पॉपकॉर्न खाना हुआ महंगा! अब 3 तरह का लगेगा GST, जानें दुनिया में कितना बड़ा हैं इसका मार्केट

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By Meghraj ChouhanPublished On: December 21, 2024

GST काउंसिल ने हाल ही में पॉपकॉर्न को तीन विभिन्न टैक्स स्लैब्स में विभाजित कर दिया है—5%, 12% और 18%। अब सवाल उठता है कि एक साधारण सी चीज़ को टैक्स के दायरे में लाने की जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल, पॉपकॉर्न का बाजार भारत में तेजी से बढ़ रहा है और इसके कारोबार का दायरा अब काफी बड़ा हो गया है। अनुमान के मुताबिक, पॉपकॉर्न का बाजार 2030 तक 2600 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है।

भारत में पॉपकॉर्न का बढ़ता बाजार

भारत में पॉपकॉर्न का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। आंकड़ों के अनुसार, 2023 में पॉपकॉर्न का बाजार 1,200 करोड़ रुपए का था और अगले कुछ सालों में यह और भी बढ़ सकता है। 2024 से 2030 तक, पॉपकॉर्न का बाजार 12.1% की दर से बढ़ने का अनुमान है। इसका प्रमुख कारण मल्टीप्लेक्स और मूवी थिएटर्स में पॉपकॉर्न की खपत है, साथ ही घरों में भी फिल्म या क्रिकेट मैच के दौरान इसकी खपत काफी बढ़ी है।

पॉपकॉर्न पर GST दरें

जीएसटी काउंसिल ने पॉपकॉर्न को विभिन्न टैक्स स्लैब्स में रखा है, जो इसके फ्लेवर और पैकेजिंग पर आधारित है:

  • साधारण पॉपकॉर्न (नमक और मसालों से तैयार): इस पर 5% जीएसटी लगेगा, बशर्ते यह पैकेज्ड और लेबल्ड न हो।
  • पैक्ड और लेबल्ड पॉपकॉर्न: इस पर 12% जीएसटी लागू होगा।
  • चीनी या कारमेल से बने पॉपकॉर्न: इस पर 18% जीएसटी लगेगा।

बढ़ रहा है पॉपकॉर्न का वैश्विक बाजार

वैश्विक स्तर पर भी पॉपकॉर्न का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में पॉपकॉर्न का वैश्विक बाजार 75,000 करोड़ रुपए (8.80 बिलियन डॉलर) का होगा, जो 2029 तक 1.26 लाख करोड़ रुपए (14.89 बिलियन डॉलर) तक पहुंचने का अनुमान है। विशेष रूप से, एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में पॉपकॉर्न की खपत तेजी से बढ़ रही है।

पॉपकॉर्न का कारोबार

भारत में पॉपकॉर्न का प्रमुख विक्रेता पीवीआर है, जो औसतन 18,000 पॉपकॉर्न टब रोज़ बेचता है। इसके अलावा, भारत के लगभग 80% मल्टीप्लेक्सों में पॉपकॉर्न की सप्लाई बानाको द्वारा की जाती है। वैश्विक स्तर पर हर्शीज, पेप्सिको, पॉप वीवर, और कोनाग्रा जैसे बड़े ब्रांड पॉपकॉर्न के प्रमुख खिलाड़ी हैं।

भारत में पॉपकॉर्न का बाजार अब इतना बड़ा हो चुका है कि सरकार के लिए इसे जीएसटी के दायरे में लाना आवश्यक हो गया है। पॉपकॉर्न का तेजी से बढ़ता बाजार सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत बन सकता है, और इसलिए इसे टैक्स स्लैब्स के तहत लाया गया है।