इंदौर : लगभग दो दशक से भी ज्यादा समय से शहर की सत्ता पर काबिज़ भाजपा अपना महापौर प्रत्याशी उजागर करने की हिम्मत नही जुटा पा रही है। बूथ स्तर तक मजबूत मैनेजमेंट, वार्डवार चुनावी जमावट ओर लगातार चुनावी विजय के बाद भी पार्टी का प्रत्याशी चयन नही कर पाना कई सवालों को खड़ा कर रहा है। जबकि प्रतिद्वंद्वी दल कांग्रेस का महापौर उम्मीदवार चुनाव की घोषणा होते ही घोषित हो गया। इंदौर जैसी सीट पर प्रत्याशी चयन का मामला पार्टी के लिए अब मुश्किल भरा हो चला है। अलग अलग धड़े अलग अलग दावेदार के साथ अड़े है।
इंदौर के मामले में प्रदेश मुखिया शिवराज सिंह, संगठन प्रमुख विष्णुदत्त शर्मा ओर प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्रा के साथ स्थानीय क्षत्रपों की गहरी रुचि के चलते उम्मीदवारी गड्डमगड्ड हो चली है। पार्टी अब इस मामले में पूरी तरह मातृ संस्था आरएसएस पर निर्भर हो चली है। इसके चलते संघ के प्रांत प्रचारक बलीराम पटेल निर्णायक भूमिका में आ गए है।
अब हर दावेदार अपने ” भाईसाहब ” की नजर में चढ़ने की जद्दोजहद में जुट गया है। जो सीधे संपर्क में है…वे अपने आपकी दावेदारी को मुफीद मान रहे है और शेष भाईसाहब के सामने ‘परिक्रमा’ में जुट गए है।
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कोई बायोडाटा के साथ भी उनके समक्ष पहुंच गया तो किसी ने अपनी ” संघ आयु ” के दम पर यह मानकर गुहार लगाई है कि बलिराम जी की बलिहारी पर ही अब महापौर की उम्मीदवारी होना है। दूसरी तरफ संघ का प्रान्त स्तरीय शीर्ष नेतृत्व ऐसे दावेदार पर नजरें गड़ाए हुए जिसे संघ-संगठन-सरकार का संयुक्त अनुभव हो ताकि इंदौर जैसे बड़े नगरीय निकाय को संचालित करने में कोई परेशानी न आये।
संघ हर बार की तरह मौन रहकर इस काम मे जुटा हुआ है। प्रान्त प्रचारक अपने स्तर पर फीडबैक ले रहे है। दिल्ली से भी गुपचुप ‘ पूछताछ ‘ चल रही है। “निर्गुट” दावेदार पर नजरें है। अभी तक जिनके नाम चल रहे है या चलाये जा रहे वे…वे सब किसी न किसी गुट से जुड़े है। लगातार सत्ता में रहने से पार्टी ओर नेताओ में आई विकृतियों पर भी संघ की नजर है। दावेदार भी एक दूसरे की संघ के समक्ष पोल खोलने में देर नही कर रहे।
संघ दरवाजे से टिकट के बाहर आने की स्थिति स्पष्ट होने के बाद अब सबकी नजर ” 76 रामबाग ” पर टिक गई है। दूसरी तरफ पूर्व प्रान्त प्रचारक पराग अभ्यंकर भी इस मामले के नजर बनाए हुए है। वे अरसे तक इस दायित्व पर रहने के कारण इंदौर की राजनीति पर गहरे से समझ बनाये हुए है। उनका मुख्यालय भी इंदौर ही रहा था। वर्तमान के वे संघ की अहम सेवा विंग की कमान संभाले हुए है। पटेल-अभ्यंकर के बीच आपसी तालमेल भी बढ़िया है। हालांकि अभ्यंकर सीधे इस मामले से दूर है लेकिन पटेल के लिए वे उहापोह की स्थिति में मार्गदर्शक की भूमिका में है।
जिसका नाम चला…वो चला ही गया
भाजपा में जिसका नाम दावेदारी में चल गया…वो चुनावी परिदृश्य से ही चला गया। ये मिथक दावेदारो के बीच गहरे से पैठा हुआ है। लिहाजा कुछ “समझदार” अभी तक इस मामले में स्वयं को बचाये हुए है। वही दूसरी तरफ जिनके नाम रह रहकर सामने लाये जा रहे है…वे भी अब घबराहट की स्थिति में है कि मिथक फिर से सच न हो जाए।
कालोनी का काम अधूरा छोड़ दावेदारी में जुटे
एक प्रबल दावेदार ने तो चुनावी हार के बाद अपने जमीन के लंबे चौड़े धंधे को कालोनी में तब्दील करने की पूरी तैयारी कर ली थी कि अब कालोनी काटेंगे। इस बीच महापौर का उम्मीदवार सामान्य वर्ग से हो गया। दावेदार महोदय ने कालोनी से जुड़ी सभी कसरतों को फाइल में बन्द कर महापौरी की फ़ाइल तैयार कर परिक्रमा शुरू कर दी है। उम्मीद भोपाल दिल्ली के सम्पर्को से है और नाउम्मीदी स्थानीय क्षत्रपों से बनी हुई है कही एन मौके पर स्थानीय क्षत्रप वीटो पॉवर का इस्तेमाल न कर देवे।