शिक्षा हर दिन का महापर्व हैं महादान हैं, बच्चें स्कूल की बगिया के महकते पुष्प हैं

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By Akanksha JainPublished On: June 28, 2020
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देवेन्द्र बंसल ..

भारतीय संस्कार संस्कृति व्यवहार अनुशासन और परम्परा का उद्ग़म हैं शिक्षा का मंदिर। जहाँ तराशा जाता हैं बच्चों को उनके गुरु के द्वारा ,विद्यालय के द्वारा। ज्ञान का भंडार बालक को बचपन से ही इस तरह दिया जाता हैं की हर कठिन परिस्थिति का सामना सरलता से कर सके।

शिक्षा हर दिन का महापर्व हैं महादान हैं, बच्चें स्कूल की बगिया के महकते पुष्प हैं

आज की परिस्थिति में अनेक सवाल स्कूल के प्रति पालकों के मन में व स्कूल प्रबंधन स्टाफ़ के मन में भी हैं। यह होना स्वभाविक भी हैं की इस वेश्विक महामारी में हम बच्चों को कैसे बचाए। जहाँ मास्क लगाना ,सेनेटाइज करना , सोशल डिसटेनसिंग का पालन करना हो कैसे स्कूल भेजें । प्रदेश सरकार भी परिस्थिति का आकलन कर रही हैं। आनलाइन शिक्षा के सन्दर्भ में भी अलग अलग नज़रिया हैं।

यह भी ठीक हैं पालकगण की भी अपनी सोच सही हैं। जब तक उन्हें यह नही लगेगा की मेरा बालक स्कूल में सुरक्षित हैं। तब तक वह स्कूल क्यूँ भेजेगा । लेकिन शिक्षा के इस मंदिर के लिए हमारी भावना में स्वच्छता होना चाहिये ।इस मन्दिर से ही हम सब शिक्षित होकर आगे बढ़े हैं। अनेको ने शिखरता प्राप्त कर देश का नाम दुनिया में रोशन किया हैं। क्या आज हम उसी पर सवाल उठा रहे हैं। उन शिक्षिकाओ ने जिन्होंने बच्चों को तराशने में अपना जीवन लगा दिया।

शिक्षा हर दिन का एक महापर्व हैं ,महादान हैं ।बच्चे स्कूल की बगिया के महकते पुष्प हैं। यह एक पारमार्थिक सेवा हैं। जो नई पौध में ऊर्जा का संचार भरकर देश का नव निर्माण करती हैं। हम अपनी भावना प्रकट करे लेकिन दूसरी तरफ़ भी देखे। जहाँ ग़लत हो वहाँ अपनी बात रखे लेकिन शिक्षा मन्दिर आहत ना हो, व्यवस्था आहत हो।आपको किस स्कूल में पढाना हैं, यह आपका निर्णय होता हैं ।फिर स्कूल को कैसे ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता हैं।

एक ममतमायी माँ अपने बच्चे के भविष्य का सपना देखती हैं, उसे कुछ बनाना चाहती हैं ।उसके सपने धाराशायी ना हो ,यह स्कूलों को भी समझना होगा। प्ले स्कूल की भी अपनी अहम भूमिका होती हैं। वह बच्चों का फ़ाउंडेशन तैयार करती हैं। जो पालकों को सुविधाजनक भी होता हैं। स्कूल की व्यवस्थाएँ सुविधाएँ स्कूल फ़ीस से ही चलती हैं। उसके अनुरूप ही एक्टिविटी होती हैं। शिक्षिकाएं रखी जाती हैं।

विद्यालय में अगर पालक बच्चों को स्कूल नही भेजेंगे तो ,स्कूल को भी टीचर व अन्य स्टाफ़ की कटोती करना होगी या हटाना होगा ।स्कूल के पालकों पर दबाव ना होकर यह उनका अपना स्वेच्छिक निर्णय शासन के निर्णयनुसार स्कूल भेजने का होना चाहिए।

बाल मन का विकास हो ,यह शिक्षा के प्रति जागरुक पालकों व स्कूलों की सहभागिता से ही सम्भव हैं ।यह भी सोचना होगा आज प्रतिस्पर्धा में आपको चयन करने की अनेको सुविधा हैं। कही ऐसा ना हो अधिक समय तक स्कूल बंद होने से देश की शिक्षा व्यवस्था ही हिल जाए ।जिससे अनेको शिक्षा मंदिर बंद होने की स्थिति में आ जाए और जब आवश्यकता हो तो फिर एडमिशन के लिये हम दोड़ते रहे और जगह भी ना मिले।