रविवारीय गपशप
सरकारी कामकाजी हों या किसी अन्य व्यवसाय में लगे लोग , यदि वे थोड़े से भी भुलक्कड़ हुए तो काम के काग़ज़ातों को रख के भूलने की मुसीबत उन्हें अक्सर आती है । मैं भी इसी श्रेणी का इन्सान हूँ , और इसका इलाज मुझे बड़े दिनों बाद तब मिल पाया जब मैं राजगढ़ में कलेक्टर के पद पर पदस्थ हुआ ।
मेरे घर में पूजा स्थल पर हनुमान चालीसा का पाठ रिकार्ड की हुई आडियो कैसेट के माध्यम से बजता रहता था । इसे सुनते हुए मुझे एक चौपाई पे कुछ अजीब सा लगता था । चौपाई थी “प्रभु मुद्रिका मेली मुख माही , जलधि लाँघ गए अचरज नाहीं “ । मैं सोचता था , कि अंगूठी तो और भी जगह रखी जा सकती थी , कमर में बांधे फेंटे में खुरस लेते हनुमंत । मुँह में रख के ही हनुमान जी क्यों ले गये ? और इसका उत्तर मुझे तब मिला जब राजगढ़ पदस्थी के दौरान , मेरे ऊपरी जबड़े के दो दाँतों के टूटने के बाद मैंने इसका डैन्चर बनवाने का सोचा |
राजगढ़ आने के बाद भी विदिशा वासियों का प्रेम कुछ ऐसा भारी पड़ा कि विदिशा के डाक्टर निगम जो दंत चिकित्सा विशेषज्ञ हैं , ने ये जिद ठान लिया कि आप का डैन्चर तो हमीं बनायेगे । लिहाजा राजगढ़ के डाक्टर विजयवर्गीय जो उत्साह से इस काम में जूटे थे , को अपना काम बीच में ही छोड़ना पडा । खैर इसका बनना तो जितना मुश्किल था वो तो था ही , क्योंकि इसे ना जाने कितने नफासत से डाक्टर निगम ने बनवाया , लेकिन इसे लगाने की जो ट्रेनिंग डाक्टर विजयवर्गीय ने दी वो बहुत झंझट भरी थी । इसे मुँह में लगाते ही हर वक्त कुछ अजीब सा एहसास होता और उबकाई आने लगती |
आख़िर आपका मुँह , जो कि शरीर का सबसे संवेदन शील हिस्सा है , में कोई बाहरी तत्व अचानक आए और आप चैन से रह पावो ऐसा बड़ा ही मुश्किल होता है और तब मुझे इसकी मुसीबत का अहसास हुआ । दिन में कई बार इसे लगाना पड़ता और अजीब एहसास होते ही निकलना पड़ता । कई दिनों बाद इसकी आदत पड़ सकी ।
इसके बाद ही पूजा करते समय जब इन पंक्तियों पर ध्यान गया “ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं , जलधि लाँघ गए अचरज नाहीं “ तब एक बारगी ही सब समझ आ गया | आख़िर सबसे महत्वपूर्ण चीज क्या थी हनुमान जी के पास ? भगवान राम कि मुद्रिका ही तो…… और इसे कहीं फेंटें में खुरस लेते और समुँदर पार करते और दुष्टों से लड़ते भिड़ते ये कहीं गिर जाती तब ? मइया सीता तो मानती ही नहीं कि आप राम के दूत हो ।
क्यों कि ऐसे षड्यंत्र तो रावण रोज़ रचता था । विभिन्न रूपों को धर कर मैया को भरमाता था तो भइया यदि ये राम की मुद्रिका ना होती तो वहाँ तक जाना ही व्यर्थ हो जाता | इसलिए इसे मुँह में रखा ..आप थोड़ी देर रख के देखो कोई ठोस चीज मुँह में ? थोड़ी देर में ही उबकाई आने लगती है । जैसे मुझे आती थी और प्रभु हनुमान तो इसे पुरे सफर में ही मुँह में रखे रहे ,क्योंकि इससे इसके होने का एहसास उन्हें हरदम बना रहा ।
चाहे इसके लिए उन्हें ना जाने कितनी तकलीफ क्यों ना उठना पड़ी होगी | और इस तरह मुझे जबाब मिल ही गया कि समुद्र पर करने के दौरान हनुमान जी ने भगवान राम कि अंगूठी क्यों मुँह में रखी ।इसके साथ ही यह भी समझ आ गया की ज़रूरी काग़ज़ात हमें वहाँ रखना चाहिए जहाँ इसके रखे रहने का ध्यान हमें हमेशा बना रहे।