गुजरात के बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई को लेकर सरकार से रिहा कारने के आदेश को रद्द करने की मांग कर रहें हैं। सुप्रीम कोर्ट में रिहाई की याचिका पर नोटिस जारी करके राज्य सरकार से 2 हफ्तें में जवाब मांगा हैं। बता दे, रिहाई की याचिक को सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली समेत चार लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। 15 अगस्त को बिलकिस बानो केस में 11 दोषियों को रिहा कर दिया था।
गौरतलब है कि, साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान दाहोद जिले के रंधिरपुर गांव की बिलकिस समेत परिवार के 16 सदस्य भाग कर पास के गांव छापरवाड के खेतों में छिप गए थे। 3 मार्च 2002 को वहां पर 20 से अधिक दंगाइयों ने हमला कर दिया था। जिसमें 5 महीने की गर्भवती बिलकिस सहीत कुछ महिलाओं के साथ रेप किया था। बानो की 3 साल की बेटी समेत 7 लोगों को बड़ी बेरहमी के साथ मार दिया था।
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लंबे समय तक कार्यवाही चली और आरोपियों के द्वारा पीड़िता के पक्ष वालों पर दबाव बनाने की शिकायत मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने केस महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया था। करीब 6 साल बाद 21 जनवरी 2008 को मुंबई की विशेष सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को उम्र कैद की सजा सुना दी। 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने केस सजा को बरकरार रखा।
मामले के एक दोषी राधेश्याम शाह की याचिका को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 13 मई को माना था कि उसे 2008 में उम्र कैद की सजा मिली। इसलिए, 2014 में बने रिहाई से जुड़े सख्त नियम उस पर लागू नहीं होंगे। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाते हुए सभी 11 दोषियों की तरफ से दिए गए रिहाई के आवेदन पर विचार किया और 1992 के नियमों के मुताबिक उन्हें रिहा कर दिया।
यह सभी लोग जेल में 14 साल से ज्यादा समय बिता चुके हैं। 1992 के नियमों में उम्र कैद की सजा पाए कैदियों की 14 साल बाद रिहाई की बात कही गई थी। जबकि 2014 में लागू नए नियमों में जघन्य अपराध के दोषियों को इस छूट से वंचित किया गया है।
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15 अगस्त को दोषियों की रिहाई के बाद देश भर में इसकी तीखी आलोचना हुई। सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, रेवती लाल और तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने गुजरात सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। आज चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की बेंच ने मामले में गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर दिया।
मामले के एक दोषी राधेश्याम के वकील ऋषि मल्होत्रा ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं का मामले से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता जिन लोगों को वापस जेल भेजना चाहते हैं, उन्हें पक्ष तक नहीं बनाया है। इस पर कोर्ट ने सभी दोषियों को भी मामले में पार्टी बनाने का निर्देश दिया।