घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को आर्थिक सहायता देने वाले सरकार के फैसलें पर राज्य महिला आयोग ने उठाए ये बड़े सवाल

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भोपाल। मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा श्रीमती शोभा ओझा ने घरेलू हिंसा के कारण दिव्यांग हुई महिलाओं को आर्थिक सहायता देने संबंधी कैबिनेट के फैसले को शिवराज सरकार का नया जुमला बताते हुए कहा है प्रदेश के खाली खजाने के बावजूद लिया गया यह फैसला न केवल पूरी तरह से अव्यावहारिक है बल्कि पीड़िताओं के जख्मों पर नमक के समान है। इस से यह भी सिद्ध होता है कि राज्य में महिला अत्याचारों को रोक पाने में अक्षम सरकार अब किसी भी तरह से अपनी असफलता पर पर्दा डालने के लिये बेताब है।

श्रीमती ओझा ने कहा कि वैसे भी पीड़िताओं को मिलने वाली लंबी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के बाद मुआवजा कभी भी उनके न भूल सकने वाले जख्मों की भरपाई नहीं कर सकता। बेहतर होता कि राज्य सरकार बेतहाशा बढ़ रही घरेलू हिंसा की घटनाओं को रोकने की दिशा में कोई ठोस व कारगर कदम उठाती। अफ़सोस कि पहले से ही मौजूद कड़े प्रावधानों के बावजूद राज्य सरकार की तरफ से ऐसा कोई संकेत या पहल अब तक नजर नहीं आई है।

आखिर कहां है मुलायम….क्या अखिलेश ने बंधक बना रखा है !

अपने वक्तव्य में श्रीमती ओझा ने आगे कहा कि राज्य सरकार द्वारा पीड़ित महिला जो चालीस प्रतिशत से कम दिव्यांग हुई है उसे दो लाख रुपये और चालीस प्रतिशत से ज्यादा को चार लाख रुपये की सहायता देने का फैसला पूरी तरह से किताबी और झूठा है क्योंकि पूरा प्रदेश यह जानता है कि सरकार के पास अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन देने तक के पैसे नहीं हैं, ऐसे में आर्थिक सहायता का कोई भी फैसला एक और शिगूफा ही माना जाएगा। बेहतर होगा कि शिगूफेबाजी छोड़ कर सरकार घरेलू हिंसा की बढ़ती घटनाओं को रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाए। प्रदेश में महिलाओं के साथ बढ़ते दुष्कर्मों, यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा की तमाम घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। इंदौर में महिला को बंधक बना कर उसके साथ हुई अमानवीय वारदात का मामला हो, शिवपुरी, भोपाल, रीवा खरगोन सहित प्रदेश के सभी हिस्सों से आ रही दुष्कर्म और महिला अत्याचार की घटनाओं ने प्रदेश के जनमानस खास कर महिलाओं को दहला कर रख दिया है और सरकार की बेरूखी ने महिलाओं के मन में भय का माहौल पैदा कर दिया है।

श्रीमती ओझा ने अपने बयान के अंत में कहा कि संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने में लगी राज्य सरकार द्वारा नियमानुसार और विधिवत रूप से गठित राज्य महिला आयोग को भी कानूनी झमेलों में उलझा कर उसे अपनी भूमिका का निर्वहन न करने देना भी महिलाओं के प्रति मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की मंशा पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है, लिहाजा प्रदेश के सभी नागरिकों खासकर महिलाओं की प्रदेश सरकार से यह अपेक्षा है कि वह जुमलेबाजी छोड़ कर महिलाओं के जीवन और सम्मान की सुरक्षा के लिये तुरंत कारगर कदम उठाये और जिसके परिणाम जनता को भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे सकें।