काल के कपाल पर ‘महाकाल लोक’, शिव से शिवत्व की यात्रा का उज्जयिनी में सजा संसार

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नितिनमोहन शर्मा

अब आपकी हमारी उज्जयिनी अब वो नही रही जिसे आप हम सब जानते पहचानते है। अवंतिकानाथ की अवंतिकापुरी भी वैसी नही रही जैसी हम सब देख देख कर बड़े हुए। पुण्य सलिला क्षिप्रा का निर्मल जल तो वही है ओर कोटि तीर्थ कुंड में भी वो ही जल हिलोरें मार रहा है जिससे अनादिकाल से भूतभावन भगवान भूतनाथ स्नान ध्यान और आचमनी कर रहे है। राजा महाँकाल का आंगन बदल गया है। विस्तृत ओर विस्तार पा गया है। काळो के काल महाँकाल के आंगन में..काल के कपाल पर..महाँकाल लोक के हस्ताक्षर उकेर दिया गया है। एक ऐसा लोक जो शिव से शिवत्व की ओर आप हमको लेकर जाता है। एक अलौकिक दुनिया।

एक अदभुत संसार शिव का। जहाँ भगवान विष्णु को चक्र प्रदान करना, शिव द्वारा अर्धनारीश्वर स्वरूप धारण करना, सती जन्म, तारकासुर वध, सती स्वयंवर, शिवरात्रि का महत्व, राजा दक्ष और सती संवाद, सती का अग्नि स्नान, वीरभद्र प्रकटीकरण, मैना-हिमालय की कथा, कामदेव द्वारा शिव का ध्यान भंग, कामदेव को भस्म करना, पार्वती का आगमन, पार्वती द्वारा सखियों को शिव का परिचय, शिव पार्वती खेल, कार्तिकेय का अवतरण, पार्वती द्वारा गणेश की रचना, शिव-गणेश युद्ध, त्रिपुरासुर की कथा, अंधकासुर कथा, शिव तांडव, विंध्य की कथा, शिव विवाह प्रसंग रचा बसा है। ऐसी 52 कथाओं से सजे इस अनूठे संसार का नाम ही महाँकाल लोक है।

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एक ऐसा लोक जो मृत्युंजय भगवान आशुतोष की समग्र लीलाओं को अपने मे समेटे हुए है। अनादि अनंत देवता किसी एक लोक में तो सिमटने से रहे। वे तो तीनों लोक के स्वामी है। विराट और अविनाशी है। रुद्र के इसी स्वरूप को पाषाण पर उकेरकर एक ऐसा लोक तैयार किया गया है कि अब जो उज्जैन की धरा पर कदम रखेगा…वो महाँकाल लोक का साक्षी होगा। 1000 मीटर से भी बड़े भूभाग में फैले इस लोक की एक 100 फीट की दीवार तो अकेले शिव विवाह की साक्षी बनी है।

शिव का संसार यानी महाँकाल लोक का निर्माण आसान नही था। कल्पना में भी नही था। लेकिन जिस धरा पर स्वयम ” शिव ” का ” राज ” डेढ़ दशक से विद्यमान है, उस प्रदेश में शिव शंकर के गुणानुवाद की गुंजार उज्जयिनी में अब अनंतकाल तक गूंजेगी। इस काम मे राज सत्ता के साथ साथ लोकसत्ता का भी अनथक परिश्रम शामिल हुआ। राज सत्ता का सर्वस्व समर्पण भाव की ही है प्रबलता है कि प्राचीन नगर उज्जैन का देश दुनिया के मानचित्र पर डंका बज गया। अभी तो ये आरंभ है। शुभारंभ है। लोक के विस्तार का पहला ही चरण है। महाँकाल लोक जब पूरा आकर लेगा…तब की छटा..सबसे अलहदा रहना सुनिश्चित है।

11 अक्टूबर को हमारे अपने मालवा अंचल में इसी महाँकाल लोक के जरिये इतिहास करवट ले लेगा। देश के पंत प्रधान नरेन्द्रभाई मोदी इस लोक को…आप ओर हम जैसे शिव गणों के लिए लोकार्पित करेंगे। इसके लिए ज्योतिर्लिंग नगरी उज्जैन सज संवरकर दुल्हन जैसी तैयार हो रही है। समूचा उज्जैन जैसे उत्सव में निमग्न हो चला है। चारो तरफ लहराती भगवा पताकाएं और गूंजते शंखनाद के बीच पूरा शहर तैयारी में ऐसे जुटा हुआ है जैसे…अपने आराध्य भगवान भोलेनाथ का ब्याह हो। उत्सव का ये उल्लास ओर उत्साह उज्जैन से शुरू होकर मा अहिल्या की नगरी इंदौर तक एक जैसा है। तीर्थ नगरी उज्जैन ओर इंदौर के बीच जैसे फ़ासला सिमट ग़या हो। 54 किलोमीटर की ये दूरी जैसे 54 कदमो की हो गई हो। पूरा मार्ग रोशनी से नहा गया है। ऐसी तेयारी जैसे शिव स्वयम नंदी पर सवार हो इंदौर से उज्जयनी आने वाले हो।

शिव तो नही, लेकिन उनके गण के रूप में प्रधानमंत्री इस प्रसंग के साक्षी बनेंगे। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह दिन रात एक किये हुए है। अफसर से लेकर अमला तक दिन रात पसीना बहा रहा है ताकि कोई कमी शेष न रहे। जो काम 15 दिन के थे, वे 5 दिन में पूरे किए गए है। इंदौर भी महाँकाल लोक की सेवा का निमित्त बना हुआ है। ये अहिल्या नगरी के बाशिंदों के लिए भी गर्व व गौरवांवित होने का क्षण है।

तो आइए। हमारे आराध्य। हमारे पितामह भगवान आशुतोष के इस अनूठे, अलौकिक, अदभुत ओर अलहदा संसार का हम सब स्वागत करें। वंदन करे। अभिनंदन करे। और भूतभावन भगवान के श्रीचरणों में ये प्रार्थना भी करे कि समूचा ये उत्सव एक अनुपम उदाहरण बन जाये…शिव शक्ति का। शिव स्तुति का। ओर शिव भक्ति का।