हफ्ते की छुट्टी का सच और उसके मायने

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काम की छुट्टी को लेकर हिंदुस्तान में बरसों से बात चल रही है। आजादी के पहले तो ऐसा कोई कंफर्म सिस्टम नहीं था लेकिन बाद में अंग्रेजो के सौंपे हुए देश में रविवार की छुट्टी की मान्यता मिली। छुट्टी का सच और उसके मायने को लेकर कई तर्क और कुतर्क है लेकिन ये बात सही है कि छुट्टी तो होना चाहिए। हिंदुस्तान में जब जिसकी सरकार रही तब वोट के खातिर जयंती और पुण्यतिथि के साथ ही स्वार्थ के त्योहारों पर छुट्टियां रखने में कोई कसर बाकि नहीं रखी गई। बचपन से स्कूल में मिलने वाली छुट्टियां और उसके बाद दुकान से लेकर ऑफिस और नौकरी तक छुट्टियों का सिलसिला बना रहता है।

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छुट्टियों को लेकर लिखने का मन

बेवजह सरकारी दफ्तरों में अनावश्यक छुट्टियों का जो फैशन चला उसको लेकर समय-समय पर विरोध भी हुआ। छुट्टियां कम करने के अभियान को लेकर भी सवाल उठाएं गए। कई बार ऐसा लगा कि सरकारी छुट्टियां कम करने के लिए भी एक दिन छुट्टी मना लेनी चाहिए, ताकि इन छुट्टियों से छुटकारा मिल सके। छुट्टियों को लेकर लिखने का मन फिर इस बार हो गया क्युकी गंगूबाई काठियावाड़ी फिल्म में हीरोइन गंगूबाई यानि आलिया भट्ट में वेश्यावृत्ति के धंधे में भी छुट्टियां मनाना शुरू कर दी। कोठे की मालकिन ने विरोध किया लेकिन गंगूबाई ने साफ कह दिया हमारा अपना भी एक जीवन है, हमें भी छुट्टी मनाने का अधिकार है।

फिल्म में ऐसा देखने को मिला 

छुट्टी मिले या न मिले हम तो छुट्टी मनाएंगे। पहली बार किसी फिल्म में ऐसा देखने को मिला कि खुद की जिंदगी जीने के लिए या यूं कहे की व्यक्तिगत कामों के लिए छुट्टी मिलना जरुरी है। छुट्टी को लेकर हर एक का अपना-अपना महत्व है, बचपन में स्कूलों की छुट्टियों की बात करें तो बच्चों को छुट्टी इसलिए चाहिए कि वे रोज-रोज की पढ़ाई से एक दिन आराम कर सके। सुबह जल्दी उठकर स्कूल जाना और आने के बाद भी घर पर होमवर्क करना निजी जिंदगी में कभी कभी बोझ लगने लगता है। बच्चे छुट्टी के दिन खूब सोते है या खेलते है या जो मन कहता है वो करते है।

नौकरी में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत

थोड़ा बड़ा होने पर कॉलेज में रोज नहीं जाना पड़ता है इसलिए जीवन के उस दौर में रविवार की छुट्टी का महत्व नहीं होता। उसके बाद नौकरी में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है। क्युकी खुद के काम और घर के काम के साथ ही आराम जरुरी होता है। दुकानदार की बात करे तो उसकी भी मुसीबत यह है कि स्टाफ को एक दिन आराम देना जरुरी होता है। खुद दुकानदार के लिए वक्त निकालने के लिए एक दिन की छुट्टी निकालना तो बनता है। उसी तरह से निजी ऑफिसों का भी यह हाल है। वहां भी एक दिन की छुट्टी तो जरुरी है।

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चिड़चिड़े पुलिस वाले

सरकारी छुट्टियों की बात करें तो सबसे ज्यादा चिड़चिड़े पुलिस वाले इसी के कारण होते है। सरकारी नौकरी में पुलिस की ऐसी नौकरी है जिसमें होली हो या दिवाली, जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह हर दिन अपराधियों को पकड़ने और चौराहों पर खड़े रहने में बीत जाता है। कागजों पर पुलिस की नौकरी के घंटे तो लिखे है लेकिन 8-10 घंटे तो दूर 14-16 घंटे पुलिस वाले काम करते रहते है। सेना के जवानों का भी यही हाल है कभी-कभी तो उनको परिवार में हुए दुःख में शामिल होने के लिए छुट्टियां नहीं मिलती। बाकि सरकारी दफ्तरों में से अधिकांश में अफसर से लेकर कर्मचारी तक मक्कारी करते है ऐसे लोगो के कारण ही सरकारी छुट्टियां कम करने का दबाव लगातार बना रहता है।

बदलते पारिवारिक माहौल में जरुरी सा

छुट्टियों का महत्व तो घर वालियों के लिए भी अब बदलते पारिवारिक माहौल में जरुरी सा हो गया है। पिता हो या पति या फिर भाई सबसे बहन और पत्नी या मौका पड़ने पर मां भी हफ्ते में एक दिन बोल देती है कि आज तो कुछ खाना बनाने का मन नहीं हो रहा या तो बाजार ले चलो या फिर बाजार से खाने का लेकर घर आ जाओ। वैसे इंदौर जैसे चटोरे शहर में अमूमन रविवार को सुबह पोहा-जलेबी, कचोरी-समोसे से लेकर खम्मण तक का आनंद उठाते है। रविवार को अधिकांश घरो में एक टाइम का भोजन ही बनता है। इंदौरी तो दाल-बाटी या पराठे खाते है। बात छुट्टियों की है तो पशुओं की कभी छुट्टी नहीं होती। खेत में किसान से लेकर शहर में जानवरों से रोज काम करवाया जाता है।

हिंदुस्तान की छुट्टियों की बात

इसका भी विरोध होता है लेकिन कभी ऐसा नहीं सुना गया कि हफ्ते में एक दिन गाय का दूध नहीं निकाला गया हो। बकरी को चरने से रोकने के लिए पैदल जाने से एक दिन छुट्टी मिल गई हो। घोड़े को भी तांगे में रोज जुतना पड़ता है। हिंदुस्तान की छुट्टियों की बात कर रहे है तो थोड़ा हम विदेशों की भी बात कर लेते है वहां हफ्ते में एक दिन नहीं बल्कि 2 दिन छुट्टी होती है। वहां के निजी हो या सरकारी ऑफिस के कर्मचारियों के काम करने के घंटे तय रहते है। अपने आप को आनंदित करने के लिए विदेशों में सब 2 दिन की छुट्टी मनाते है लेकिन बाकि 5 दिन डट कर काम करते है।

वहां काम के घंटे तय होने के साथ ही काम का टारगेट भी पूरा करना पड़ता है। गलती करने पर अपने आप सैलरी में से पैसा कट जाता है। हिंदुस्तान में भी केंद्र सरकार के दफ्तरों में महीने में 2 बार शनिवार और रविवार को छुट्टी के मिल जाते है। छुट्टियों को लेकर सबकी अपनी-अपनी राय हो सकती है लेकिन हर कोई चाहता है कि वह हफ्ते में से एक दिन छुट्टी मना ले। सवाल इस बात पर उठता है कि छुट्टियां मनाने को लेकर कई बार लोग मक्कारी करके अपने शौक पुरे कर लेते है।

छुट्टियों के सदुपयोग और दुरूपयोग

छुट्टियों के सदुपयोग और दुरूपयोग को लेकर भी लंबी बहस हो सकती है लेकिन छुट्टी मिलना चाहिए इस पर सब एकमत है। इसलिए छुट्टी की छुट्टी कभी नहीं की जा सकती। हिंदुस्तान के निजी ऑफिसों में ज्यादा काम करवाने को लेकर एक और अच्छा सिस्टम है। जब कोई कर्मचारी छुट्टी के दिन काम करता है तो उसे उस दिन के दुगुने पैसे सैलरी के साथ मिल जाते है। छुट्टी शब्द का ही अपना एक बड़ा महत्व हैं, छुट्टी आपके व्यवहार, आपकी बोल चाल की भाषा, सही गलत, खाने पीने, सही गलत, शौक फरमाने से लेकर तमाम बातों की भी होना चाहिए। इसलिए छुट्टी तो मिलना चाहिए।

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