BIHAR: राजद नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी तेजस्वी यादव ने एक बार फिर चुनाव आयोग (ECI) की प्रक्रिया और पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। तेजस्वी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट सलाह के बावजूद आयोग ने मतदाता सूची से आधार को लिंक करने और सत्यापन की प्रक्रिया को लेकर अब तक कोई संशोधित औपचारिक अधिसूचना जारी नहीं की है। उन्होंने दावा किया कि आयोग यह भी स्पष्ट नहीं कर पाया है कि कितने फॉर्म बिना वैध दस्तावेजों या मतदाता की प्रत्यक्ष भागीदारी के आधार पर अपलोड किए गए हैं। यह एक बड़ी लापरवाही है और इससे फर्जी अपलोडिंग की संभावना बढ़ जाती है।
SC की सलाह को नजरअंदाज करने का आरोप
तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर यह कहते हुए निशाना साधा कि सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों को लेकर लचीलापन बरतने की सलाह दी थी, जिससे मतदाताओं के अधिकार सुरक्षित रहें, लेकिन चुनाव आयोग ने अब तक इस दिशा में कोई कार्रवाई या संशोधित अधिसूचना जारी नहीं की है। उन्होंने पूछा कि यदि आयोग इतना पारदर्शी है, तो यह क्यों नहीं बताता कि कितने फॉर्म अपलोड किए गए और उनमें से कितने में दस्तावेज गायब या सत्यापन अधूरा था।

फर्जी अपलोडिंग पर आयोग की चुप्पी
राजद नेता ने सबसे बड़ा सवाल यह उठाया कि चुनाव आयोग ने अभी तक यह नहीं बताया कि बिना मतदाता की उपस्थिति और बिना कागजी प्रमाण के कितने फॉर्म सिस्टम में अपलोड किए गए। उनका कहना है कि इससे साफ संकेत मिलता है कि फर्जीवाड़ा हुआ है या होने की गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि आयोग को यह स्पष्टीकरण देना चाहिए कि वह इस मामले में क्या कदम उठा रहा है, और किन जिलों में ऐसे मामले सामने आए हैं।
बीएलए को मूक दर्शक बनाया गया?
तेजस्वी यादव ने यह भी आरोप लगाया कि राजनीतिक दलों की भागीदारी का तो उल्लेख आयोग ने किया है, लेकिन ये स्पष्ट नहीं किया गया कि बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) को सक्रिय भूमिका दी गई या सिर्फ हाजिरी लगाने तक सीमित रखा गया। उन्होंने कहा कि बिहार के कई जिलों से रिपोर्ट मिली है कि विपक्षी दलों के बीएलए को या तो जानकारी नहीं दी गई, या उन्हें प्रक्रिया से बाहर रखा गया। इससे पूरे सत्यापन अभियान पर सवाल खड़ा होता है। मतदाता सूची का पुनरीक्षण का दुरुपयोग लोकतंत्र के खिलाफ अपराध है। यदि आयोग खुद पर लगे सवालों का जवाब नहीं देता, तो यह संकेत है कि कुछ न कुछ गंभीर गड़बड़ियां हुई हैं।