The Kashmir Files: फिल्म नही, अंतरात्मा को दहलाने वाला अनुभव

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– राजकुमार जैन (स्वतंत्र विचारक)

मैंने यह फ़िल्म देखी, देखने उपरांत, The Kashmir Files के बारे में विभिन्न ख्यातिप्राप्त लेखकों द्वारा लिखा गया बहुत कुछ पढा और सबको पढ़ने के बाद अपनी स्वतंत्र खोज भी की उसके पश्चात मैने इस फ़िल्म के बारे में एक अलग दृष्टिकोण से यह लेख लिखने का प्रयास किया है ।

अलग सोच : काश्मीर उच्च अनुसंधान और शोध के लिए विश्व का ज्ञान का केंद्र था और भारत विश्वगुरु या महाशक्ति ना बन सके इसलिए वहां के ज्ञानी यानी पंडितों को खत्म किया गया, मेरी समझ में इनके पीछे सिर्फ मुसलमान आक्रांता ही नहीं होंगे और भी अन्य शक्तियों का भी हाथ होना चाहिए। इसी भावना के तहत लीक से हटकर यह लेख लिखा है

अपनी चर्चित किताब कश्मीरनामा में अशोक कुमार पांडेय कैनेडियन कवियत्री मिरियम वाडिंगटन की एक कविता के हवाले से लिखते हैं, “कश्मीर. जमीन का एक ऐसा खूबसूरत टुकड़ा जहां सब एक बार जाना चाहते हैं, मगर जिसकी कहानी कोई नहीं सुनना चाहता.” इसी काश्मीर की सच्ची कहानी सुनाती है विवेक रंजन अग्निहोत्री की फिल्म “The Kashmir Files”

सोचिए क्या बीतेगी आप पर जब जिस मिट्टी में आपने जन्‍म लिया, अपने पूर्वजों के जिस घर-आँगन में आपका बचपन बीता, जिन गलियों में आपकी जवानी परवान चढ़ी, किसी जालिम के जुल्म के तले उस मिट्टी, उस आंगन और उन गलियों को हमेशा के लिए छोड़ना पड़े, अपने ही वतन में एक शरणार्थी की जिंदगी बसर करनी पड़े। इस दर्द का जिक्र करना जितना आसान है, उसे सहन करना उतना ही कठिन।

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“असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान” और “रलिव गलिव चलिव” क्रूर आतंकियो के बेलगाम समूह द्वारा की गयी वो गर्जना है जो आज भी काश्मीर से किसी तरह अपनी जान बचाकर निकल आए घायल मन पंडितों के सुन्न पड़े कानों मे हर क्षण पिघले सीसे की तरह उतरते महसूस होती रहती है और अपने मित्रो और पड़ोसियों द्वारा किए गए घावों से छलनी हो चुकी उनकी आत्मा को निरंतर झकझोरते रहते हैं, कश्मीरी भाषा में दी गई इन धमकियों का मतलब जानकर आपकी रूह भी काँप उठेगी, आतंकवादियो ने भारत देश के इन निरीह नागरिको को खुले आम धमकाते हुए कहा था कि “यहां बनेगा पाकिस्तान, हिंदुओं के बगैर, लेकिन उनकी औरतों के साथ”, अरे काफिरो अपनी औरतों को छोडकर यहा से खाली हाथ चले जाओ, तुम्हें विकल्प दिया जाता है कि या तो तुम मुसलमान बन जाओ, या अपना सबकुछ छोडकर भाग जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ। किस मनुष्य का दिल नही दहल जाएगा खतरनाक हथियारों से लैस, उन्मादी और क्रूर राक्षसो की भीड़ के सरगना द्वारा जारी की गयी यह दुर्दांत धमकी सुनकर।

आइए जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर कौन थे ये पंडित जिनके बारे मे यह फिल्म बनी है, यह फिल्म हमें बताती है कि पुरातन युग में काश्मीर सम्पूर्ण विश्व के लिए ज्ञान का एक महान केंद्र था, हिमालय की वादियो मे बड़े बड़े ज्ञानी, वौज्ञानिक, चिकित्सक, इंजीनियर, गणितज्ञ, खगोल शास्त्री, अर्थशास्त्री आदि अनेक विधाओ के विषणात विद्वान अपनी तपस्या यानि शोध (रिसर्च) करने काश्मीर आते थे और शोध सफलतापूर्वक सम्पन्न होने पर उन्हे पंडित कहा जाता था जैसे कि वर्तमान मे Phd या डाक्टरेट की उपाधि प्रदान की जाती है, यह फिल्म हमें इतिहास के उन पन्नो की अचंभित कर देने वाली, दिल दहला देने वाली वास्तविक घटनाओं की उस यात्रा पर ले जाती है जिनसे हम आज तक अनभिज्ञ थे।

मानव त्रासदी और राजनीतीक संरक्षण में हुए बर्बर नरसंहार का चित्रण तो एक पहलू है “द कश्‍मीर फाइल्‍स” का लेकिन भारत को विश्वगुरु पद से च्युत कर महाशक्ति बनने से रोकने के विश्वव्यापी षडयंत्र का पर्दाफाश करता हुआ एक और पहलू है जिस पर हम लोग कम ही ध्यान दे पाये हैं। पंडितो पर हुए अत्याचार पर बहुत कुछ कहा, सुना और लिखा जा चुका है और मेरा इस बारे मे कलम चलाना उन बातों की पुनरावृती ही होगा। आईए देखते है क्या है वो अनजाना संदेश जो यह फिल्म ने हमें देना चाहती है। जिस तरह फिल्म का युवा नायक कृष्णा मतिभ्रम (कन्फ्यूजन) और अज्ञानता का शिकार होकर काश्मीर की आजादी का समर्थक बन जाता है लेकिन असल सच्चाई से साक्षात्कार होने के बाद उसे मिले आत्मविश्वास का रोमांच फिल्म देखते हुए हम और आप भी अनुभव करते हैं। आज हम कहते और सुनते है कि जानकारी (इन्फॉर्मेशन) ताकत है, ज्ञान (नॉलेज) से हम दुनिया जीत सकते है, फिल्म के क्लाईमेक्स में कृष्णा कहता है कि इन्फो वार, नॉलेज का वार आज का नहीं है यह युद्ध तो सदीयों से चला आ रहा है।

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इतिहास बताता है कि प्राचीन काल से ही काशी जो भारत की शिक्षा का केंद्र/राजधानी माना जाता रहा है, वहां से शिक्षा लेने के उपरांत उच्च शिक्षा के लिए कश्मीर जाया जाता था। कश्मीर का इतिहास महाभारत काल से भी प्राचीन है, इसका प्रारम्भ नीलमत पुराण से होता है (ऋषि कश्यप के पुत्र नील को इसका रचयिता माना जाता है) जो कि ईसा पूर्व 1182 के आसपास अभिमन्यु प्रथम व गोनन्द तृतीय के शासनकाल के दौरान चंद्र देव ने इसे संकलित किया था।

फ़िल्म का नायक कृष्णा कहता है कि आदि-शंकर केरल से पैदल चलकर कश्मीर आए थे ज्ञान की तलाश में और शंकराचार्य बनकर लौटे थे, अभिनव गुप्त , उत्पल देव ने फिलोसफ़ी, चरक और वागभट्ट ने आयुर्वेद, सुश्रत ने मेडिकल साईन्स, और इसी तरह के अनेकों पंडितों ने दुनिया के तमाम विषयो पर रिसर्च (तपस्या) कर ज्ञान का विशाल भंडार एकत्रित किया था, इन हजारो-लाखों पंडितो ने कश्मीर को असली जन्नत बना दिया था उन्नत ज्ञान की जन्नत, कहा जाता था कि कश्मीर इज द क्रेडल आफ सिविलाएजेशन, कश्मीर इस द सील ओफ क्वालिटी, कश्मीर पहले मिलेनियम की सिलिकोन वैली थी, हमें आज यह सब झूठ लगता है क्योंकि हमें किसी ने यह बताया ही नही, किसी भी पाठ्यक्र्म में यह पढ़ाया ही नही, वस्तुत: यह सब हमसे छुपा कर रखा गया था।

यह जग विदित सत्य है कि जिसका ज्ञान पर कब्जा वो पूरे विश्व पर राज कर सकता है, तो ज्ञान के इस सिरमौर केंद्र को ध्वस्त करने के लिए 1300 ईस्वी में शमशुद्दीन अराकी के नेतृत्व में मुस्लिम आताताईयो को काश्मीर पर हमले करने के लिए भेजा गया उन्होंने हथियारों के दम पर मारकाट और आतंक मचा कर जमीन पर अपना कब्जा जमाना शुरू किया,

बीतते समय के साथ सवाल उठा कि आप जमीन पर तो कब्जा कर सकते हो लेकिन पंडितो के मस्तिष्क में बसे ज्ञान पर कब्जा कैसे करोगे तो शुरू हुआ पंडितो को जबरजस्ती मुसलमान बनाने का, निर्दयता पूर्वक उनको मार देने का, उनकी संपत्ती को लूटने का।

यह सब सच स्वयम शमशुद्दीन अराकी के पुत्र द्वारा लिखी दो पुस्तकों तौफुल-तब-एहबाब और बेहरिस्तान-ए-शाही में दर्ज है जो आज भी तेहरान विश्वविद्यालय के लेखागार में मौजूद हैं जिनका हिन्दी भाषान्तरण काशीनाथ पंडित ने किया जो कश्मीर के बर्बर इस्लामिक इतिहास के गवाह हैं, पांडुलिपी जम्मू और काश्मीर के रिसर्च और पब्लिकेशन विभाग के पुस्तकालय में एक्सेशन नंबर 551 के रूप में वजूद में है ।

क्या आप जानते है कि एक देशभक्त भारतीय होने के नाते सबसे ज्यादा तकलीफ कब होती है, जब फिल्म देखते देखते हुए हर पल आपके मन में यह प्रश्न सर उठाता है कि कश्मीर के गौरवशाली इतिहास के बारे में हमें क्यों नहीं बताया गया, हमारी पाठ्यपुस्तकों में यह सब क्यों नहीं लिखा गया, क्यों हमारा इतिहास या तो मुगल साम्राज्य या ब्रितानी राज के झूठे किस्सो से भरा पड़ा है, यहा तक कि आजादी मिलने के बाद तथाकथित प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के नुमाइन्दो की काली करतूतों की असलियत भी हमसे छुपा कर रखी गई, इस फिल्म के आने के पहले हमारी इस पीढ़ी के कितने लोग जानते थे कि पंचतंत्र कश्मीर में लिखा गया है, भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र कश्मीर में लिखा था।

अगर अब भी किसी बहकावे के तहत आप यह मानते हैं कि इस फिल्म के आने से पहले तक जो आपको बताया गया था वो ही सच है, तो आप एक घोर मिथ्या भ्रम में जी रहे हैं। वस्तुत: यह एक इस्लामी जेहादीयों द्वारा रचित और देश को कमजोर करने में दिलचस्पी रखने वाली ताकतों द्वारा प्रायोजित जेनोसाइड था यही शब्द इस फिल्म में उपयोग किया गया है।

मेरे मित्रो आपसे मेरा आग्रह है कि सच को जानने के लिए यह फिल्म जरूर देखिये क्योंकि “The Kashmir Files” एक फिल्म भर नहीं है, यह एक करारा तमाचा है जो ज़ोर से आकर आपके गालों पर लगता है, आत्मा की गहराईयो में उतरता है, मस्तिष्क की नसो में उबलते खून की तरह बहता है और निर्मम सच्चाई से रूबरू होने पर भलभलाकर आँखों से बाहर आते इस गरम लावे को रोकना मुश्किल हो जाता है, यह फिल्म नही बल्कि वो दर्पण है जो सच्चाई दिखाता है, विवेक रंजन अग्निहोत्री को इस फिल्म को बनाने का साहस दिखाने के लिये धन्यवाद एक बहुत बौना शब्द है।