भक्त और दरबारी की चकल्लस

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By Mohit DevkarPublished On: July 1, 2020

एन के त्रिपाठी

एक अपने सर्वोच्च नेता के भक्त और दूसरे अपनी पार्टी के सर्वोच्च परिवार के दरबारी आपसी चकल्लस में अपना समय पास कर रहे थे।

भक्त और दरबारी की चकल्लस

दरबारी- तुम्हारे नेता की पोल खुल गई है। उन्होंने
दुश्मन को देश की ज़मीन सरेंडर कर दी।
भक्त- कोई दुश्मन नहीं घुसा है ।
दरबारी- जो ज़मीन दुश्मन ने कब्ज़ा कर ली है वो
ख़ाली कराओगे?
भक्त – फ़ालतू बात मत करो, तुमने तो हज़ारों वर्ग
किलोमीटर ज़मीन पहले ही उन्हें सौंप दी थी
दरबारी- पुरानी बात मत करो, अब सीधे बताओ
कि ज़मीन ख़ाली कराओगे या नहीं?
भक्त- तुम दुश्मन से अपने ट्रस्ट के लिए पैसा ले
लेते हो और हम से बहस करने चले हो।
दरबारी- देश को मुद्दे से आप भटका रहे हैं
बड़े राष्ट्रवादी वीर बनते हो तो कुछ कर के
दिखाओ तो पता चले।
भक्त-हमने दुश्मन के कई एप्प बंद कर दिए और
कुछ छोटे मोटे उनके ठेके भी निरस्त कर दिए
हैं यह क्या मामूली बात है। देश जब कोरोना
से लड़ रहा है और संकट में हैं तब आप दुश्मन
की तरफ़ से प्रचार कर रहे हैं।
दरबारी- आप कोरोना के ख़िलाफ़ क्या कर पाए हैं
बीमारी तो फैलती जा रही है और
अर्थव्यवस्था डूब गई है
भक्त- हमारी कार्रवाई से तो बीमारी कम हुई है
वरना पता नहीं क्या हो गया होता।
अर्थव्यवस्था ख़राब है तो हमने गरीबों
कितना दिया, यह तो देखो
दरबारी- कुछ नहीं दिया, अनाज से क्या होता है?
अरे गरीबों पर ख़ज़ाना लुटा देने का दिल
चाहिए।
भक्त- आपका चरित्र ही भ्रष्टाचारी रहा है आपकी
लूट से सरकारी ख़ज़ाने में कुछ बचा ही नहीं
है वैसे भी जनता ने आप को नकार दिया है।
दरबारी- वास्तविक समस्याओं से लोगों का ध्यान
मत हटाओ।
अब तक दोनों व्यक्ति बहस के तेवर में आ चुके थे परन्तु राशन की लाइन में उनका नंबर आ जाने से आगे की बात आयी-गई हो गई।