएं दिलाने पर उज्जैन को 1000 करोड़ रुपए की धनराशि देगी!

देश के सबसे प्रमुख मंत्रियों में शुमार नितिन गड़करी की उक्त घोषणा पर बहुत तालियां पीटी गईं थीं और इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया ने भी काफी चटकारे लेकर खबरें शाया की थीं! लेकिन, इन सब उपहासों को अनिल ने अत्यंत गंभीरता से लिया! बुझे मन से और बिना झांकी-मंडप किए उज्जैन के शहीद पार्क के समीप बने ‘प्राकृतिक फिटनेस सेंटर’ पर सुबह-शाम जाकर शरीर का कायाकल्प करने का निश्चय किया! ऐसा नहीं है कि इस दौरान भी मेरी उपेक्षा की हो! जब भी मिलते, तुरंत बोलते, “आप भी चलो मेरे साथ!” मैंने पूछा कि क्या-क्या करना पड़ता है, वज़न घटाने के लिए, तो बताते कि पंचकर्म के साथ सघन शारीरिक व्यायाम करना होता है! फिर वही जानी-पहचानी मुस्कराहट के साथ कहते, “मैं अपनी जुबान का स्वाद भुला चुका हूं!”

वज़न कम कर लेने के बाद उज्जैन के सांसद अनिल फिरोजिया की ‘बॉडी लैंग्वेज’ बदल चुकी है! उनके नेचर में धीर-गंभीरता बढ़ चुकी है! सक्रियता में बेहद बढ़ोतरी हुई है! मुद्दों को समझने और उनका त्वरित और दीर्घकालीन उपाय ढूंढने में उनके ‘रिफ्लेक्सेस’ दिखने लगे हैं! लेकिन, राजनीतिक धरातल पर उनका वज़न जिस तरह घटाया गया है, वो किसी से छिपा नहीं है! सबको मालूम है कि उन्होंने उज्जैन में 54 पार्षदों के पदों में से महज 4 पद बेहद निकटस्थ साथियों के लिए मांगे थे और भाजपा की पहली लिस्ट में उनमें से दो के नाम तय भी कर दिए गए थे और शेष दो को विचाराधीन रखा गया था!

लेकिन, कांट-छांट के बाद उक्त दो सज्जनों (जिसमें एक मुस्लिम और एक सिख की धर्मपत्नी है) के टिकट काट दिए गए! इतना ही नहीं, उनके खुद के कार्यालय के कर्ता-धर्ता और आरएसएस की पृष्ठभूमि से आने वाले संचार जगत के निष्णात खिलाड़ी को भी धता बता दी गई! ये जरूर हुआ है कि अनिल फिरोजिया का परिवार जिस 42 नंबर वार्ड (सेठी नगर) में रहता है, वहां उनकी पसंद की एक महिला उम्मीदवार को भाजपा का टिकट दे दिया गया है! अब बाज़ार गर्म हो रहा है कि एक स्थानीय महिला उम्मीदवार का टिकट काटकर और एक बाहरी इलाके की अनजान महिला को लड़ाकर कौन-से किले बना लिए जाएंगे?

22 जून को भाजपा का प्रचार अभियान शुरू करते समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुलेआम प्रसन्नता जाहिर कर गए, “वजनदार सांसद अनिल जी जो इन दिनों अपना वज़न कम करने में लगे हैं, गड़करी जी को दिए गए अपने वचन को पूरा करने में लगे हैं.”…लेकिन मैदान-ए-हकीकत कुछ जुदा है: राजनीतिक प्रेक्षकों की राय है कि सांसद को किनारे लगाया गया है!…चुनावी मंचों पर उन्हें संबोधन से दूर रखा जा रहा है! डोर-टू-डोर कैंपेन से भी वो गायब हैं! चर्चा आम है कि कहीं राजनीतिक रस्साकशी के बीच किसी ‘राज-भरे’ समझौते की बिना पर तो उनको वर्जिश करते रहने की तरफ नहीं धकेल दिया गया है…..