भारतीय न्याय संहिता सोमवार, 1 जुलाई को लागू हुई, जिसके साथ ही ब्रिटिश काल की भारतीय दंड संहिता समाप्त हो गई। नए आपराधिक कानूनों के तहत पूरे भारत में चार मामले दर्ज किए गए- मध्य प्रदेश के ग्वालियर, दिल्ली, ओडिशा और महाराष्ट्र के सावंतवाड़ी में।
सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि नए आपराधिक कानूनों के तहत पहला मामला मध्य प्रदेश के ग्वालियर में दर्ज किया गया है। भाजपा सांसद ने बताया कि यह चोरी का मामला था। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “किसी की मोटरसाइकिल चोरी हो गई थी।”
शाह ने कहा, “मामला रात 12.10 बजे दर्ज किया गया… जहां तक विक्रेता के खिलाफ मामले का सवाल है, इसके लिए पहले भी प्रावधान थे और यह कोई नया प्रावधान नहीं है। पुलिस ने इस प्रावधान का इस्तेमाल कर मामले की समीक्षा की और मामले को खारिज कर दिया।”
दिल्ली पुलिस ने सोमवार को नई आपराधिक संहिता, भारतीय न्याय संहिता के तहत अपनी पहली एफआईआर दर्ज की। यह कार्रवाई एक रेहड़ी वाले को निशाना बनाकर की गई, जिस पर मध्य दिल्ली के कमला मार्केट में एक ठेले से सार्वजनिक मार्ग को बाधित करने का आरोप है। विक्रेता ने कथित तौर पर ठेले से पानी और तंबाकू उत्पाद बेचे, जिसके बाद कानून प्रवर्तन कार्रवाई की गई।
महाराष्ट्र में सिंधुदुर्ग जिले में सावंतवाड़ी पुलिस ने नई भारतीय न्याय संहिता के तहत राज्य की पहली एफआईआर दर्ज की, जैसा कि उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की। उपमुख्यमंत्री ने मामले के विशिष्ट विवरण का खुलासा नहीं किया। चौथा मामला भी ओडिशा में दर्ज किया गया है। यह मामला भुवनेश्वर के लक्ष्मीनगर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया है।
‘भारतीय न्याय संहिता लागू हुई’
सोमवार को तीन नए आपराधिक कानून लागू हुए, जिससे भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में दूरगामी बदलाव आए। भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) ने क्रमशः औपनिवेशिक युग की भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ली।
भारतीय न्याय संहिता में 358 धाराएँ जोड़ी गई हैं, जो IPC की 511 धाराओं से कम हैं, साथ ही 20 नए अपराध और 33 अपराधों के लिए कारावास की अवधि बढ़ाई गई है। इस अद्यतन का उद्देश्य कानूनी ढाँचे को मजबूत करना और जहाँ आवश्यक हो वहाँ कठोर दंड लगाना है।
विपक्ष बोला- ‘बुलडोजर न्याय’
कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने नए आपराधिक कानूनों के त्वरित कार्यान्वयन की आलोचना की तथा आरोप लगाया कि इन्हें पर्याप्त संसदीय चर्चा और बहस के बिना जल्दबाजी में पारित किया गया।