हर स्तर पर भेद का अनुभव होता है, पर एक स्तर पर अभेद का अनुभव होता है वो है….

Mohit
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“जीवेर स्वरूपे होय नित्य कृष्ण दास”. कविराज महानुभाव कह रहे हैं. हर चीज में अंतर मिलेगा पर एक चीज अंतर को दूर कर सकती है…ये भी कृष्ण का नौकर है. हम भी कृष्ण के नौकर हैं. ये भी उनका दास है हम भी उनके दास है. फिर अद्वितीय अभेदता प्राप्त हो जाती है.

श्रीकृष्ण जी जितना आदर उद्धव को देते हैं जितना आदर अर्जुन को देते हैं उतना ही आदर सुदामा को भी देते हैं…ये दृष्टि तभी प्रकट हो सकती है. नहीं तो कहाँ हो?

कई बार हम किसी की आर्थिक स्थिति का अंतर समझ करके अपने व्यवहार का उसके प्रति परिवर्तन कर लेते हैं. अति उत्साह में ऐसा हो जाता है. हो जाए तो कोई बात नहीं पर बाद में उस पर विचार की आवश्यकता है. उससे क्षमा माँगने की जरूरत नहीं है अपनी चेतना से क्षमा माँगने की जरूरत है.

वही बात है…अगर वृष्टिवंशी उद्धव को भगवान स्नेह करते हैं तो दासी पुत्र विदुर को भी स्नेह करते हैं.

।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।

साभार :- पंडित मयंक जी व्यास “भागवताचार्य” इंदौर…9753000552