राजेश राठौर
राहत इंदौरी के सम्मान की बात दो-तीन साल से चल रही थी। जब भी उनसे बात होती थी, तो वो हंसकर टाल देते थे, उनको समझाने की कोशिश हुई और पिछले साल दिसंबर में उनका सम्मान आखिरकार हो गया। राहत के इतने बड़े सम्मान और जलसे की पहले कभी किसी ने हिमाकत नहीं की। इंदौर के युवाओं ने जब ये मोर्चा संभाला, तो बात आगे बढ़ती गई। वो लगातार मना करते रहे। एक बार बातचीत के दौरान कहने लगे कि जब भी किसी का सम्मान होता है तो सब चंदा करने लग जाते हैं, ये मुझे ठीक नहीं लगता। जब उनको इस बात का भरोसा हो गया कि उनके नाम पर चंदा नहीं होगा, चंद लोग आपस में ही सहयोग करेंगे, तब कहीं जाकर बात आगे बढ़ी। फिर बात चली आयोजन में साहित्यकारों को बुलाने की, तो जिन-जिन को बुलाने में आयोजकों को परेशानी आई, उनसे राहत ने खुद बात की। ऐसे बहुत कम मौके आते हैं, जब किसी शख्सियत के सम्मान में राहत के अलावा मुनव्वर राना, कुमार विश्वास और सत्यनारायण सत्तन एक जाजम पर आ जाएं। राहत इंदौरी से मिलना भी कठिन नहीं था। सतलज के जरिये उनके बारे में पता चल जाता था कि कब इंदौर आएंगे और उनसे किस दिन मुलाकात हो पाएगी। आम आदमी की तरह मिला करते थे। कुछ समय पहले भी उनकी तबीयत में खराबी हुई, तो फिर सतलज ने साथ जाना शुरू किया। कभी-कभी उनको चलने के लिए सहारा भी लेना पड़ता था। वे जब भी किसी आयोजन में इंदौर में होते थे रानीपुरा में चंद लोगों के बीच शायरी करने के किस्से जरूर सुनाया करते थे।
