दिनेश निगम ‘त्यागी’
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अभी से चौकन्ने है। चुनाव जीतने के बाद विधायक पाला न बदलें, इसे लेकर अभी से कसरत शुरू हो गई है। कमलनाथ ने व्यक्ति की बजाय पार्टी के प्रति निष्ठावान प्रत्याशियों की तलाश शुरू कर दी है। यह जवाबदारी सौंपी गई है निमाड़ के खरगोन से विधायक रवि जोशी को। कांतिलाल भूरिया के प्रदेश अध्यक्ष रहते जोशी प्रदेश के प्रभारी संगठन महामंत्री का दायित्व निभा चुके हैं। इस नाते प्रदेश के हर नेता की नब्ज से वे वाकिफ हैं।
जोशी प्रदेश भर के नेताओं से जिस तरह मिल रहे हैं, जिन मुद्दों पर बात करते हैं, उससे पता चलता है कि कांग्रेस में प्रत्याशियों की खोज का काम शुरू हो चुका है। खबर है कि वे चुनाव लड़ने की चाह रखने वाले नेताओं की पूरी कुंडली तैयार कर रहे हैं। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि जोशी जिनकी सिफारिश करेंगे, टिकट उन्हें ही मिलेगा। कमलनाथ और पार्टी नेतृत्व निजी एजेंसियों से अपना अलग सर्वे कराएंगे, इसके बाद ही टिकट तय होंगे। इसके बावजूद प्रदेश स्तर पर अभी से काम शुरू हो गया, इसे अच्छा ही कहा जाएगा क्योंकि चुनाव से कम से कम 6 माह पहले प्रत्याशी तय करने की मांग पुरानी है।
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ठीक नहीं चल रहे इन दिग्गजों के गृह-नक्षत्र-
भाजपा के दो दिग्गज नेताओं के गृह-नक्षत्र कुछ समय से गड़बड़ चल रहे हैं। इनमें एक हैं केंद्रीय राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल और दूसरे प्रदेश के कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव। खास बात यह है कि प्रहलाद दमोह संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके अंतर्गत गोपाल की विधानसभा सीट रहली आती है। इन दोनों दिग्गजों के बीच छत्तीस के आंकड़े के चर्चे चाहे जब सुर्खियां बनते रहते हैं। इस बार दोनों अपने रिश्तेदारों के कारण बदनाम हैं। प्रहलाद के विधायक भाई जालम सिंह पटेल की बहू ने सनसनीखेज और संगीन आरोप लगाए हैं।
इनकी वजह से पटेल परिवार की साख धूल-धूसरित है। बहू के आरोपों पर अब तक प्रहलाद के परिवार की प्रतिक्रिया नहीं आई है। दूसरी तरफ गोपाल को उनके एक साढ़ू ने मुश्किल में डाला है। उन्हें कन्यादान योजना में भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया है। विडंबना देखिए कि गोपाल हर साल बड़ी तादाद में अपने खर्च से सैकड़ों कन्याओं का विवाह कराते हैं और उनके साढ़ू कन्यादान योजना की राशि में ही भ्रष्टाचार कर रहे हैं। गृह-नक्षत्रों का सवाल इसलिए भी उठा क्योंकि इससे पहले प्रहलाद का केंद्रीय राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार छीन लिया गया था और गोपाल न मुख्यमंत्री बन पाए और न ही शपथ लेने वाले पहले पांच मंत्रियों में शामिल थे।
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‘नरेंद्र’ की सोच से एक कदम आगे ‘शिवराज’-
भाजपा शाषित राज्यों में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसे मुखिया के रूप में उभरे हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरूप काम करने के मामले में अव्वल हैं। खास बात यह है कि वे पहले से पढ़ लेते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी क्या चाहते हैं और कदम बढ़ा देते हैं। जन्मदिन के मामले को ही लीजिए, मोदी ने आह्वान किया कि हर शहर का जन्मदिन हर साल मनाया जाना चाहिए। इसकी शुरुआत कब होती है कोई नहीं जानता, लेकिन यहां मप्र में शिवराज सिंह ने घोषणा कर दी कि प्रदेश के हर गांव का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाएगा।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ, इससे पहले भी प्रधानमंत्री ने केंद्र से जिस योजना की घोषणा की, शिवराज ने उसे तत्काल लपका। स्टार्टअप योजना हो, आत्म निर्भर मप्र योजना या किसानों-युवाओं से संबंधित कोई एलान शिवराज अमल में प्राण-प्रण से जुट गए। केंद्र ने पद्म सम्मान घोषित किए तो यहां मुख्यमंत्री ने अपने निवास में बुलाकर उन्हें सम्मानित ही नहीं किया, तीन प्रदेश स्तरीय सम्मानों की घोषणा भी कर डाली। प्रधानमंत्री मोदी के साथ कदमताल का ही नतीजा है कि शिवराज चट्टान की तरह पद पर अटल रहकर अपने काम में जुटे हैं। बिना रुके यह मेहनत ही शिवराज के लगातार मुख्यमंत्री बने रहने की वजह है।
भाजपा-कांग्रेस के अभियानों में फर्क का सच-
संयोग से प्रदेश में जब भाजपा का ‘बूथ विस्तारक’ अभियान चल रहा था, उसी समय कांग्रेस ने ‘घर चलो, घर घर चलो’ अभियान की घोषणा कर दी। लोगों को दोनों अभियानों में फर्क समझने का मौका मिल गया। हमेशा की तरह कांग्रेस पिछड़ती दिखाई पड़ी, खासकर नेताओं की सक्रियता के मामले में। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा आदि प्रमुख नेता बूथों में पहुंचते और कार्यकर्ताओं के घर भोजन करते दिखाई पड़े।
दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने देवास से अभियान का शुभारंभ किया। उनके सामने ही कांग्रेसी आपस में भिड़ गए। कमलनाथ को शुभारंभ की रस्म अदायगी करना पड़ी। सोशल मीडिया में चल निकला कि कमलनाथ ने कार में बैठे-बैठे अभियान का शुभारंभ किया। इतना ही नहीं दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव, अजय सिंह जैसे नेताओं के अभियान में हिस्सा लेने की कोई खबर नहीं है। इस तरह कैडर के मामले में कांग्रेस फिसड्डी है ही, नेता भी भाजपा के मुकाबले सक्रियता में पीछे रहे। इसीलिए भाजपा सत्ता में रहने के बावजूद जोश में है और कांग्रेस विपक्ष में रहकर भी सुस्त। यह फर्क ही कांग्रेस के पिछड़ने का कारण है।
अर्जुन के प्रति श्रद्धा या संबंध सुधारो अभियान-
भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी की पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के प्रति जागी श्रद्धा ने सभी को चौका दिया है। वजह अर्जुन सिंह के बेटे पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह हैं। अजय के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा है। नारायण त्रिपाठी ने चौधरी राकेश सिंह की तर्ज पर कांग्रेस छोड़ी थी। अजय सिंह सतना से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। नारायण उनके साथ थे। अचानक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ वे भाजपा के मंच में दिखाई पड़े और भाजपा में शामिल हो गए। चौधरी ने उस समय कांग्रेस छोड़ी थी जब अजय नेता प्रतिपक्ष थे और विधानसभा के अंदर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए पहला नाम चौधरी का पुकारा गया था।
अचानक चौधरी ने पाला बदलकर भाजपा ज्वाइन कर ली थी। अजय इस समय विंध्य अंचल में घर वापसी अभियान चला रहे हैं लेकिन चौधरी की तरह वे नारायण से भी इस कदर नाराज हैं कि शायद ही उनकी घर वापसी का प्रयास करें। अब चौधरी की ही तर्ज पर नारायण ने पहल की है। चौधरी क्षमा मांग कर काग्रेस में वापसी कर चुके हैं। इधर नारायण ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि भोपाल में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की प्रतिमा का तत्काल अनावरण किया जाए। ऐसा न करना विंध्य अंचल का अपमान है। यह नारायण का संबंध सुधारो अभियान तो नहीं?