आबिद कामदार, इंदौर. महाशिवरात्रि का पावन पर्व पूरे देश में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाएगा, बात अगर माता अहिल्याबाई की नगरी इंदौर की करी जाए तो वह खुद शिवभक्त थी, उनके शासनकाल से पहले और उनके शासनकाल के दौरान शहर में भगवान शिव के कई मंदिरों का निर्माण किया गया। शहर में ऐसे कई चमत्कारी और सुंदर भगवान शिव के मंदिर है, जिनके किस्से काफी अलग है।
जलती चिता देखते है भूतेश्वर महादेव कई बार गिर गई दीवार
शहर के अंतिम चौराहे पर पंचकुइया स्थित भूतेश्वर महादेव मंदिर है, इस मंदिर का निर्माण होलकर राजवंश ने 300 साल पहले करवाया था। यह मंदिर शमशान की भूमि पर स्थित है, कहा जाता है कि भगवान शिव जलती चिता देखते है, इससे महादेव के सामने अंतिम संस्कार होने से आत्मा को शांति मिलती है। कई बार निगम ने मंदिर और शमशान के बीच दीवार बनाने की कोशिश की तो वह गिर गई, इसलिए वहां खिड़की लगाई गई है।वहीं यह मंदिर नदी के चंद्राकार रूप पर बना है।
शहर के पंढरीनाथ स्थित इंद्रेश्वर महादेव मंदिर का जिक्र है महशिवपुराण में
शहर के पंढरीनाथ स्थित इंद्रेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर ही शहर का नाम इंदौर हुआ, यह मंदिर लगभग 4 हजार साल पुराना है, इस इंद्रेश्वर महादेव मंदिर का जिक्र शिव महापुराण में भी किया गया है। कहा जाता है जब जब शहर में जलसंकट होता है, तो इंद्रेश्वर महादेव मंदिर में पूजा पाठ करने से भारी वर्षा होती है, मान्यताओं के अनुसार मंदिर की स्थापना स्वामी इंद्रपुरी ने की थी, किवदंतियों के अनुसार उन्होंने शिवलिंग को कान्ह नदी से निकालकर प्रतिस्थापित करवाया था। वहीं प्राचीन मान्यताओं के अनुसार भगवान इंद्र ने यहां तपस्या की थी।
देवगुराडिया मंदिर वर्षा ऋतु में गौमुख से निकलने वाले जल से शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है
इंदौर शहर के शिवजी के प्राचीनतम मंदिर की अगर बात की जाए तो नेमावर रोड पर स्थित देवगुराडिया मंदिर लोगों के बीच आस्था का केंद्र है, इस स्थान को गरुड़ तीर्थ और गुटकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में वर्षा ऋतु में गौमुख से निकलने वाले जल से शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है। इसी के साथ यहां सालभर शिव भक्त का तांता लगा रहता है।
1100 रुद्राक्ष धारण कर की जाती है तांडव आरती
शहर के परदेशीपुरा स्थित गेंदेश्रवर महादेव मंदिर में 12 ज्योर्तिलिंग और चारो धाम की प्रतिमाएं मौजूद है।शिवजी के इस मंदिर में पुजारी 1100 रुद्राक्ष धारण कर एक पांव पर खड़े होकर तांडव आरती करते है। शिवजी की यह आरती लगभग पिछले 15 सालों से की जा रही है।