इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: सरकारी नौकरी में पति-पत्नी की एक साथ पोस्टिंग अनिवार्य नहीं

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By Saurabh SharmaPublished On: July 13, 2025

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि सरकारी सेवा में कार्यरत पति-पत्नी की एक ही जिले में तैनाती कोई अधिकार नहीं, बल्कि मात्र एक सुविधा है। यह फैसला न्यायमूर्ति अंजनी कुमार श्रीवास्तव की एकल पीठ ने सुनाया। कोर्ट ने यह टिप्पणी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में तैनात एक अभियंता की याचिका खारिज करते हुए की, जिसमें उसने अपनी पत्नी के साथ एक ही जिले में पोस्टिंग की मांग की थी।


याची का तर्क – साथ रहने का अधिकार, सरकार का जवाब – विभागीय जरूरतें अहम

कानपुर में तैनात इस अभियंता ने कोर्ट में दलील दी थी कि उसकी पत्नी भी राज्य सेवा में कार्यरत है और वर्तमान में उसकी तैनाती भी कानपुर में है। इसलिए दोनों की एक ही स्थान पर पोस्टिंग होनी चाहिए, जिससे वे साथ रह सकें। याची ने इसे एक मानवीय और संवेदनशील मुद्दा बताया। वहीं, सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि **स्थानांतरण नीति 2024-25 में जरूर यह प्रावधान है कि पति-पत्नी की एक जिले में तैनाती का प्रयास किया जाएगा, लेकिन यह कोई बाध्यकारी नियम नहीं है। विभागीय कार्यों की प्राथमिकता और प्रशासनिक जरूरतें इस मामले में निर्णायक होती हैं।

कोर्ट की टिप्पणी – सुविधा को अधिकार न समझें

कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि स्थानांतरण नीति में जो भी सहूलियतें दी गई हैं, वे प्रशासनिक विवेक के आधार पर लागू होती हैं। यह जरूरी नहीं कि हर मांग पूरी की ही जाए। न्यायमूर्ति अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा, “सरकारी सेवाओं में स्थानांतरण नीति कोई कठोर कानून नहीं है, बल्कि एक लचीली व्यवस्था है, जो विभागीय जरूरतों के अनुसार बदल सकती है।” कोर्ट ने माना कि साथ रहने की इच्छा स्वाभाविक है, लेकिन सरकारी सेवा में कार्यरत कर्मचारियों को विभागीय ज़िम्मेदारियों और प्रशासनिक संतुलन के अनुसार भी समझौता करना पड़ता है।

क्या कहती है नई स्थानांतरण नीति 2024-25?

राज्य सरकार ने कोर्ट में बताया कि स्थानांतरण नीति 2024-25 के तहत यदि पति-पत्नी दोनों सरकारी सेवा में हों, तो जहां संभव हो, उन्हें एक ही जिले में पोस्ट करने का प्रयास किया जाएगा। हालांकि यह प्रयास प्राथमिकता नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक सुविधा है। विभागीय कार्य भार, जनहित और प्रशासनिक जरूरतें सबसे पहले देखी जाएंगी। हाईकोर्ट ने इस नीति को व्यावहारिक और संतुलित बताया और कहा कि इससे कर्मचारियों की व्यक्तिगत जरूरतों और सरकार की प्रशासनिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बना रहता है।