हल्द्वानी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हल्द्वानी (Haldwani of Uttarakhand) के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को नोटिस भी जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि सात दिन में 50 हजार लोगों को नहीं हटाया जा सकता। अब हल्द्वानी में करीब 50 हजार लोगों के आशियाने पर बुलडोजर नहीं चलेगा।
जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul) और जस्टिस अभय एस. ओक (Justice Abhay S. Oak) की बेंच ने मामले में सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील कोलिन ने बहस की शुरुआत की। उन्होंने शीर्ष अदालत के सामने नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश को पढ़ा और कहा कि वहां पक्के निर्माण हैं, स्कूल और कॉलेज हैं। कोर्ट ने कहा कि 7 दिन में अतिक्रमण हटाने का फैसला सही नहीं है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय कौल ने कहा कि इस मामले को मानवीय नजरिए से देखना चाहिए। जस्टिस कौल ने कहा कि मामले में समाधान की जरूरत है। कोर्ट ने रेलवे से कई सवाल पूछे हैं, जैसे कि अगर वहां से अतिक्रमण हटाया जाता है तो वहां बसे लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था (resettlement system) क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने यह पूछा है कि वहां भूमि की प्रकृति क्या रही है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक मानवीय संवेदना का मामला है।
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सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने तब तक के लिए हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया। हालांकि, सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत कार्यवाही जारी रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उत्तराखंड सरकार से कहा कि इतने सारे लोग लंबे समय से वहां रह रहे हैं। पहले इनका पुनर्वास जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह बिल्कुल ठीक है कि रेलवे लाइन के पास अतिक्रमण नहीं दिया जा सकता, लेकिन उनके लिए पुनर्वास और अधिकारों पर तो गैर करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह ठीक है कि रेलवे वहां सुविधा का विकास करना चाहता है। लेकिन 50 हजार लोगों को इस तरह एक हफ्ते में नहीं हटाया जा सकता है।
जानकरी के लिए आपको बता दे कि उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे को निर्देश दिया कि एक हफ्ते का नोटिस देकर भूमि से अवैध अतिक्रमणकारियों को तत्काल हटाया जाए। इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ कांग्रेस विधायक सुमित ह्रदयेश की अगुवाई में वहां के रहने वाले लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद प्रशांत भूषण ने भी एक याचिका दाखिल की। इस विवाद की शुरुआत उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद हुई। इस आदेश में रेलवे स्टेशन से 2.19 किमी दूर तक अतिक्रमण हटाए जाने का फैसला दिया गया। खुद अतिक्रमण हटाने के लिए सात दिन की मोहलत दी गई थी।