जवानी जब जोश में आती है, तो सत्ता दौड़ लगाती है

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By Pirulal KumbhkaarPublished On: December 25, 2021

पूरी दुनिया में अंधी, गुंगी, बहरी सरकारों के कानों में तेल डालने का काम युवा जोश ही करता रहा है। पूरे विश्व में सत्ताओं को हटाने और बनाने का सबसे बड़ा साधन युवा ही रहे हैं। भारत के इतिहास और राजनीति को पढऩे और समझने वाले जानते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर भारत की आजादी के यज्ञ से लेकर आजाद भारत का सबसे बड़ा आंदोलन समग्र क्रांति करने वाले युवा ही थे। 2011 में हुए अन्ना आंदोलन के नेपथ्य में युवा जोश ही था जिसने 2014 में युपीए सरकार को सत्ता से हटा दिया था। लेकिन मध्यप्रदेश में और खासतौर पर इंदौर में सत्ता और पावर के नशे में मदहोश लोग युवाओं को केवल आयोजनों और रैलियों में भीड बढ़ाने के साथ ही नारेबाजी के उपयोग की एक वस्तु समझने लगे थे। युवाओं की समस्याओं को लेकर सभी राजनीतिक दल केवल आश्वासन ही देते रहे। इंदौर से पहले युवक कल्याण मंत्री रहे, लेकिन युवाओं का कोई भला नहीं हुआ। वहीं वर्तमान में प्रदेश सरकार भी युवाओं की मूलभूत परेशानियों पढ़ाई और रोजगार के अवसरों को अफसरों के द्वारा तैयार आंकडों पर ही सुलझाती रही। वहीं कोरोना ने जहां रोजगार को खत्म किया, वहीं भविष्य को भी दांव पर लगा दिया। बरसों से अपनी तकलीफों को दबाए बैठे युवाओं के सब्र का बांध शनिवार को टूट पड़ा। टूटा भी तो सरकार के आयोजन में सीधे प्रदेश के मुखिया के सामने और ऐसा टूटा की मुख्यमंत्री को भाषण बीच में छोड़कर पुलिस की घेराबंदी के बीच वहां से निकालना पड़ा। एक सदी पहले ऐसे ही एक युवा ने अपने हक के लिए सीधे लड़ाई शुरू की थी, नाम था सरदार भगतसिंह संधू। 23 साल 6 महीने की उम्र में फांसी पर चढऩे के पहले उन्होंने युवाओं के जोश से अंग्रेजी हुकुमत को अच्छे से परिचित करवा दिया था। उसी तरह का जोश अब मप्र में देखने को मिल रहा है। दो दिन पहले जहां झाबुआ में एक युवती कलेक्टर को चुनौती देती नजर आई। वहीं शनिवार को युवाओं की हर तरफ से आई आवाज ने संकेत दे दिए हैं। ये हुंकार से साफ हो गया है कि युवा शक्ती को न तो सरकार और न ही सरकारी कारिंदें अब दबा पाएंगे। सरकार को इनके हित में जल्द से जल्द कदम उठाते हुए युवाओं को नई राह दिखाना ही होगा।


नितेश पाल