आर्टिकल
सरोज जी में वो जुनून अभी तक था .
प्रसिद्ध लेखिका अचला नागर की कलम से 1950 मे बतौर background dancer अपना फिल्मी सफ़र आरंभ करने वाली सरोज खान अस्सी का दशक आते बतौर नृत्य निर्देशिका एक बड़ा हस्ताक्षर
भक्त और दरबारी की चकल्लस
एन के त्रिपाठी एक अपने सर्वोच्च नेता के भक्त और दूसरे अपनी पार्टी के सर्वोच्च परिवार के दरबारी आपसी चकल्लस में अपना समय पास कर रहे थे। दरबारी- तुम्हारे नेता
चीन पर ‘डिजीटल स्ट्राइक’ और हमारा ‘डिजीटल राष्ट्रवाद’
अजय बोकिल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रविवार को ‘मन की बात’ से साफ हो गया था कि लद्दाख में हमारी गलवान घाटी में घुसे चीन को सबक अब ‘राष्ट्रवादी तरीके’
आज के समय की मांग ऑनलाइन क्लासेस
अदिति सिंह भदौरिया। इस कठिन समय में जब हर कोई एक दूसरे का साथ देना चाहता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सच में अपने समय को हमारे
‘वो लोग’ तो याद करेंगे नहीं, चलो अपन ही नमन कर लें..!
-जयराम शुक्ल तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव ने अखबारों के पहले पन्ने पर इश्तहार न दिए होते तो अपन भी इस परम विद्वान राजपुरुष को भूले ही हुए थे। यह
रंग – फ़ेयर एंड लवली : इंसान में यह रंग बदरंग क्यों हो गया? रंग भेद कैसे आ गया?
डॉ सुभाष खंडेलवाल रंग क्या है ? ये वही है, जो हमारा दिमाग आंखों से दिखलाता है। रंग कोई सा भी हो काला, सफेद, हरा, नीला, पीला सब एक से
क्या यह पी.वी. नरसिंहराव का ‘राजनीतिक पुनर्जन्म’ है?
अजय बोकिल देर से ही सही, इतिहास न्याय तो करता है। 28 जून को देश के प्रमुख अखबारों में जब पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिंहराव की 99 वीं जयंती पर श्रद्धांजलि स्वरूप
गाली और गोली हमारी वैचारिक हार हैं
अनिल त्रिवेदी मनुष्य अपने विचारों को अपना मौलिक गुण मानता हैं।मानवीय सभ्यता का विस्तार मनुष्य के अंतहीन विचार प्रवाहों से हुआ ऐसा माना जा सकता हैं।हांलाकि इस मान लेने पर
निशाने पर पीटीआई और कुछ संजीदा सवाल
अजय बोकिल संयोग ही कहें कि तीन दिन पहले जब हम देश में आपातकाल के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र को कुचलने के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई के तराने
कहो तो कह दूँ – ‘दरुओं’ के साथ इज्जत से पेश आना, हो सके तो उन्हें ‘कलारी’ तक भी छोड़ कर आना
चैतन्य भट्ट लोगों को भी हर बात में ऐतराज करने की आदत सी पड़ गयी हैl रविवार को पूरे शहर में जबरदस्त लॉकडाउन था ‘कलेक्टर साहेब’ के आदेश थे कि
क्या इंदिरा गांधी सचमुच में एक क्रूर तानाशाह थीं ?
श्रवण गर्ग सरकार के बदलते ही ‘आपातकाल’ की पीठ को नंगा करके जिस बहादुरी के साथ उसपर हर साल कोड़े बरसाए जाते हैं ,मुमकिन है आगे चलकर 25 जून को
राजबाड़ा 2 रेसीडेंसी
अरविंद तिवारी बात यहां से शुरू करते है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यदि किसी मामले में आक्रामक तेवर अख्तियार कर ले तो सरकार को भी उसकी बात मानना पड़ती है। संघ
राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’ कमलनाथ का डर, चीन की एंट्री…. कमलनाथ अपनी पार्टी को संभाल नहीं पाए। सत्ता से बेदखल हो गए। अधिकांश सर्वे बोल रहे हैं, 24 विधानसभा सीटों के
शिक्षा हर दिन का महापर्व हैं महादान हैं, बच्चें स्कूल की बगिया के महकते पुष्प हैं
देवेन्द्र बंसल .. भारतीय संस्कार संस्कृति व्यवहार अनुशासन और परम्परा का उद्ग़म हैं शिक्षा का मंदिर। जहाँ तराशा जाता हैं बच्चों को उनके गुरु के द्वारा ,विद्यालय के द्वारा। ज्ञान
“सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है”
शशिकांत गुप्ते यह एक कहावत है,लेकिन यह कहावत पढ़ सुन कर प्रश्न उपस्थित होते हैं? vyangसावन में कोई अलग किस्म के अंधे होते हैं क्या?सावन के अंधे को ही हरा
कल्याणकारी राज्य संविधान का मूलतत्त्व
अनिल त्रिवेदी भारत का संविधान भारत के नागरिकों के कल्याण के लिये वचनबद्ध हैं।राज्य के सारे कार्य कलाप और नीतियां नागरिकों के लिये लोकमैत्रीपूर्ण और सभी नागरिकों के प्रति समभाव
यादों में आपातकाल- समापन, राहुकाल से लोकतंत्र के निकलने की शेषकथा!
“इमरजेन्सी के कंलक के काले धब्बे इतने गहरे हैं कि भारत में जबतक लोकतंत्र जिंदा बचा रहेगा तबतक वे बिजुरके की भाँति टँगे दिखाई देते रहेंगे” -जयराम शुक्ल चाटुकारिता भी
आपातकाल नहीं चाहिए तो फिर कुछ बोलते रहना बेहद ज़रूरी है !
-श्रवण गर्ग कुछ पर्यटक स्थलों पर ‘ईको पाइंट्स’ होते हैं जैसी कि मध्य प्रदेश में प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान माण्डू और सतपुड़ा की रानी के नाम से प्रसिद्ध पचमढ़ी के बारे
मध्यप्रदेश : दरकती विचारधाराओं में पक्ष- प्रतिपक्ष
-राकेश दुबे मध्यप्रदेश राजनीति के वैचारिक क्षरण के अंतिम पायदान की ओर अग्रसर है | वो घड़ी नजदीक आ रही है जब आधी जिन्दगी कांग्रेस का झंडा थामने वाले, भाजपा
छग में गोबर खरीदी: आर्थिक नवाचार या राजनीतिक ‘अवशेष’वाद’…!
अजय बोकिल यकीनन छत्तीसगढ़ सरकार का यह फैसला गोबर को प्रतिष्ठा दिलाने वाला है। वरना ‘पंच गव्य’ का यह पांचवा तत्व आर्थिक रूप से भी उपेक्षित ही रहा है। बावजूद