डॉ. एके द्विवेदी को ‘मध्य प्रदेश रत्न’ सम्मान, किया ‘खूनी पसीना’ जानलेवा बीमारी का इलाज

Shivani Rathore
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भोपाल : आमतौर पर आप सभी जानते होंगे कि कोरोना जैसी भयावह महामारी के बाद देश में कई सारी ऐसी बीमारियां लोगों को अपनी चपेट में ले रही है, जिसका इलाज कई बार संभव नहीं हो पता है, इसकी मिसाल पेश कर रहे है होम्योपैथी विशेषज्ञ। जी हाँ, आपको बता दे कि जिन खतरनाक बीमारियों को ठीक करने में दुनिया की किसी भी पैथी और डॉक्टरों को सफलता नहीं मिल रही, होम्योपैथी के विशेषज्ञ ऐसी कई जानलेवा बीमारियों का इलाज करने में सफलता हासिल कर रहे हैं। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय की केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के पूर्व सदस्य वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ए.के. द्विवेदी ऐसे ही चुनिंदा डॉक्टर्स में से एक हैं जो घातक बीमारियों का शिकार हुए मरीजों को नई जिंदगी दे रहे हैं।

होम्योपैथी से कई असाध्य जानलेवा बीमारियों के मरीजों को नया जीवन देने और सेवा कार्यों के लिए डॉ. एके द्विवेदी को मध्यप्रदेश रत्न अलंकरण समारोह 2022 में ‘मध्य प्रदेश रत्न” से सम्मानित किया गया। 25 अप्रैल 2022 को भोपाल स्थित कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में मध्य प्रदेश के महामहिम राज्यपाल माननीय मंगू भाई पटेल द्वारा डॉ. ए.के. द्विवेदी को यह सम्मान प्रदान किया गया और डॉ वैभव द्वारा परिवार को मानसिक परेशानी से दूर करने में निभाई विशेष भूमिका के कारण उन्हें भी सम्मानित किया गया।

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साथ ही अपने भोपाल प्रवास पर उन्होंने रक्त जनित गंभीर बीमारियों और उनके देश-विदेश में ठीक हुए मरीजों के बारे में जानकारी भी साझा की। मध्यप्रदेश प्रेस क्लब द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में डॉ. द्विवेदी ने उन दुर्लभ बीमारियों के बारे में जानकारी दी, जिसका शिकार होने के बाद मरीज की जिंदगी को बचाना बेहद मुश्किल होता है, लेकिन होम्योपैथी से वे ठीक हो चुके हैं और अब सामान्य जीवन जी रहे हैं।

बिहार के दो वर्षीय बच्चे की अप्लास्टिक एनीमिया से बचाई जान

घातक बीमारियों का शिकार होने के बावजूद होम्योपैथी चंद महीनों में मरीज को ठीक करने में कारगर साबित हो रही हैं। इनमें एक मामला बिहार के दो वर्षीय बच्चे का है, जिसकी जान अप्लास्टिक एनीमिया होने के बाद खतरे में पड़ गई थी। मौलाबाग, भोजपुर निवासी नीरज कुमार के दो वर्षीय बेटे शिवांश को यह बीमारी हुई थी। कई शहरों में इलाज लेने के बाद भी वह ठीक नहीं हुआ। फिर उन्होंने इंदौर के एडवांस्ड होम्यो क्लिनिक पर संपर्क किया। कोरोना के समय यहां से वीडियो कॉल के माध्यम से इलाज शुरू हुई और चंद महीनों में वह ठीक हो गया।

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दूसरा मामला इंदौर की ही लड़की का है जिसे शरीर से पसीने की जगह खून आता था। लम्बे समय से वह जिंदगी-मौत के बीच संघर्ष कर रही थी, लेकिन यहाँ कुछ ही महीने के इलाज के बाद वह भी ठीक हो गई।

करोड़ों में एक को होती है ऐसी बीमारी

डॉ. द्विवेदी ने बताया कि इंदौर की एक लड़की (नाम गोपनीय रखा गया है) के शरीर से पसीने की जगह खून निकलता था। किसी भी तरह की फिजिकल एक्टिविटी करने के बाद लड़की के माथे से लेकर हथेलियों तक से खून निकलने लगता था। वह कई शहरों में इलाज ले चुकी थीं, लेकिन उपचार नहीं हो पा रहा था। इस बीमारी को हेमैटोहाइड्रोसिस कहा जाता है, जो करोड़ों लोगों में सिर्फ एक को होती है। फरवरी 2021 में यह केस उनके पास पहुँचा और उन्होंने इसका इलाज शुरू किया। अलग-अलग तरह की जांचें और दवाइयों के डोज बदलने के बाद उन्हें सफलता मिली और लड़की अब ठीक हो चुकी है।

रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुई बीमारी और इलाज की प्रक्रिया

डॉ. द्विवेदी के मुताबिक हेमैटोहाइड्रोसिस से जुड़ा एक मामला कुछ साल पहले दिल्ली में भी सामने आया था, जिसमें एक बच्चा इस बीमारी का शिकार हुआ था। मरीज के परिजन भी इस बीमारी को लेकर काफी परेशानथे, क्योंकि किसी भी समय बच्चे को पसीने की जगह ब्लड आना शुरू हो जाता था। पड़ोसी और रिश्तेदार इसे देवीय प्रकोप बताते थे और झाड़-फूंक करवाने की बात करते थे। स्कूल के प्रिंसिपल ने भी उसे स्कूल आने से मना कर दिया था। जिसके बाद उसे मानसिक आघात पहुंचने का खतरा भी था। इंदौर की लड़की का मामला भी इसी तरह का था। उसका ठीक होना होम्योपैथी और डॉक्टर दोनों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और रिसर्च जर्नल में इसके इलाज की प्रक्रिया प्रकाशित की गई है। सबसे खास बात यह है कि बेहद कम खर्च (सिर्फ 30 हजार रुपए) में बच्ची पूरी तरह स्वस्थ हो गई है और अब नाक, कान या पसीने के रूप में उसका खून नहीं बहता।

डॉ वैभव द्वारा इंदौर वाले केस में परिवार को मानसिक परेशानी से दूर करने में निभाई विशेष भूमिका
गौरतलब है कि इस दुर्लभ मामले को ठीक करने को लेकर एलोपैथी जांच भी हुई। इंदौर के डॉक्टर वैभव चतुर्वेदी (एमडी, साइकाइट्री) भी भोपाल के सम्मान समारोह में शामिल हुए जहा उन्हें भी सम्मानित किया गया । वे इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, इंदौर में प्रोफेसर हैं और इस केस में उनकी भी भूमिका हैं। दोनों डॉक्टरों ने मिलकर पीड़ित बच्ची व उसके परिजनों से बात की। साइकाइट्री पॉइंट ऑफ व्यू से भी इस मामले को देखा गया और जांच की गई। ब्लड सेल्स और वेन्स में प्रेशर बढ़ जाने के कारण यह समस्या हो रही थी। निष्कर्ष निकलने के बाद फरवरी 2021 में इलाज शुरू किया गया और चंद महीनों में मरीज को चेहरे, हथेलियों व शरीर के अन्य हिस्सों से पसीने के रूप में खून आना बंद हो गया और वह पूरी तरह ठीक हो गई।